प्लास्टिक की समस्या से आज पूरा विश्व जूझ रहा है। इस समस्या से उबरने के लिए तमाम तरह के प्रयास किए जा रहे हैं। इसी कड़ी में एक उद्यमी वेस्ट प्लास्टिक से मखमली कार्पेट तैयार कर रहे हैं। उनकी ये कोशिश न सिर्फ पर्यावरण संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है बल्कि देश की प्रगति में भी योगदान दे रहे हैं।
प्लास्टिक बोतल की सहायता से कार्पेट हो रहा तैयार
आज प्लास्टिक की बोतलें प्यास बुझाने के बाद धरती को भयंकर जख्म देने का काम कर रही हैं, लेकिन इस जख्म से निजात दिलाने की दिशा में कई लोग और संगठन लगातार काम कर रहे हैं। प्लास्टिक वेस्ट का एक ऐसा उपयोग कि आप जानकर हैरान हो जाएं। इस्तेमाल भी ऐसा कि देश की तरक्की सुनिश्चित हो सके, विदेशी मुद्रा कि कमाई भी मुमकिन हो सके।
ये सब संभव हुआ है, उत्तर प्रदेश के मेरठ के उद्यमी राघव गुप्ता के सोच की बदौलत। जैसा की आप जानते हैं कि प्लास्टिक की पुरानी बोतलों से रग का निर्माण किया जाता है। इन्हीं रगो की सहायता से यहां मखमली कार्पेट बना कर देश के साथ पूरी दुनिया में निर्यात भी किया जाता है।
सबसे पहले कार्पेट बनाने की शुरुआत की
टीआरआर के उद्यमी राघव गुप्ता कहते हैं कि कुछ समय पहले कहीं पढ़ा था कि लोग प्लास्टिक की बोतल का धागा बना रहे हैं। इसके बाद ही इस दिशा में शुरुआत की। जब हमने शुरुआत की तब नया-नया था, अब तो कई लोग इस तरह का प्रयोग कर रहे हैं। अब कई लोग कपड़े भी बना रहे हैं।
पेट यार्न से बनता है कार्पेट
दरअसल वेस्ट प्लास्टिक से बनने वाला धागा कार्पेट बनाने में प्रयोग हो होता है। इससे आउटडोर कार्पेट के साथ-साथ इन डोर कारेपेट भी बनाए जाते हैं। रग जिसे पेट यार्न भी कहा जाता है, उससे बने कार्पेट किसी भी मौसम में खराब नहीं होता। साथ ही वेस्ट प्लास्टिक से पर्यावरण पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव को कम किया जा सकता है।
पर्यावरण संरक्षण के साथ कमा सकते हैं लाभ
राघव गुप्ता कहते हैं कि कई लोगों को लगता है कि अगर पर्यावरण की दृष्टि से अगर कुछ किया, तो बहुत मेहनत लगेगी या लाभ को छोड़ना पड़ेगा। लेकिन ऐसा कुछ नहीं है। आज के ग्राहक, ये जानना चाहते है कि क्या उत्पाद सुरक्षित है, कहां से बना है, उत्पाद बनने में क्या-क्या नुकसान हुआ है, जब वो जानते हैं कि उनका प्रोडक्ट सस्टेनबल और रिसाइकल हो सकता है, तो वो वहीं से उत्पाद लेना चाहते हैं।
गौरतलब हो कि केंद्र सरकार भी रीसाइक्लिंग इंड्रस्टी को लगातार प्रोत्साहन दे रही है ताकि देश की तरक्की के साथ-साथ प्रकृति की भी सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।