कृषि विधेयक के विरोध में अकाली दल के कोटे से केंद्र में मंत्री हरसिमरत कौर ने कुछ दिनों पहले इस्तीफा दे दिया था . अब अकाली दल ने सत्ताधारी एनडीए से बाहर निकलने का निर्णय ले लिया है . पार्टी की बैठक में यह फैसला हुआ . बता दें कि पंजाब और हरियाणा में मोदी सरकार द्वारा पारित कृषि विधेयकों के विरोध में किसान सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं . . शिरोमणी अकाली दल ने अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल के नेतृत्व में पार्टी की कोर कमेटी की बैठक में एनडीए से अलग होने का निर्णय ले लिया . पार्टी की तरफ से आए बयान में कहा गया है कि बीजेपी नीत एनडीए से पार्टी नाता तोड़ रही है . इसका कारण केंद्र सरकार द्वाराकानूनी तौर पर किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य ( एमएसपी ) की गारंटी न देने की जिद और पंजाबी और सिखों के मुद्दे पर असवेंदनशीलता है . गौरतलब है कि अकाली दल बीजेपी का पुराना सहयोगी था . पंजाब में दोनो मिलकर सरकार भी चला चुके हैं ।
अकाली दल पर क्या दबाव था
• पार्टी में फूट से जूझ रहे अकाली दल के लिए मोदी सरकार के कृषि विधेयक गले की फांस बन गए थे , क्योंकि पार्टी को लग रहा था कि अगर वह इनके लिए हामी भरती तो पंजाब के बड़े वोट बैंक यानी किसानों से उसे हाथ धोना पड़ता ।
• पंजाब के कृषि प्रधान क्षेत्र मालवा में अकाली दल की पकड़ है । अकाली दल को 2022 के विधानसभा चुनाव दिखाई दे रहे हैं । 2017 से पहले अकाली दल की राज्य में लगातार दो बार सरकार रही है । 2017 के विधानसभा चुनाव में 117 सीटों में से अकाली दल को महज 15 सीटें मिली थीं । ऐसे में 2022 के चुनाव से पहले अकाली दल किसानों के एक बड़े वोट बैंक को अपने खिलाफ नहीं करना चाहती।
इन 3 विधेयकों का विरोध हो रहा
• फार्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स ( प्रमोशन एंड फेसिलिटेशन ) बिल ।
फार्मर्स ( एम्पावरमेंट एंड प्रोटेक्शन ) एग्रीमेंट ऑफ प्राइस एश्योरेंस एंड फार्म सर्विसेज बिल ।
. एसेंशियल कमोडिटीज ( अमेंडमेंट ) बिल ।
अकाली दल के अलग होने एनडीए को फर्क पड़ेगा ?
अकाली दल के लोकसभा में दो सांसद हैं । वहीं , राज्यसभा में तीन सांसद हैं । जानकारों का कहना है कि इससे दोनों सदनों में एनडीए की स्ट्रेंथ में कोई फर्क नहीं पड़ेगा । दरअसल , यह बेहद सोची समझी रणनीति के तहत कदम उठाया गया है । पंजाब में भाजपा का ज्यादा वोट बैंक नहीं है । इससे नुकसान की संभावना भी कम है । उधर , कृषि बिलों से अकाली दल को नुकसान होता दिख रहा था । पिछले चुनाव में पार्टी को आप की वजह से बहुत नुकसान हुआ था । पार्टी सीटों के मामले में तीन पर आ गई थी ।
22 साल पुराना साथ
1998 से अकाली दल एनडीए में था 1998 में जब लालकृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी ने एनडीए बनाने का फैसला किया था , तो उस वक्त जॉर्ज फर्नांडीज की समता पार्टी , जयललिता की अन्नाद्रमुक , प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व वाला अकाली दल और बाला साहेब ठाकरे की शिवसेना ने इसे सबसे पहले ज्वॉइन किया था । समता पार्टी का बाद में नाम बदलकर जदयू हो गया । जदयू द्रमुक एनडीए से एक बार अलग होकर वापसी कर चुकी है । शिवसेना अब कांग्रेस के साथ है । अकाली दल ही ऐसी पार्टी थी , जिसने अब तक एनडीए का साथ नहीं छोड़ा था ।
