Covid 19

वित्तीय बोझवश सम्मानजनक शवदाह ना कर पाने की बेबसी से मुक्ति के लिए IIT इंजीनियर ने ढूंढा उपाय

कोरोना काल में हममें से कई लोगों ने अपने प्रियजनों को खोया है, संकट के इस वक्त में जहां परिवार या व्यक्ति को मानसिक और सामाजिक सपोर्ट की जरूरत होती है, वहीं, कई ऐसे और लोग भी हैं, जो उनके वित्तीय बोझवश सम्मानजनक शवदाह ना कर पाने की बेबसी को दूर करने के लिए उपाय ढूंढ रहे हैं। इसी क्रम में आईआईटी इंजीनियर ने एक मोबाइल शवदाह भट्ठी तैयार की है, जो श्मशान घाट पर लगने वाले समय और वित्तीय बोझ को तो कम करेगा ही, खास बात यह है कि इसे कहीं भी ले जाया जा सकता है।

लकड़ी का भी कम होता है इस्तेमाल
औद्योगिक परामर्श एवं प्रायोजित अनुसंधान एवं उद्योग सहभागिता (आईसीएसआरएंडआईआई) के डीन आईआईटी प्रोफेसर डॉ. हरप्रीत सिंह ने इस प्रणाली को विकसित किया है।
उन्होंने कहा कि, “सामान्य लकड़ी आधारित शवदाह के लिए जरूरी 48 घंटे की तुलना में इसमें 12 घंटे के भीतर शव का अंतिम संस्कार हो जाता है।” इस शवदाह की खास बात ये है कि इसमें लकड़ी का इस्तेमाल करने के बावजूद धुआं नहीं होता है। इससे ऊर्जा की भी बचत होती है क्योंकि सामान्य तौर पर शवदाह में जरूरी लकड़ी की आधी मात्रा का ही इस्तेमाल होता है।

बत्ती-स्टोव प्रौद्योगिकी पर आधारित
प्रोफेसर हरप्रीत ने बताया कि, “यह शवदाह भट्ठी 1044 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर काम करती है। यह बत्ती-स्टोव प्रौद्योगिकी पर आधारित है। इसमें जब बत्ती जलती है, तो पीली लपटें चमकती हैं, लेकिन बत्तियों के ऊपर लगे दहन वायु प्रणाली की मदद से यह धुआं रहित नीली लौ में बदल जाती है।”
उन्होंने बताया कि यह ठेला प्राथमिक और माध्यमिक गर्म हवा प्रणाली के लिए दहन वायु से युक्त है। ठेले के दोनों ओर स्टेनलेस स्टील का ढांचा लगा होता है इससे ऊर्जा का नुकसान कम होता है और लकड़ी की भी खपत कम होती है। इसके अलावा राख को आसानी से हटाने के लिए इसके नीचे एक ट्रे भी लगा हुआ है।

टेक-ट्रेडिशनल मॉडल
उन्होंने बताया कि शवहाद के लिए टेक-ट्रेडिशनल मॉडल को अपनाया है, क्योंकि यह भी परंपरागत रूप से लकड़ी का उपयोग करता है। इस मॉडल को बनाने वाले चीमा बॉयलर्स लिमिटेड के एमडी हरजिंदर सिंह चीमा ने कहा, “वर्तमान में महामारी की स्थिति को ध्यान में रखते हुए अगर इस प्रणाली को अपनाया जाता है तो यह उन लोगों के करीबी एवं प्रियजनों के सम्मानजनक अंतिम संस्कार कर सकते हैं, जो लकड़ी की व्यवस्था करने का वित्तीय बोझ वहन नहीं कर सकते हैं।”

मोबाइल शवदाह भट्ठी
यह शवदाह भट्टी ठेले के आकार की है, जिसमें पहिये लगे होते हैं और बिना अधिक प्रयासों से इसे कहीं भी ले जाया जा सकता है। प्रोफेसर डॉ. हरप्रीत सिंह ने आगे कहा कि चूंकि यह मोबाइल यानि वहनीय है, इसलिए संबंधित प्राधिकारियों की अनुमति से इसे कहीं भी ले जाया जा सकता है। इस शवदाह भट्ठी के प्रयोग से लोगों को ज्यादा भीड़ वाली वाली जगह जाने और संक्रमण से भी बचाया जा सकता है।

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