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ये रही PFI की कुंडली, हत्या-हिंसा से लेकर जबरन धर्मांतरण कराने तक के लगे हैं आरोप

देश की सुरक्षा को लेकर कई तरह की चुनौतियां इन दिनों देश के सामने है, लेकिन जब इन चुनौतियों से निपटने की बात आती है तो उसके लिए कई तरह की कार्रवाई की जरूरत होती है। इसी संदर्भ में गुरुवार को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) और प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने बहुत बड़ी कार्रवाई की है। दरअसल, एनआईए और ईडी ने मिलकर देशभर में करीब 11 राज्यों में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) के कई ठिकानों पर छापेमारी की है। एनआईए और ईडी की कार्रवाई केरल, कर्नाटक, राजस्थान और तमिलनाडु सहित 11 राज्यों में चल रही है। यही नहीं आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, दिल्ली, यूपी, एमपी और महाराष्ट्र से भी पीएफआई से जुड़े कई वर्कर भी गिरफ्तार किए गए हैं। उधर, असम से भी कुछ लोगों को हिरासत में लिया गया है।

11 राज्यों में PFI और उससे जुड़े लोगों की ट्रेनिंग गतिविधियों, टेरर फंडिंग के खिलाफ यह अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई मानी जा रही है। इन्हीं कारणों से PFI का नाम सुर्खियों में आ गया है जिसमें पीएफआई के लिप्त होने की बात आई थी। ऐसे स्थिति में PFI क्या है ? PFI को फंड कैसे मिलता है ? क्या पीएफआई और सिमी में कोई संबंध है? इस बारे में जानना देशवासियों के लिए बेहद जरूरी है।

PFI पर किन राज्यों में छापेमारी की गई है ?

एनआईए ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया से जुड़े हुए लिंक पर देशभर में छापेमारी की है। टेरर फंडिंग और कैंप चलाने के मामले में जांच एजेंसी ने यह कार्रवाई की है। बताया जा रहा है कि ईडी, एनआईए और राज्यों की पुलिस ने ग्यारह राज्यों से पीएफआई से जुड़े करीब 106 लोगों को अलग-अलग मामलों में हिरासत में लिया है। महज इतना ही एनआईए ने पीएफआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओएमएस सलाम और दिल्ली अध्यक्ष परवेज अहमद को भी गिरफ्तार कर लिया है। वहीं कोलकाता में पीएफआई नेता एस.के. मोहंती के तिलजला स्थित आवास पर भी छापेमारी की है।

एनआईए को पीएफआई के खिलाफ मिली थी ये लीड

एनआईए को भारी संख्या में पीएफआई और उससे जुड़े लोगों की संदिग्ध गतिविधियों की जानकारी मिली थी, जिसके आधार पर जांच एजेंसी ने गुरुवार को मैसिव क्रेकडाउन किया। ईडी, एनआईए और राज्यों की पुलिस के संयुक्त ऑपरेशन पर केंद्रीय गृह मंत्रालय लगातार नजर बनाए हुए है।

इस संगठन पर क्या आरोप हैं ?

PFI एक कट्टरपंथी संगठन है। 2017 में NIA ने गृह मंत्रालय को पत्र लिखकर इस संगठन पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी। NIA जांच में इस संगठन के कथित रूप से हिंसक और आतंकी गतिविधियों में लिप्त होने के बात आई थी। NIA के डोजियर के मुताबिक यह संगठन राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है। यह संगठन मुस्लिमों पर धार्मिक कट्टरता थोपने और जबरन धर्मांतरण कराने का काम करता है।

बता दें, केरल में पीएफआई की सबसे अधिक उपस्थिति रही है, जहां बार-बार उस पर हत्या का आरोप लगता रहा है। इसके अलावा पीएफआई पर दंगा करना, डराना-धमकाना और आतंकवादी संगठनों से संबंध रखने के आरोप भी लगे हैं। साल 2012 में कांग्रेस के ओमन चांडी के नेतृत्व वाली केरल सरकार ने उच्च न्यायालय को सूचित किया था कि पीएफआई “प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) के पुनरुत्थान के अलावा और कुछ नहीं” है। केवल इतना ही नहीं यह बात एक सरकारी हलफनामे में भी कही गई है कि पीएफआई कार्यकर्ताओं पर हत्या के 27 मामले में दर्ज हैं।

क्या है PFI ?

पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानि PFI का गठन 2006 को हुआ था। ये संगठन दक्षिण भारत के तीन मुस्लिम संगठनों का विलय करके बना था और ये तीनों संगठन 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के पश्चात बन थे। इनमें केरल का नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट, कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी और तमिलनाडु का मनिथा नीति पसराई शामिल थे। इस वक्त देश के 23 राज्यों यह संगठन सक्रिय है। देश में स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट यानि सिमी पर बैन लगने के बाद पीएफआई का विस्तार तेजी से हुआ। कर्नाटक, केरल जैसे दक्षिण भारतीय राज्यों में इस संगठन की काफी पकड़ बताई जाती है। केवल इतना ही नहीं इसकी कई शाखाएं भी हैं। गठन के बाद से ही पीएफआई पर समाज विरोधी और देश विरोधी गतिविधियां करने के आरोप लगते रहते हैं, जबकि पीएफआई खुद को अल्पसंख्यकों को सशक्त बनाने के लिए प्रतिबद्ध एक नव-सामाजिक आंदोलन के रूप में वर्णित करता रहा है जो समाज में इस समुदाय, दलित और समाज के अन्य कमजोर वर्ग के लिए कार्य करता है।

PFI को फंड कैसे मिलता है ?

याद हो, पिछले साल की शुरुआत में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने PFI और इसकी स्टूडेंट विंग कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (CFI) के पांच सदस्यों के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में चार्जशीट दायर की थी। ED की जांच में पता चला था कि PFI का राष्ट्रीय महासचिव के ए रऊफ, गल्फ देशों में बिजनेस डील की आड़ में पीएफआई के लिए फंड इकट्ठा करता था। ये पैसे अलग-अलग जरिए से पीएफआई और CFI से जुड़े लोगों तक पहुंचाए गए।

इस तरह करोड़ों रुपए की रकम आपराधिक तरीकों से प्राप्त की गई। इसका एक हिस्सा भारत में पीएफआई और सीएफआई की अवैध गतिविधियों के संचालन में खर्च किया गया। सीएए के खिलाफ प्रदर्शन, दिल्ली में 2020 में हुए दंगों में भी इस पैसे के इस्तेमाल की बात सामने आई थी। पीएफआई द्वारा 2013 के बाद पैसे ट्रांसफर और कैश डिपॉजिट करने की गतिविधियां तेजी से बढ़ी हैं। भारत में पीएफआई तक हवाला के जरिए पैसा आता है।

क्या पीएफआई ने कभी चुनावी राजनीति में हिस्सा लिया है ?

पीएफआई खुद को सामाजिक संगठन कहता है। इस संगठन ने कभी चुनाव नहीं लड़ा है। यहां तक कि इस संगठन के सदस्यों का रिकॉर्ड भी नहीं रखा जाता है। इस वजह से किसी अपराध में इस संगठन का नाम आता है, तो भी कानूनी एजेंसियों के लिए इस संगठन पर नकेल कसना मुश्किल होता है। 21 जून 2009 को सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) के नाम से एक राजनीतिक संगठन बना। इस संगठन को पीएफआई से जुड़ा बताया गया है। कहा गया कि एसडीपीआई के लिए जमीन पर जो कार्यकर्ता काम करते थे वो पीएफआई से जुड़े लोग ही थे। 13 अप्रैल 2010 को चुनाव आयोग ने इसे रजिस्टर्ड पार्टी का दर्जा दिया।

राजनीति में कितनी सफल रही एसडीपीआई ?

कर्नाटक के मुस्लिम बहुल इलाकों में ये एसडीपीआई सक्रिय रही है। खासतौर पर दक्षिण तटीय कन्नड़ और उडुपी में इस पार्टी का प्रभाव देखा गया। इन इलाकों में इस संगठन ने स्थानीय निकाय चुनावों में सफलता भी हासिल की। 2013 तक एसडीपीआई ने कर्नाटक में कुछ स्थानीय निकाय के चुनाव लड़े। इनमें उसे 21 सीटों पर जीत भी मिली। वहीं 2018 में उसे 121 स्थानीय निकाय की सीटों पर जीत मिली। 2021 में उसने उडुपी जिले के तीन स्थानीय निकायों पर कब्जा जमाया।

2013 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में पहली बार इस पार्टी ने अपने उम्मीदवार उतारे। नरसिंहराज विधानसभा सीट पर एसडीपीआई उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहा था। बाकी सभी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। 2018 के विधानसभा चुनाव में भी एडीपीआई ने अपने उम्मीदवार उतारे। इस बार भी नरसिंहराज सीट को छोड़कर बाकी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई।

2014 के लोकसभा चुनाव में एसडीपीआई ने कर्नाटक, केरल, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और मध्य प्रदेश की लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे। सभी सीटों पर इसके उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी एसडीपीआई ने लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। सभी सीटों पर उसके उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी।

क्या पीएफआई और सिमी में कोई कनेक्शन है ?

दरअसल, 1977 से देश में सक्रिय सिमी पर 2006 में प्रतिबंध लगा गया था। सिमी पर प्रतिबंध लगने के चंद महीनों बाद ही पीएफआई अस्तित्व में आया। उसके बाद इस संगठन की एक्टीविटीज में तेजी आ गई और देखते ही देखते इसका विस्तार भी तेजी से होने लगा। इस संगठन की एक्टिविटीज को लेकर साल 2012 से ही अलग-अलग मौकों पर पीएफआई पर कई तरह के आरोप भी लगते रहे हैं। कई बार इसे बैन करने की भी मांग हो चुकी है।

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