भारत और चीन के बीच छठे स्तर की बातचीत के बाद संयुक्त वक्तव्य जारी हुआ है। कमांडर स्तर के छः दौर की बातचीत हो चुकी है। 2 अगस्त 2020 तक पांच दौर की बातचीत हुई थी और 21 सितम्बर को यानि की तकरीबन डेढ़ महीने के बाद छठे दौर की बातचीत हुई है। जिसका संयुक्त वक्तव्य है, जिसमें कई बिन्दुओं पर सहमति हुई है। इस बीच में 2 अगस्त से लेकर 21 सितम्बर के बीच भारत-चीन सीमा विवाद में एक और अहम पड़ाव रहा, वह रहा एससीओ सम्मिट और एससीओ बैठक बेहद अहम रही है।
पांच बिन्दुओं पर बनी सहमति
इस मंच पर भारत ने अपने संदेश को बहुत मजबूती से रखा। भारत-चीन के विदेश मंत्रियों की बैठक में पांच बिन्दुओं पर सहमति हुई कि बातचीत जारी रखते हुए सैनिक हटेंगे। माहौल बिगाड़ने वाली कार्रवाई नहीं होगी और मौजूदा स्थिति दोनों देशों के हित में नहीं है। अग्रिम मोर्चों पर और अधिक सैनिक तैनात नहीं होंगे। इन तमाम सहमतियों से जुड़ी बातें संयुक्त वक्तव्य में भी दिखाई देती है।
एलएसी के दोनों ओर 50 हजार सैनिकों की तैनाती
मौजूदा में, गुरुंग हिल और मगर हिल पर भारतीय सैनिक तैनात हैं। भारतीय जवान चीनी सैनिकों की गतिविधियों पर नज़र रख रहे हैं, क्योंकि इस वक्त जो भारत की पोजीशन है, वह एडवान्टेज पोजीशन है। एलएसी के दोनों ओर करीब 50 हजार सैनिकों की तैनाती है। टैंक, तोपखाने, हवाई रक्षा उपकरणों से लैस हैं। भारतीय सैनिकों की पहाड़ी क्षेत्र में युद्ध कौशल की दक्षता है।
चीन को स्थापित रखना होगा स्टेटस
सर्दियों में तापमान शून्य से काफी नीचे चला जाता है। माइनस 30 डिग्री से भी कम यह तापमान रहता है। ऑक्सीजन का स्तर मैदानी भागों की तुलना में यहां काफी कम रहता है। भारत के एक सैनिक पर 10 लाख रुपए सालाना खर्च आता है। चीन और भारत दोनों के लिए सैनिकों की यहां पर तैनाती निश्चित रूप से एक बड़ा मसला है। हालांकि भारत ने अपने पक्ष को बहुत मजबूती से साफ किया है। भारत का कहना है कि अप्रैल में जो स्टेटस-को था, वही चीन को स्थापित रखना होगा।
बदलता मौसम सैनिकों के लिए लायेगा मुश्किल
सामरिक मामलों के जानकारी आलोक बंसल का कहना है कि जब तक स्थिति यथावत नहीं होती और एलएसी पर स्थिरता नहीं आती, तब तक दीर्घकालीन शांति थोड़ी मुश्किल है। जैसे-जैसे मौसम बदलेगा, ठंड बढ़ती चली जाएगी, वैसे-वैसे दोनों पक्षों के सैनिकों के लिए वर्तमान क्षेत्रों में रुकना और भी ज़्यादा मुश्किल हो जाएगा। साथ ही, सातवें दौर की बैठक के लिए भी सहमति बनी है।
प्रसार भारती से बातचीत में उन्होनें कहा कि यह रणक्षेत्र काफी अधिक ऊंचाई पर है। यहां पर मैदान से जाकर कोई भी व्यक्ति तुरंत लड़ने के लिए तैयार नहीं हो सकता। इसका एक्लेमटाइजेशन का समय काफी लम्बा है। दोनों ही देश इस वक़्त युद्ध नहीं चाहते। दोनों ही देश चाहते हैं कि शांति हो। साथ ही, कोई भी सार्वभौमिकता के साथ समझौता करने को तैयार नहीं है। इस मसले का हल बातचीत से ही निकलेगा। कोर कमांडर स्तर की बातचीत इसकी महत्वपूर्ण कड़ी थी।
