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भारत और चीन के संबंध अभी मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं : विदेश मंत्री

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि भारत और चीन के संबंध आज एक दोराहे पर खड़े हैं और यह किस दिशा में जाएगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि चीन 1988 में हुई सहमति का पालन करता है या नहीं।

दरअसल, विदेश मंत्री एस जयशंकर ने मीडिया की ओर से आयोजित एक संवाद में कहा कि सीमा पर अशांति, खून खराबा और जोर-जबरदस्ती और टकराव होता है तो इसका असर द्विपक्षीय संबंधों पर अवश्य पड़ेगा। उन्होंने कहा कि चीन को यह नहीं सोचना चाहिए की सीमा पर तनाव और संघर्ष की हकीकत को नजरअंदाज कर अन्य क्षेत्रों में संबंधों को आगे बढ़ाया जा सकता है। सीमा पर संघर्ष और तनाव के लिए चीन को दोषी ठहराते हुए उन्होंने कहा कि चीन ने आपसी सहमति को तोड़ा है जिसके कारण संबंध बिगड़े हैं।

चीन ने समझौतों का किया उल्लंघन
विदेश मंत्री ने भारत-चीन के हालिया विवाद की पृष्ठभूमि बतायी और कहा कि 1962 के युद्ध के बाद गतिरोध तोड़ने में 26 साल लगे। 1988 में दोनों देशों के बीच सीमा और द्विपक्षीय संबंधों के बारे में सहमति बनी। इसके कुछ वर्ष बाद 1994 और 1996 में बाद 1994 और 1996 में दोनों देशों के बीच सीमा पर शांति और सामान्य स्थिति बनाने के लिए समझौते हुए। विदेश मंत्री ने कहा कि चीन ने इन समझौतों का उल्लंघन किया, जिनमें यह प्रावधान था कि सीमा क्षेत्र में बड़े पैमाने पर सैनिकों की तैनाती नहीं की जाएगी।
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चीन को याद दिलाया कि अतीत में बनी सहमतियों पर अमल किए जाने से ही यह संभव हो पाया कि दोनों देशों के बीच व्यापार और अन्य क्षेत्रों में संबंधों का विकास हुआ। मौजूदा दौर में जब सीमा पर शांति और स्थायित्व को भंग किया गया तो, अन्य क्षेत्रों पर भी इसका असर पड़ना लाजमी था।

‘क्वाड’ सैनिक गठबंधन नहीं
इस दौरान विदेश मंत्री ने एक बार फिर स्पष्ट किया कि हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में उभर रहा चतुर्गुट (क्वाड) सैनिक गठबंधन नहीं है। उन्होंने कहा कि बहुत से लोग अभी शीत युद्ध की मानसिकता नहीं उभर पाए हैं। उन्होंने कहा कि आज की दुनिया शीत युद्ध की दुनिया से बिल्कुल अलग है। शीत युद्ध की पुनरावृत्ति की बात यथार्थ पर आधारित नहीं है।
भारत के क्वाड के साथ जुड़ाव को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि भारत अपने हितों को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न विकल्पों का सहारा ले रहा है। भारत बहुध्रुवीय विश्व में विश्वास रखता है तथा समान विचार वाले देशों के साथ मिलकर काम करने के लिए तैयार है। उन्होंने अमेरिका के कुछ रक्षा विशेषज्ञों के इस विचार से असहमति व्यक्त की कि क्वाड चीन को काबू में रखने के लिए बनाया जा रहा सैन्य गठबंधन है।

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