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क्रिमिनल प्रोसीजर (आइडेंटिफिकेशन) बिल: क्या है और क्यों पड़ी जरूरत

2014 में सत्ता में आने के बाद ही पीएम मोदी ने स्मार्ट पुलिसिंग का मंत्र दिया था। ऐसे में गृह मंत्री अमित शाह द्वारा लाए गए क्रिमिनल प्रोसीजर (आइडेंटिफिकेशन) बिल यानि आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) विधेयक- 2022 को स्मार्ट पुलिसिंग के लिए बेहतर कदम माना जा रहा है।

दरअसल आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) विधेयक- 2022 पर संसद से पास हो गया है। इसके साथ ही पुलिस को अपराध के दोषी और अन्य की जांच व पहचान के लिए बायोमेट्रिक जानकारी लेने का अधिकार देने संबंधी विधेयक पर संसद की मुहर लग गई। नया बिल बंदी शिनाख्त अधिनियम 1920 का स्थान लेगा। क्या है बिल और क्यों है जरूरी आइए जानते हैं।

क्या है क्रिमिनल प्रोसीजर आइडेंटिफिकेशन कानून

दरअसल अभी कैदियों की पहचान अधिनियम 1920, पुलिस अधिकारियों को दोषियों और गिरफ्तार व्यक्तियों सहित व्यक्तियों की कुछ पहचान योग्य जानकारी जैसे उंगलियों के निशान और पैरों के निशान एकत्र करने की अनुमति देता है। इसके अलावा, मजिस्ट्रेट किसी अपराध की जांच में सहायता के लिए किसी व्यक्ति की माप या तस्वीरें लेने का आदेश दे सकता है। व्यक्ति के बरी होने या डिस्चार्ज होने की स्थिति में, सभी सामग्री को नष्ट कर दिया जाना चाहिए। लेकिन तकनीक में प्रगति हुई है तो अब क्रिमिनल प्रोसीजर आइडेंटिफिकेशन कानून में इसका विस्तार किया गया है।

नए बिल के मुताबिक अब पुलिस और जेल अधिकारी अपराधी और आरोपी के ज्यादा से ज्यादा डेटा जुटा सकेगी। इसमें फिंगरप्रिंट, हथेली के प्रिंट, फुट प्रिंट, फोटो, आइरिस और रेटिना स्कैन, फिजिकल और बायोलॉजिकल सैंपल और उनका विश्लेषण, व्यवहार संबंधी विशेषताएं जिसमें हस्ताक्षर, लिखावट या अन्य जांच करने का अधिकार दिया गया है।

क्यों पड़ी जरूरत

गृह मंत्री अमित शाह के मुताबिक सरकार की मंशा इसके पीछे कानून को मजबूत करना है, बंदियों को सजा के बाद सुधारने का प्रयास करना है और कानून एवं व्यवस्था को मजबूत करना है। यह कानून सुनिश्चित करेगा कि पुलिस अपराधियों से दो कदम आगे रहे। अगली पीढ़ी के अपराधों को पुरानी तकनीकों से नहीं निपटा जा सकता है। आपराधिक न्याय प्रणाली को अगले युग में ले जाने का प्रयास करना होगा।

जांच थर्ड डिग्री से नहीं बल्कि तकनीक एवं सूचना के आधार पर

गृह मंत्री ने कहा कि अन्य देशों की तुलना में सख्ती के मामले में यह कानून ‘बच्चा’ (कुछ नहीं) है। दक्षिण अफ्रीका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, अमेरिका जैसे देशों में अधिक कड़े कानून हैं। यही वजह है कि उनकी आरोपियों को सजा दिलाने की दर बेहतर है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि अपराध की जांच थर्ड डिग्री के आधार पर नहीं बल्कि तकनीक एवं सूचना के आधार पर हो, ऐसे में थर्ड डिग्री से निजात दिलाने के लिए यह विधेयक लाया गया है

डेटा की सुरक्षा

नए बिल में यह प्रावधान है कि अपराधियों का डेटा 75 साल तक सुरक्षित रखा जाएगा। ऐसे में डेटा प्रोटेक्शन को लेकर संदेह व्यक्त किया जा रहा था। इसे लेकर गृह मंत्री ने कहा कि बिल किसी दुरुपयोग के लिए नहीं लाया गया है और इसमें डेटा के दुरुपयोग की कोई गुंजाइश नहीं है। डेटा पूरी तरह से सुरक्षित रहेगा इसका वह आश्वासन देते हैं। उन्होंने कहा कि डेटा को किसी से साझा नहीं किया जाएगा। हालांकि डेटा से जुड़ा कोई प्रश्न प्राप्त होता है, तो उसका डेटा का उपयोग कर उत्तर दिया जाएगा। यह कोर्ट में साक्ष्य के तौर पर उपयोग किया जा सकेगा। अपराधियों के इस डेटा को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की होगी। नए बिल के अनुसार अगर कोई महिलाओं या बच्चों के खिलाफ अपराध में दोषी पाया गया है, तो वे बायोलॉजिकल सैंपल देने से इनकार नहीं कर सकते हैं। 7 साल से अधिक सजा वाले अपराध के चलते हिरासत में लिए गए लोगों पर यही लागू होगा।

बता दें कि बिल पर मानवाधिकार पर चिंता जताते हुए विपक्ष के नेताओं ने विरोध भी किया। इस पर गृहमंत्री ने कहा कि जब बम विस्फोट होते हैं, आतंकवादी हमलों में हजारों लोग मारे जाते हैं, पीड़ितों के भी मानवाधिकार होते हैं, न कि केवल आतंकवादियों के। केंद्र को कानून का पालन करने वाले नागरिकों के मानवाधिकारों की चिंता है।

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