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आरमीनिया-अज़रबैजान के बीच युद्ध का कारण और इतिहास जाने

मध्‍य एशियाई देश आरमीनिया और अज़रबैजान के बीच आज लगातार दूसरे दिन भीषण युद्ध जारी रहा। यह युद्ध है नागोर्नो-काराबाख इलाके को लेकर। इस क्षेत्र को लेकर दोनों देशों के बीच दशकों से विवाद चला आ रहा है और दोनों के बीच जंग भी पहले हो चुकी है। लेकिन इस बार इस जंग ने नया रूप ले लिया है। खास बात यह है अब यह जंग महज दो देशों के बीच सीमित नहीं रह गई है। रूस और तुर्की भी इसमें खुलकर हस्‍तक्षेप कर रहे हैं। तुर्की जहां अज़रबैजान के समर्थन में है, वहीं रूस ने दोनों देशों के साथ व्‍यापारिक रिश्‍ते खत्‍म करने की बात कही है। दोनों देशों के बीच ह‍िंसा ने अब भयावह रूप ले लिया है। सोमवार को शुरू हुई इस जंग में दर्जनों लोग मारे जा चुके हैं। अधिकारियों के मुताबिक सेना के 26 लोगों के मारे जाने के बाद मृतकों की कुल संख्‍या 80 के पार हो गई है। यहां पर दोनों देशों की सेनाओं की टुकड़‍ियां बढ़ायी जा रही हैं।

एक दशक से अधिक समय तक चला था युद्ध

यह जंग नागोर्नो-काराबाख नाम के पहाड़ी इलाके को लेकर चल रही है। अज़रबैजान का दावा है कि यह इलाका उसका है, हालांकि 1992 की जंग के बाद से इस क्षेत्र पर आरमीनिया का कब्‍जा है। इतिहास के पन्‍ने पलटें तो इस क्षेत्र पर अल्‍गाववादी संगठनों का वर्चस्व रहा है। इसके चलते यहां कई दशकों तक जातीय संघर्ष हुए। दोनों देशों के बीच का यह विवाद कई दशक पुराना है। 1980 की शुरुआत से लेकर 1992 तक इस क्षेत्र को लेकर दोनों देशों के बीच जंग चली। उस दौरान 30 हजार से अधिक लोग मारे गए थे और करीब 10 लाख से ज्यादा लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा। 1994 में युद्धविराम के बाद भी यहां बीच-बीच ह‍िंसा की खबरें आती रहती थीं। दरअसल ये दोनों देश युद्ध विराम पर तो राज़ी हुए, लेकिन शांति समझौते पर कभी राज़ी नहीं हुए।

जिस वक्त नागोर्नो-काराबाख में जनमत कराया गया, तब दोनों ओर से भीषण हिंसा हुई और लाखों की संख्‍या में लोग मारे गए। स्थिति तब और ज्यादा खराब हो गई जब क्षेत्र के स्‍थानीय प्रशासन ने आरमीनिया के साथ जुड़ने का मत जाहिर किया। ऐसा इसलिए किया गया, क्योंकि यह क्षेत्र आरमीनियाई बहुल्‍य क्षेत्र है। 1992 तक स्थिति और भी खराब हो गई और लाखों लोग विस्‍थापित हो गए।

1994 में रूस के हस्‍तक्षेप के बाद आरमीनिया और अज़रबैजान के बीच युद्ध विराम हुआ। लेकिन विवाद जारी रहा और तीन दशक बाद एक बार फिर दोनों ओर से युद्ध विराम का उल्‍लंघन किया गया है। आपको बता दें कि नागोर्नो-काराबाख में रिपब्लिक ऑफ अर्तसाख का शासन है, लेकिन अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर अज़रबैजान को यहां के शासन की मान्‍यता प्राप्‍त है।

कैसे शुरू हुई वर्तमान जंग

जुलाई 2020 में दोनों देशों के लोगों के बीच ह‍िंसक झड़प हुई, जिसमें 16 लोग मारे गए। उसके बाद अज़रबैजान में जनता का गुस्सा भड़क उठा और व्‍यापक स्‍तर पर प्रदर्शन हुए। लोगों की मांग थी कि देश इस इलाके को अपने कब्‍जे में ले। थोड़े ही दिन में दोनों देश एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप गढ़ने लगे। अज़रबैजान ने कहा कि जब आरमीनियाई लोगों ने अज़रबैजान के लोगों की हत्‍या की, तब उन्‍होंने जवाबी कार्रवाई की। यह भी दावा किया गया कि उन्‍होंने आरमीनिया के आतंकियों को पकड़ लिया है। वहीं आरमीनिया ने दावा किया है कि अज़रबैजान ने शांति को भंग किया है। दोनों देशों के दावों पर गौर करें, तो इस दौरान दर्जनों लोगों की मौत हुई। इससे पहले यहां 2016 में भी भीषण जंग हुई थी, जिसमें करीब 200 लोगों की मौत हुई।

कई देश हो सकते हैं प्रभावित

अगर यह युद्ध ज्यादा दिन तक चला तो कई देशों की अर्थव्‍यवस्‍था बुरी तरह प्रभावित हो सकती हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि इस इलाके से गैस और तेल की पाइपलाइन गुजरती हैं। ये वो पाइपलाइन हैं, जिनके माध्‍यम से रूस और तुर्की तक तेल की सप्‍लाई की जाती है। इसमें बाकू-तब्‍लीसी-सेहान ऑयल पाइपलाइन, वेस्‍टर्न रूट एक्‍सपोर्ट ऑयल पाइपलाइन, ट्रांस एनाटोलियन गैस पाइपलाइन और साउथ कौकेशस गैस पाइपलाइन मुख्‍य रूप से शामिल हैं।

अज़रबैजान में तुर्क लोगों की आबादी भी बड़ी संख्‍या में है। यही कारण है कि तुर्की इसे मित्र देश मानता है। वहीं आरमीनिया के साथ तुर्की के संबंध कभी अच्‍छे नहीं रहे हैं। जब-जब आरमीनिया और अज़रबैजान के बीच संघर्ष हुआ तब-तब तुर्की ने आरमीनिया के साथ अपनी सीमाएं बंद कर दीं। ताज़ा विवाद गहराने के बाद एक बार फिर तुर्की आरमीनिया के खिलाड़ खड़ा है। वहीं रूस आरमीनिया के साथ है। यहां रूस का एक सैन्य ठिकाना भी है। हालांकि रूस के राष्‍ट्रपति व्लादमिर पुतिन ने दोनों देशों से युद्ध विराम की अपील की है। वहीं तुर्की ने सीधे तौर पर इस जंग में नहीं शामिल होने की बात दोहराते हुए अज़रबैजान को आगे बढ़ने की सलाह दी है। वहीं आरमीनिया से अपील की है, कि वो पीछे हटे।

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