History

आज ही के दिन देश को मिले थे दूसरे प्रधानमंत्री ‘लाल बहादुर शास्त्री’, जानें श्रीवास्तव से शास्त्री जी बनने तक का सफर

तारीख नौ जून, वर्ष 1964, देश अपने दूसरे प्रधानमंत्री ”लाल बहादुर शास्त्री ” से रूबरू हो रहा था। प्रधानमंत्री के रूप में शास्त्री जी का कार्यकाल ऐसा नहीं है कि एक बहुत लंबा सफर रहा हो, किंतु अपने अल्‍प कार्यकाल में वे जो कुछ भी कर गए हैं, इतिहास के पन्‍नों में दर्ज है और नया इतिहास बनने के बाद भी आज भी लिखे पन्‍नों में उन्‍हें श्रद्धा से याद किया जाता रहेगा।

देश के 18 महीने तक ही रहे थे प्रधानमंत्री

9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 को अपनी मृत्यु तक लगभग 18 महीने भारत के प्रधानमंत्री रहे। इस प्रमुख पद पर उनका कार्यकाल अद्वितीय रहा है। शास्त्री जी ने काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि प्राप्त की और उसके बाद वे पूरे देश में प्‍यार से शास्त्री जी के नाम से ही पुकारे जाने लगे। वैसे देखा जाए तो उनके जीवन और अपने राष्ट्र को सर्वस्‍व समर्पि‍त कर देने के अनेक पहलु हैं, किंतु हम यहां कुछ विशेष बिन्‍दुओं को लेकर बात करेंगे।

देश के युवाओं को ऐसे मिलती है उनसे प्रेरणा

नैशनल बुक ट्रस्‍ट की ओर से प्रकाशित वरिष्‍ठ बाल साहित्‍यकार डॉ. राष्ट्रबंधु की पुस्तक ‘लाल बहादुर शास्‍त्री’ को वैसे तो बाजार में आए आठ साल हो गए हैं, लेकिन उसमें लिखा हर संस्‍करण आज भी न सिर्फ शास्त्री जी के जीवन से परिचित कराने के लिए पर्याप्त है बल्कि हर किसी को, खासकर बच्चों के जीवन में अनंत प्रेरणा और सतत आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा भी देते हैं।

एक घटना से बदला बालक ‘लाल बहादुर’ का जीवन

सिर से पिता की छांव उठने के बाद मां बच्चों को लेकर अपने पिता के यहां चली आई। जहां पांच-छह साल की अवस्था में लाल बहादुर का पढ़ाई के लिए दूसरे गांव के स्‍कूल में प्रवेश दिलाया गया। वह अपने कुछ दोस्तों के साथ विद्यालय जाते और साथ ही वापिस आते थे। रास्‍ते में एक बाग था। एक दिन बगीचे की रखवाली करने वाला नहीं दिख रहा था, तो बच्‍चों को शैतानी करने का अवसर मिल गया, लाल बहादुर के साथ के लड़कों ने इसे अच्‍छा मौका समझ पेड़ों पर चढ़ना शुरू कर दिया और फल तोड़ने के साथ ही खूब उधम भी मचाया। बच्‍चों की हो रही तेज आवाज सुन माली वहां दौड़ा चला आया। बाकी सब तो भाग गए, मगर अबोध ‘लाल बहादुर’ वहीं खड़े रहे। हालांकि उनके हाथ में कोई फल नहीं था, लेकिन इस बाग से तोड़ा हुआ एक गुलाब का फूल अवश्य था।

एक फूल तोड़ने की मिली इतनी बड़ी सजा

माली अपने बाग की हुई बुरी हालत देख बौखला उठा और फिर नन्‍हे शास्‍त्री को खड़ा देखा, तो उसका पूरा गुस्सा जैसे उन्‍हीं पर उतर गया। तेज आवाज आई और एक झन्‍नाटेदार गाल पर तमाचा, बच्‍चा रोने लगा। मासूमियत के साथ बालक लाल बहादुर बोले, “तुम नहीं जानते, मेरा बाप मर गया है फिर भी तुम मुझे मारते हो। दया नहीं करते।” उन्‍हें लगा था कि पिता के न होने से लोगों की सहानुभूति मिलेगी और एक फूल तोड़ने की गलती को माफ कर दिया जाएगा, पर ऐसा हुआ नहीं। तमाचे के बाद वह वहीं खड़ा सुबकता रहा। माली ने देखा कि बच्‍चा इसके बाद भी अपने स्‍थान पर ही खड़ा है, उसे डर नहीं लगा क्‍या, ऐसा विचार करते हुए, उसने एक तमाचा और जड़ दिया…फिर उसके बाद, जो इस माली ने नन्‍हें लाल बहादुर से कहा वह उनके लिए जिंदगी भर की सीख बन गई।

नजरिया बदला तो नाम भी बदल गया

माली ने कहा-“जब तुम्‍हारा बाप नहीं है, तब तो तुम्‍हें ऐसी गलती नहीं करनी चाहिए। और सावधान रहना चाहिए। तुम्‍हें तो नेकचलन और ईमानदार बनना चाहिए।” लाल बहादुर शास्‍त्री के मन में उस दिन यह बात बैठ गई कि जिनके पिता नहीं होते, उन्‍हें सावधान रहना चाहिए। उन्‍हें सदैव सत्‍य के मार्ग पर चलना चाहिए क्‍यों‍कि उनकी छोटी सी ग‍लती को भी कोई माफ नहीं करता है। जीवन में कुछ पाना हो, तो उसके लायक बनना होगा और उसके लिए मेहनत ही एक उम्‍मीद है। इसके बाद से जैसे इस बालक का पूरा नजरिया ही जीवन को देखने का बदल गया। काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि मिलते ही लाल बहादुर ने अपने नाम के साथ जन्म से चला आ रहा जातिसूचक शब्द ‘श्रीवास्तव’ हमेशा के लिए हटा दिया और अपने नाम के आगे ‘शास्त्री’ लगा लिया।

भारतीय स्‍वाधीनता आन्‍दोलन के कर्मठ सिपाही

महात्मा गांधी के सच्‍चे अनुयायी शास्‍त्री जी भारतीय स्वाधीनता संग्राम के सभी महत्वपूर्ण कार्यक्रमों व आन्दोलनों में सक्रिय भागीदारी निभाते रहे और उसके परिणामस्वरूप उन्हें कई बार जेलों में भी रहना पड़ा। स्वाधीनता संग्राम के जिन आंदोलनों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही, उनमें 1921 का असहयोग आंदोलन, 1930 का दांडी मार्च तथा 1942 का भारत छोड़ो आन्दोलन उल्लेखनीय हैं।

“मरो नहीं, मारो” का दिया था नारा.

बाद के दिनों में “मरो नहीं, मारो” का नारा लाल बहादुर शास्त्री ने दिया, जिसने एक क्रान्ति को पूरे देश में प्रचण्ड किया। उनका दिया हुआ एक और नारा ‘जय जवान-जय किसान’ तो आज भी लोगों की जुबान पर है। यह नारा देकर उन्होंने न सिर्फ देश की रक्षा के लिए सीमा पर तैनात जवानों का मनोबल बढ़ाया बल्कि खेतों में अनाज पैदा कर देशवासियों का पेट भरने वाले किसानों का आत्मबल भी तात्‍कालीन समय में बढ़ाया था।

पाकिस्तान को दिखा दिया था थोड़े से दिनों में ही आईना

लाल बहादुर शास्त्री जी को देश इसलिए भी सदैव नमन करता रहेगा क्योंकि 1965 में पाकिस्तान हमले के समय बेहतरीन नेतृत्व उन्‍होंने देश को प्रदान किया था। न सिर्फ सेना का मनोबल बढ़ाया, उसे अपनी कार्रवाई करने की खुली छूट दी बल्कि भारतीय जनता का उत्साह एवं आत्मबल को भी बनाए रखा। शास्त्री जी ने तीनों सेना प्रमुखों से तुरंत कहा आप देश की रक्षा कीजिए और मुझे बताइए कि हमें क्या करना है?
शास्त्री के सचिव सीपी श्रीवास्तव ने अपनी किताब ‘ए लाइफ ऑफ ट्रूथ इन पॉलिटिक्स’ में लिखा है, 10 जनपथ, प्रधानमंत्री का कार्यालय… समय रात के 11 बजकर 45 मिनट, प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री अचानक अपनी कुर्सी से उठे और अपने दफ्तर के कमरे के एक छोर से दूसरे छोर तक तेजी से चहलकदमी करने लगे।

युद्ध में मारे गए थे पाकिस्तान के 3,800 सैनिक

“शास्त्री ऐसा तभी करते थे, जब उन्हें कोई बड़ा फैसला लेना होता था। मैंने उनको बुदबुदाते हुए सुना… अब तो कुछ करना ही होगा। “सीपी श्रीवास्तव लिखते हैं कि उनके चेहरे को देख कर ऐसा लग रहा था कि उन्होंने कोई बड़ा फैसला कर लिया है। कुछ दिनों बाद हमें पता चला कि उन्होंने तय किया था कि कश्मीर पर हमले के जवाब में भारतीय सेना लाहौर की तरफ मार्च करेगी। इशारा पाते ही उसी दिन रात्रि में करीब 350 हवाई जहाजों ने पूर्व निर्धारित लक्ष्यों की ओर उड़ान भरी। कराची से पेशावर तक जैसे रीढ़ की हड्डी को तोड़ा जाता है, ऐसा करके सही सलामत वे लौट आए। इतिहास गवाह है, उसके बाद क्‍या हुआ। शास्त्री जी ने इस युद्ध में राष्ट्र को उत्तम नेतृत्व प्रदान किया और ”जय जवान-जय किसान” का नारा देकर, इससे भारत की जनता का मनोबल बढ़ाया। पाकिस्तान के 3,800 सैनिक मारे जा चुके थे। इस युद्ध में भारत ने पाकिस्तान के 1840 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा भी कर लिया था। ऐसे में पाकिस्‍तान के सामने हथियार डालने के अलावा अन्‍य कोई मार्ग शेष नहीं बचा था।

शास्त्री जी के विचारों की है आज भी प्रासंगिकता

देश को मिले उनके नेतृत्व और उनके विचारों को फिर हम अपने जीवन में अपनाएं, यह वर्तमान की बहुत बड़ी जरूरत है। उन्‍होंने कहा है कि यदि कोई एक व्यक्ति भी ऐसा रह गया, जिसे किसी रूप में अछूत कहा जाए, तो भारत को अपना सिर शर्म से झुकाना पड़ेगा। इसलिए जितना जल्दी हो सके अपने मन से यह विचार तुरंत त्‍याग दो।

वे कई बार कहा करते थे कि देश की तरक्की के लिए हमें आपस में लड़ने के बजाय गरीबी, बीमारी और अज्ञानता से लड़ना होगा। साथ ही उनका कहना रहता था कि देश के प्रति निष्ठा, सभी निष्ठाओं से पहले आती है और यह पूर्ण निष्ठा ऐसी होनी चाहिए, जिसमें कोई यह प्रतीक्षा नहीं कर सकता कि बदले में उसे क्या मिलता है। उनका कहना रहता था, हर कार्य की अपनी एक गरिमा है और हर कार्य को अपनी पूरी क्षमता से करने में ही संतोष प्राप्त होता है। इसलिए प्रत्‍येक कार्य को पूरे समर्पण के साथ करना है। वास्‍तव में देश के पूर्व प्रधानमंत्री ”लाल बहादुर शास्‍त्री” जी के यह विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक है जितने कि अपने समय में रहे हैं।

(इनपुट-हिन्‍दुस्‍थान समाचार)

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.

3 × 3 =

News is information about current events. News is provided through many different media: word of mouth, printing, postal systems, broadcasting, electronic communication, and also on the testimony of observers and witnesses to events. It is also used as a platform to manufacture opinion for the population.

Contact Info

Address:
D 601  Riddhi Sidhi CHSL
Unnant Nagar Road 2
Kamaraj Nagar, Goreagaon West
Mumbai 400062 .

Email Id: [email protected]

West Bengal

Eastern Regional Office
Indsamachar Digital Media
Siddha Gibson 1,
Gibson Lane, 1st floor, R. No. 114,
Kolkata – 700069.
West Bengal.

Office Address

251 B-Wing,First Floor,
Orchard Corporate Park, Royal Palms,
Arey Road, Goreagon East,
Mumbai – 400065.

Download Our Mobile App

IndSamachar Android App IndSamachar IOS App

© 2018 | All Rights Reserved

To Top
WhatsApp WhatsApp us