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अफगानिस्तान में बढ़ता तालिबान का प्रभाव दुनिया के लिए पैदा करता चुनौती

अफगानिस्तान में लगातार तालिबान अपने पैर तेजी से पसार रहा है वह जल्द से जल्द पूरे अफगानिस्तान पर अपना अधिकार कर लेना चाहता है जिससे दुनिया की कोई भी शक्ति उसे चुनौती ना दे सके इसलिए वह पूरी तरह अफगानिस्तान को जल्द से जल्द अपने कब्जे में ले जाना चाहता है जिसके लिए उसने बकायदा जंग छेड़ रखा हुआ है गजनी और कंधार में उसका लगातार अफगान सुरक्षाबलों के साथ भीषण मुठभेड़ चल रहा है तालिबान चाहता है कि वह बिना किसी विदेशी सेना के हस्तक्षेप के वह अफगान सुरक्षाबलों से लड़ें इसलिए उसने तुर्की को धमकी भरे लहजे में काबुल हवाई अड्डे की सुरक्षा लेने पर बुरा अंजाम करने की धमकी दी है इधर तुर्की भी काबुल हवाई अड्डे की सुरक्षा अपने हाथ में लेना चाहता है जिससे वहां नाटो और अमेरिकी सेना आसानी से अफगानी सर जमी पर उतर कर तालिबान का मुंहतोड़ जवाब दे सके और तुर्की अभी दिखाना चाहता है कि वह किस तरह मुस्लिम देशों की सुरक्षा के लिए आगे आ रहा है।

अफगानिस्तान की मौजूदा हालात बहुत ही दयनीय है ऐसे मे तालिबान लगातार यह दावा कर रहा है कि उसने अफगानिस्तान के 85% से अधिक भूभाग पर कब्जा कर लिया है जो विश्व के लिए बेहद की चिंता का विषय है क्योंकि तालिबान ना सिर्फ वहां कब्जा कर रहा है बल्कि वहां के लोगों को मार भी रहा है वह लोगों के घरों और आसपास मौजूद स्कूलों में आग लगा दे रहा है, ऐसे हालात में लोग इन विपरीत परिस्थितियों मैं घरों को छोड़ इस चिल्चिताती धूप के बीच खुले जगह में रहने के लिए मजबूर हैं, उनके पास ना तो खाने के लिए समान है और ना पीने के लिए पानी है हालांकि अफगानिस्तान सरकार लगातार तालिबान का मुकाबला कर रही है अफगान सुरक्षा बल लगातार इनके अधिकार वाले क्षेत्रों को मुक्त करा रहे हैं दोनों तरफ से लगातार संघर्ष जारी है इसी बीच वहां की सरकार ने सभी विकास कार्य के बजट को रक्षा बजट में स्थानांतरित करने का निर्णय लिया है लेकिन अब अफगानिस्तान को विदेशी ताकतों की सख्त जरूरत महसूस हो रही है ।

अफगानिस्तान को विदेशी मदद की जरूरत

मौजूदा समय में तालिबान ने लगभग 20 राज्यों के 421 जिलों पर अपना कब्जा जमाया हुआ है जो कहीं ना कहीं आधे अफगानिस्तान पर कब्जा माना जा रहा है लेकिन तालिबान लगातार दावा कर रहा कि उसने अफगानिस्तान के 85% प्रतिशत भूभाग पर अपना अधिकार कर लिया है तालिबान के 78000 लड़ाते 300000 से अधिक अफगानी सुरक्षा बलों पर भारी पड़ता है जिसके चलते तालिबान ने अप्रैल से अभी तक के जारी संघर्ष में 3600 नागरिकों अफगान मिलिट्री के 1000 जवानों और अफसरों संघर्ष में मार दिया है और जारी संघर्ष में 3000 से ज्यादा लोग घायल भी हुए हैं दोनों तरफ से जारी संघर्ष में तालिबान लगातार अफगान सैनिकों पर भारी पड़ रहा है हालांकि अफगानिस्तानी सैन्य बलों ने कम बैक करते हुए 10 से ज्यादा जिलों पर दोबारा अपना कब्जा कर लिया है जिन पर तालिबान ने कब्जा जमाया हुआ था लेकिन फिर भी उनको विदेशी सैनिकों की मदद की सख्त जरूरत है क्योंकि तालिबान लगातार रणनीति बनाकर युद्ध कर रहा है वह पहले गांव और दूरदराज के इलाकों पर कब्जा करता है और फिर वो सीमावर्ती इलाकों में कब्जा करता है जिसमें उसके लड़के लगातार अफगानिस्तान के सैनिकों को मात देते हुए राजधानी काबुल की तरफ बढ़ रहे हैं उनका यह हमला करने का रणनीति बहुत ही चुनौतीपूर्ण है क्योंकि वो सीधे केंद्र पर हमला करने के बजाए किनारे से तोड़ने की चाल चल रहा है ऐसे में तालिबान को रोकने के लिए अफगानिस्तान को तुरंत एयर डिफेंस की जरूरत है लेकिन अफगानिस्तान की वायु सेना अभी इतनी ताकतवर नहीं है कि वह तालिबान को रोक सके इसलिए अब उसकी सारी उम्मीदें अमेरिका और नाटो देश पर टिका हुआ है

तालिबान के कब्जे से दुनिया पर प्रभाव

अगर तालिबान को रोकने के लिए कोई बड़ा कदम नहीं उठाया गया तो यह बिजली के रफ्तार की तरह अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज हो जाएगा जिसका राजनीतिक और कूटनीतिक दृश्य से काफी प्रभाव पड़ेगा क्योंकि दुनिया का 90 % अफीम अफगानिस्तान से आता है और तालिबान का इस पर कब्जा है जो तालिबान के आतंकी फैक्ट्री में सबसे बड़ा मददगार है दूसरी तरफ तालिबान अंतरराष्ट्रीय समुदाय के बीच अपने प्रतिनिधियों को भेज रहा है और दुनिया को यह संदेश दे रहा है की यह नया तालिबान है जो आतंकी नहीं बल्कि अफगान के लोगों की आवाज है लेकिन दुनिया तालिबान के इस बात पर भरोसा नहीं करती क्योंकि वह कट्टर शरिया कानून का पक्षधर है और उसके सजा देने का तरीका बेहद क्रूर है वह अफगानिस्तान के आम लोगों सर्वजनिक फांसी गोली मारकर हत्या अंग भंग जैसी सजा देने के लिए कुख्यात है।

ऐसे में आइए जानते हैं कि दुनिया का इस पर क्या प्रभाव पड़ेगा

भारत

अफगानिस्तान में जो हालात बन रहे हैं तालिबान का जैसे-जैसे उस पर प्रभाव बढ़ रहा है उससे भारतीय राजनयिक हलकों में चिंता बीते गुरुवार को भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर प्रसाद ने ईरान की यात्रा की थी और जिस दिन मैं तेहरान में थे उसी दिन अफगान सरकार और तालिबान का एक प्रतिनिधि मंडल वहां मौजूद था ऐसे में तमाम कयास लगाए जा रहे हैं अफगानिस्तान को लेकर भारत बेहद चौकन्ना है क्योंकि वह नहीं चाहता जो कुछ अफगानिस्तान में हो रहा है उसकी आंख कश्मीर तक पहुंचे भारत मौजूदा समय में अफगान सरकार का समर्थक है और उसने साल 2002 से अब तक करीब अफगानिस्तान में 3 अरब डालर का निवेश किया है जो वहां की रक्षा और अर्थव्यवस्था दोनों से जुड़ा हुआ है ऐसे में भारत नहीं चाहता कि तालिबान का प्रभाव अफगानिस्तान पर बढ़े क्योंकि अगर तालिबान की स्थिति मजबूत होती है तो यह भारत के लिए अच्छी खबर नहीं होगी क्योंकि तालिबान का हक्कानी नेटवर्क लगातार भारत के निवेश कई बार निशाना बना चुका है, ऐसे में जब अमेरिका अपनी सेना वापस बुला रहा है तो भारत के लिए लगातार चुनौती बढ़ रही है भारत ने अफगानिस्तान में काफी निवेश किया है जिसमें से वहां 72 सौ किलोमीटर के नार्थ साउथ कॉरिडोर में निवेश है जो ईरान से लेकर रूस तक भारत की पहुंच बढ़ाएगा ऐसे में अगर तालिबान कब्जा करता है यह परियोजना पूरी तरह ध्वस्त हो सकता है ऐसे में भारत बेहद सधे कदम से इस को देख रहा है।

ईरान

तालिबान ने दावा किया है कि वह दो हफ्तों में लगभग पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा कर लेगा ऐसे में ईरान की चिंताएं भी बढ़ने लगी है क्योंकि ईरान और अफगानिस्तान के बीच 945 किलोमीटर लंबी सीमा है और तालिबान ने इस्लाम कला इलाके पर कब्जा कर लिया है जो ईरान की सीमा से सटा हुआ है इसी बीच ईरान ने एक बयान मैं कहा है कि वह अफगानिस्तान में जारी संकट को सुलझाने के लिए प्रतिबद्ध है।

तुर्की

जब से अमेरिका ने सेना को वापस बुलाने की घोषणा की है उसके बाद अफगानिस्तान में तुर्की की भूमिका बढ़ने लगी है और इसलिए तालिबान ने तुर्की को काबुल एयरपोर्ट को लेकर धमकी भी दिया है लेकिन अगर तुर्की का प्रभाव अफगानिस्तान मैं बढ़ता है तो उसका असर भारत पर पड़ेगा क्योंकि तुर्की ने कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान का साथ दिया था ऐसे में भारत के लिए यह चुनौती होगी कि वह कैसे तुर्की के साथ समन्वय स्थापित करेगा।

चीन

चीन की शिंजियांग प्रांत की सीमा अफगानिस्तान के साथ 8 किलोमीटर लंबी है और उसने पाकिस्तान में काफी निवेश किया हुआ है ऐसे में अगर अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा होता है तो उसका सीधा प्रभाव पाकिस्तान पर भी पड़ेगा और दूसरा शिंजियांग प्रांत में सक्रिय आतंकी संगठन ईटीआईएएम संगठन को अफगानिस्तान में पनाह ओर मदद मिल सकता है हालांकि तालिबान यह कह चुका है कि वह चीन के बिगर अलगाववादी लड़ाको को अफगानिस्तान में प्रवेश करने की अनुमति नहीं देगा।

रुस

कुछ दशक पहले सोवियत संघ ही था जिसकी लाल सेना ने चारों तरफ से घिरे अफगानिस्तान पर कब्जा जमा लिया था और फिर अफगान के समर्थक में कई देशों ने संसाधन भेजें और अफगान मुजाहिदीन का उदय हुआ रूस करीब 10 साल तक अफगानिस्तान में जमा रहा लेकिन अंत में उसे लगभग वहां से भागना पड़ा ऐसे में रूस को यह चिंता है कि अगर अमेरिका सेना वापस बुलाता है तो अफगानिस्तान इस्लामिक कट्टरवाद का गढ़ बन सकता है और तब यह पूरे मद्ध एशिया के लिए खतरा हो सकता है और रूस इस खतरे से बच नहीं सकता इसलिए वह तालिबान के साथ अच्छे संबंध बनाकर चल रहा है की ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान की सीमा अफगानिस्तान से लगती है और रूस का उनके ऊपर काफी प्रभाव है।

पाकिस्तान

आतंकवाद का दंस झेले पाकिस्तान के लिए तालिबान किसी बड़े खतरे से कम नहीं है क्योंकि पाकिस्तान की लगभग 2611 किलोमीटर सीमा अफगानिस्तान के साथ लगता है और लगातार पाकिस्तान में विद्रोही संगठन सरकार के खिलाफ हमलावर हैं ऐसे में अगर अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा होता है तो वहां से बड़ी संख्या में लोग पाकिस्तान की तरफ पलायन करेंगे और पाकिस्तान की स्थिति अभी ऐसी नहीं है जो ऐसे किसी स्थिति को झेल सके और उसे यह भी डर सता रहा है कि अगर पाकिस्तान तालिबान (तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान) जिसे पाकिस्तानी सैनिकों ने खदेड़ दिया था वह इन शरणार्थियों के वेश में वापस आ जाता है तो पाकिस्तान के लिए खतरा हो सकता है और आशा भी कहा जाता है कि पाकिस्तान तालिबान का सबसे बड़ा मददगार है और तालिबान के बड़े कमांडर पाकिस्तान के शहरों में छुपकर ऑपरेशन को अंजाम देते हैं।

अमेरिका

अफगानिस्तान में अमेरिका एवं नाटो सेनाओं की जंग 2001 में शुरू हुई थी इस जंग में तालिबान विरोधी सभी देश संगठन साथ आए अमेरिका ने स्पेशल फोर्स के साथ साथ मिलिशिया लड़ाकों को भी जंग में उतारा शुरुआत में काबुल कंधार तालिबान को खदेड़ कर वहां पर वापस अपना कब्जा जमा लिया और दिसंबर 2001 में टोरा बोरा पर्वतों से तालिबान का तत्कालीन सरगना ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान भाग गया था और इस बीच अफगानिस्तान में हामिद करजई कि नेतृत्व वाली सरकार का गठन किया गया इस दौरान अमेरिकी सेना इराक में सद्दाम हुसैन को सत्ता से बेदखल करने में जुट गई और यह अभियान 2007 तक चला लेकिन इसी बीच तालिबान अपना पर फिर से पसारना शुरू कर दिया 2017 में डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने 2018 से 2020 तक तालिबान शांति वार्ताएं और समझौते के प्रयास किए और 29 जनवरी 2020 को अमेरिका ने तालिबान के साथ अफगानिस्तान से सेना वापस बुलाने पर समझौता कर लिया उसके बाद वाइडेन की सरकार बनते ही उन्होंने अफगानिस्तान से पूरी तरह सैनिकों को वापस बुलाने का निर्णय कर लिया जिसके बाद तालिबान ने लगातार अफगानिस्तान पर कब्जा करना शुरू कर दिया है।

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