सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को रोहिंग्या शरणार्थियों के निर्वासन पर तात्कालिक रूप से रोक लगाने के लिए की गई अंतरिम याचिका को खारिज कर दिया है लेकिन साथ ही ये आश्वासन दिया है कि जम्मू में बंद रोहिंग्या प्रवासियों को कानून का पालन किए बिना म्यांमार नहीं भेजा जाएगा। कोर्ट ने जम्मू में हिरासत में लिए गए लगभग 150 रोहिंग्याओं की रिहाई का आदेश देने से इनकार कर दिया है। न्यायालय ने यह भी कहा कि भारत शरणार्थी सम्मेलन का भागीदार नहीं था और साथ ही वह वर्तमान में म्यांमार में हो रही घटनाओं पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकता।
याचिका में रोहिंग्या शरणार्थियों को तत्काल रिहा करने की की गई थी मांग
याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील प्रशांत भूषण ने रोहिंग्याओं के निर्वासन पर रोक लगाने की मांग की थी तथा जम्मू में बंद रोहिंग्या शरणार्थियों की तत्काल रिहाई की भी मांग की गई थी। 11 मार्च को लंबित जनहित याचिका में एक अंतरिम याचिका दायर की गई थी जिसमें जम्मू में रोहिंग्या शरणार्थियों को तत्काल रिहा करने की मांग की गई थी। 26 मार्च को मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और वी रामसुब्रमण्यम की पीठ ने याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र की ओर से याचिका का किया विरोध
दलील के दौरान, याचिकाकर्ता की ओर से वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि म्यांमार में सैन्य बल द्वारा रोहिंग्या बच्चों की हत्या, छेड़छाड़ और यौन शोषण किया जाता था, जो कि अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकारों का हनन है। वहीं सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र सरकार की ओर से आवेदन का विरोध किया था। उन्होंने कहा, “असम के लिए पहले भी ऐसा ही आवेदन किया गया था। हम हमेशा म्यांमार के संपर्क में हैं और जब वे पुष्टि करते हैं कि व्यक्ति उनका नागरिक है, तब ही निर्वासन किया जाएगा।”
मोहम्मद सलीमुल्लाह ने दायर की थी याचिका
रोहिंग्या शरणार्थी मोहम्मद सलीमुल्लाह द्वारा दायर आवेदन में कहा गया है कि यह भारत में शरणार्थियों के निर्वासन के अधिकार को सुरक्षित और संरक्षित करने के लिए जनहित में दायर किया गया है। याचिका में कहा गया है कि यह रोहिंग्या शरणार्थियों जिन्होंने म्यांमार में अपने समुदाय के खिलाफ हिंसा और भेदभाव से बचने के बाद भारत में शरण ली है उनके निर्वासन के खिलाफ संविधान के अनुच्छेद 51 (C), अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए अधिकारों की रक्षा करने के लिए दायर की गई है।
भारत सरकार के लिए गैर-वापसी नियम बाध्यकारी नहीं
वहीं जम्मू-कश्मीर प्रशासन की ओर से हस्तक्षेप करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने तर्क दिया कि गैर-वापसी नियम भारत सरकार के लिए बाध्यकारी नहीं था क्योंकि इसने इससे संबंधित किसी अंतरराष्ट्रीय संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। म्यांमार की सेना द्वारा कथित तौर पर किए गए हिंसक हमलों के कारण उस देश में पश्चिमी राखीन राज्य से रोहिंग्या समुदाय के लोगों ने भारत और बांग्लादेश में पलायन किया था । इनमें से कई भारत के जम्मू, हैदराबाद, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली-एनसीआर और राजस्थान में बस गए थे।
