दिल्ली में प्रदूषण को कम करने के लिए धान की पराली को गलाने की दवा का घोल बनाने की शुरुआत हो चुकी है। दिल्ली के किसानों के लिए खरखरडी नाहर गांव में दवा का केंद्र बनाया गया है जिसका शुभारंभ मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने मंगलवार को किया है।
केजरीवाल और मंत्री गोपाल राय ने नजफगढ़ के केंद्र में जाकर बायो-डिकंपोज़र से पराली को खाद में बदलने की तकनीक का जायजा लिया। मुख्यमंत्री केजरीवाल ने बताया कि दिल्ली में अब किसानों को पराली जलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। बायो-डिकंपोजर तकनीक से पराली को खाद में बदलने के लिए दिल्ली सरकार ने बड़े स्तर पर घोल बनाने का काम शुरू कर दिया है।
उन्होंने बताया कि आज हमने नजफगढ़ स्थित केंद्र का निरीक्षण किया और वहां मौजूद पूसा इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों और किसानों से बात की। दिल्ली में अब किसानों को पराली जलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। बायो-डिकंपोज़र तकनीक से पराली को खाद में बदलने के लिए दिल्ली सरकार ने बड़े स्तर पर घोल बनाने का काम शुरू कर दिया है।
700 हेक्टेयर जमीन पर होगा प्रयोग
केजरीवाल ने बताया कि तीन-चार साल से पूसा इंस्टीट्यूट इस पर रिसर्च कर रहा था कि आज के समय दिल्ली में लगभग 700 हेक्टेयर जमीन है जहां नॉन बासमती राइस उगाई जाती है। पूरे 700 हेक्टेयर जमीन के ऊपर दिल्ली सरकार इस बार घोल का छिड़काव कर आएगी, सिर्फ किसानों को सहमति देनी है कि आप मेरे खेत पर इस घोल का छिड़काव कर सकते हैं। इसकी प्रक्रिया आज शुरू हो गई है।
उन्होंने कहा कि घोल को तैयार करने का कार्यक्रम 7 दिन तक चलता है। गुड़ और बेसन डालकर 4 दिन तक उसे रखा जाता है। 11 अक्टूबर से दिल्ली के विभिन्न इलाकों में हम घोल के छिड़काव की शुरुआत करेंगे। हमें पूरी उम्मीद है कि यह प्रयोग सफल होगा और अगर यह सफल हो जाता है तो यह हमारे लिए एक उपलब्धि होगी। क्योंकि यह तकनीक बहुत सस्ती है। 700 हेक्टेयर(2000 एकड़) जमीन में इस घोल के छिड़काव की कुल लागत लगभग 20 लाख रुपये तक आएगी।
मंत्री गोपाल राय ने बताया कि पराली गलाने के लिए बनाए जा रहे डिकंपोजर केंद्र खड़खड़ी नाहर का जायजा लिया। दिल्ली सरकार द्वारा स्थापित केंद्र में पराली गलाने के लिए घोल बनाने की प्रक्रिया की मुख्यमंत्री केजरीवाल ने शुरुआत की है।
हिन्दुस्थान समाचार
