आंध्र प्रदेश में पिछले कई दिनों से TDP और YSRCP के बीच चल रहे वार पलटवार के बीच राजनीति तब और गरमा गई जब किसी राज्य के मुख्यमंत्री को देश के न्यायिक व्यवस्था में दखल देना पड़ा . दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में अगर किसी राज्य का सीएम किसी भी न्यायाधीश पर राजनैतिक हस्तक्षेप की बात करता है तो ये सामान्य बात कतई नहीं हो सकती . हम बात कर रहे हैं आंध्र प्रदेश के सीएम जगनमोहन रेड्डी के उस पत्र की जिसने न्यायिक व्यवस्था को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है . लोकतंत्र के चार स्तंभ में तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ है न्यायपालिका . अगर इसपर कोई उंगली उठाता है तो ये किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए अच्छी खबर नहीं है .

CJI बोबड़े के बाद शीर्ष अदालत के दूसरे वरिष्ठतम न्यायाधीश जस्टिस रमण के पास एचटी तुरंत नहीं पहुंच सका । न तो वह और न ही उसके सहायक को फोन किया जा सका ; और उनके आधिकारिक निवास पर फोन का जवाब एक व्यक्ति ने दिया , जिसने कहा कि न्यायाधीश घर पर नहीं था ।
यह पहली बार है जब जगन सरकार ने उच्च न्यायपालिका पर सीधा हमला किया है , हालांकि उनकी पार्टी के नेता और मंत्री तथाकथित तीन राजधानियों की योजना सहित सरकार के विभिन्न फैसलों को रोकने के लिए उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के खिलाफ बयान देते रहे हैं । सीजेआई बोबडे को लिखे अपने पत्र में रेड्डी ने राज्य न्यायपालिका पर TDP के पक्ष में पक्षपाती होने और आदेशों की प्रकृति में उसके हितों की जाँच करने , जाँच पड़ताल करने , यहाँ तक कि सुनवाई के लिए मामलों को स्वीकार करने के मामले में पक्षपात करने का आरोप लगाया ।
