परंपरागत कृषि में वैज्ञानिक सलाह से किसान अपनी उपज को और बढ़ा सकते हैं। इसी के तहत किसानों को खरीफ फसल के संबंध में कृषि वैज्ञानिकों एवं कृषि अधिकारियों की ओर से उपयोगी सलाह दी जा रही है। इस बार वैज्ञानिकों ने सोयाबीन की बुआई से संबंधित महत्वपूर्ण सुझाव दिए।
उनका कहना है कि वर्षा के आगमन पश्चात पर्याप्त वर्षा यानि चार इंच वर्षा होने पर ही सोयाबीन की बुवाई का कार्य करें। मध्य जून से जुलाई का प्रथम सप्ताह बुवाई के लिये उपयुक्त है। सोयाबीन की बौवनी के लिए न्यूनतम 70 प्रतिशत अंकुरण के आधार पर उपयुक्त बीज दर का ही उपयोग करें।
किसान खुद कर सकते हैं बीज के अंकुरण का परीक्षण
इस संबंध में भोपाल के संयुक्त संचालक कृषि बी.एल.बिलैया का कहना है कि बीज के अंकुरण परीक्षण के लिए 100 दाने लेकर गीले टाट के बोरे या अखबार में रखकर घर पर ही कृषक बीज की औसत अंकुरण क्षमता ज्ञात कर सकते हैं। 70 प्रतिशत से कम अंकुरण क्षमता होने पर 20 से 25 प्रतिशत अधिक बीज दर का उपयोग करना चाहिये।
उन्नत किस्मों की बीज का करें प्रयोग
उन्होंने बताया है कि सोयाबीन की बुवाई बी.बी.एफ. (चौडी क्यारी पद्धति) या रिज-फरो (कूड मेड पद्धति) से ही करें, जिससे सूखा, अतिवर्षा के दौरान उत्पादन प्रभावित नहीं होता है। बुआई की इन विधियों से बीज दर भी कम लगती है। सोयाबीन की जे. एस 20-69, जे. एस 20-34, जे. एस 95-60, आर. व्ही. एस 2001-4, जे. एस 93-05 उन्नत किस्मों का बीज, बीज निगम एवं नेशनल सीड कॉरपोरेशन या पंजीकृत बीज विक्रेताओं से क्रय कर ही बोनी करें।
सोयाबीन की बीज दर 75 से 80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो
इसी के साथ कृषि वैज्ञानिक नरेन्द्र कुमार तांबे ने बताया है कि किसानों को यह सलाह है कि जिन कृषकों के पास सोयाबीन का बीज रखा है, उसकी ग्रेडिंग स्पाइरल ग्रेडर से कर स्वस्थ व साबुत दानों को बीज के रूप में उपयोग करें। सोयाबीन की बीज दर 75 से 80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखें। ज्यादा बीज दर रखने से कीट रोग एवं अफलन की समस्या आती हैं। एक हेक्टेयर क्षेत्र में लगभग 4.50 लाख पौधों की संख्या होनी चाहिये।
फसल को बचाने के लिए कीटनाशक इस तरह करें प्रयोग
उन्होंने कहा कि कतार से कतार की दूरी कम से कम 14 से 18 इंच के आसपास रखें। बौवनी के समय बीज को अनुशंसित फफूंदनाशक थायरम, कार्बोक्सिन (तीन ग्राम प्रति किग्रा. बीज) अथवा थायरम, कार्बेन्डाजिम (तीन ग्राम प्रति किग्रा. बीज) अथवा ट्रायकोडर्मा 10 ग्राम किग्रा. बीज पेनफलूफेन ट्रायक्लोक्सिस्ट्रोविन (एक मिली. प्रति किग्रा. बीज) की दर से बीज उपचार करें। तत्पश्चात जैविक कल्चर ब्रेडी राइजोबियम जपोनिकम एवं स्फूर घोलक जीवाणु दोनों प्रत्येक पांच-पांच ग्राम किग्रा. बीज की दर से बीज उपचार करें। पीला मौजेक बीमारी की रोकथाम हेतु कीटनाशक थायोमेथोक्साम 30 एफ. एस.(10 मिली किग्रा. बीज ) से उपचार करने हेतु क्रय सुनिश्चित कर लें।
गोबर की खाद का भी जरूर करें इस्तेमाल
वैज्ञानिक तांबे का कहना है कि खेत की अंतिम बखरनी के पूर्व अनुशंसित गोबर की खाद 10 टन प्रति हेक्टेयर की दर से डालकर खेत में फैला दें। सोयाबीन की बुआई यदि डबल पेटी सीडकम फर्टिलाइजर सीडड्रिल से करते हैं तो बहुत अच्छा हैं। जिससे उर्वरक एवं बीज अलग अलग रहता हैं। जिससे उर्वरक बीज के नीचे गिरता हैं तो लगभग 80 प्रतिशत उर्वरक का उपयोग हो जाता हैं। नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश एवं सल्फर की मात्रा क्रमशः 20:60: 30:20 किग्रा. प्रति हेक्टेयर के मान से उपयोग करें।
उन्होंने बताया है कि इसके लिए एन.पी.के. (12:32:16) 200 किग्रा.,25 किग्रा. जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर और डीएपी 111 किग्रा. एवं म्यूरेट ऑफ पोटाश 50 किग्रा. 25 किग्रा-. जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर उपयोग कर सकते हैं।
इन फसलों का भी कर सकते हैं चयन
साथ ही वे यह भी कहते हैं कि किसान भाई सूखा अवरोधी फसलों जैसे- मक्का, ज्वार, मूंग, उड़द, बाजरा आदि फसलों का चयन भी इस समय कर सकते हैं । मक्का की संकर प्रजातियां, बाजरा की कम अवधि वाली किस्मों का चुनाव करें अरहर की कम अवधि में पकने वाली जातियां जैसे आई.सी.पी.एल 880 39, पूसा-992 आदि का बीज क्रय कर रखें। खरीफ हेतु रासायनिक उर्वरकों यूरिया, डीएपी, सिंगल सुपर फास्फेट, पोटाश का अग्रिम उठाव कर लें।
गौरतलब हो कि मध्य प्रदेश के किसान सोयाबीन को पीला सोना कहते हैं। प्रदेश के मालवा क्षेत्र में सोयाबीन का क्षेत्रफल लगभग 23/25 लाख हेक्टेयर का है। किसानों का मानना है कि सोयाबीन की खेती से निश्चित रूप से लाभ मिलता है, यदि बीज के अंकुरण के बाद तुरंत ही पदगलन यानि कि फफूंद से इसकी रक्षा सही समय पर कीटनाशक का उपयोग कर हो जाए, तो इसमें नुकसान की गुंजाइश कम होती है।
(इनपुट-हिन्दुस्थान समाचार)