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‘सफेद सोना’ किसानों को बना रहा आत्‍मनिर्भर, भारी लाभ से जीना हुआ आसान

यह समय देश में उन्‍नत खेती के लिहाज से कपास उत्‍पादन के लिए सबसे अच्‍छा समय है। दरअसल, कपास की फसल लवण सहनशील होने के कारण कमजोर भूमि में भी सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है। विश्व में निरंतर बढ़ती खपत, विविध उपयोग व कम लागत में ज्यादा आमदनी देने के कारण किसान इसे ‘सफेद सोना’ भी कहकर पुकारते हैं। गौर करने वाली बात यह है कि जब खेती किए जाने वाले किसी बीज के साथ ”सोना” शब्‍द जुड़ जाए तो समझ लीजिए उसका महत्‍व किसानों के समृद्ध जीवन के लिए कितना अधिक है।

इस बार भी किसानों को कपास की खेती से बहुत उम्मीदें

जी हां, मध्य प्रदेश में निमाड़-मालवा का क्षेत्र ऐसा है, जहां कई जिलों में खरीफ की फसलों में धान (चावल), मक्का, ज्वार, बाजरा, मूंग, मूंगफली, गन्ना, सोयाबीन, उड़द, तुअर, कुल्थी, चना, मटर के साथ ही बड़ी मात्रा में कपास (सफेद सोना) की पैदावार की जाती है। हर बार की तरह इस बार भी यहां किसानों को कपास की खेती से बहुत उम्मीदें हैं। उन्हें विश्वास है कि इस बार की खेती भी उन्हें पिछली बार की तरह मालामाल कर देगी। इसलिए यहां कृषक कोविड नियमों का पालन करते हुए मई माह से कपास की बुवाई में लग गए हैं। यह पांच माह की यह मुख्य फसल है। मई से लगना शुरू होती है और नवम्‍बर-दिसम्‍बर तक निकल जाती है।

कपास की खेती के लिए भूमि में ये होनी चाहिए विशेषता

कपास के लिए अच्छी जलधारण और जल निकास क्षमता वाली भूमि होनी चाहिए। जिन क्षेत्रों में वर्षा कम होती है, वहां इसकी खेती अधिक जल-धारण क्षमता वाली मटियार भूमि में की जाती है। यह कहना है मांगीलाल चौहान का। वे किसान कल्याण तथा कृषि विकास खरगौन में उपसंचालक हैं। चौहान कहते हैं कि जहां सिंचाई की सुविधाएं उपलब्ध हों, वहां बलुई और दोमट मिट्टी में इसकी खेती की जा सकती है। यह हल्की अम्लीय एवं क्षारीय भूमि में उगाई जा सकती है। इसके लिए उपयुक्त पीएच मान 5.5 से 6.0 है। हालांकि इसकी खेती 8.5 पी एच मान तक वाली भूमि में भी की जा सकती है।

कपास उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों की फसल

वे बताते हैं कि जलवायु के हिसाब से कपास उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों की फसल है और 21 डिग्री सेल्सियस और 35 डिग्री सेल्सियस के बीच समान रूप से उच्च तापमान की आवश्यकता होती है। इसके अलावा उन्नत संकर एवं अन्य किस्मों में यहां विशेष रूप से जेकेएच-1, जेकेएच-2, जेकेएच-3, डीसीएच-32, जेके-35 प्रमुखता से कपास की खेती की जाती है। इसके अलावा भी कुछ अन्य किस्में हैं, किंतु उनका रकबा प्रति हेक्टेयर में इन किस्मों की तुलना में बहुत कम ही रहता है।

मध्य प्रदेश के अकेले एक जिले में ही दो लाख हेक्टेयर से अधिक में कपास की खेती

वे बताते हैं कि मुख्य रूप से ”मध्य प्रदेश का निमाड़” कपास उत्पादक क्षेत्र है। खरगौन जिला प्रमुख कपास उत्पादक जिलों में से एक है। यह जिले की प्राथमिक नकदी फसल है। यही कारण है कि कई सूती उद्योग यहां स्थापित किए गए हैं और कई वर्षों से सफलतापूर्वक ये काम कर रहे हैं। उपज का टोटल रकबा पिछले साल दो लाख 13 हजार हेक्टेयर में था। उतना ही लगभग इस बार भी होने की संभावना है यानि कि यह इस वर्ष भी दो लाख 13 हजार से लेकर 15 हजार तक जाएगा।

प्रति हेक्टेयर 50 हजार रुपए का किसान को मिलता है लाभ

खरगौन में कृषि का 58 प्रतिशत क्षेत्र कपास का है। जिले में 50 प्रतिशत से अधिक किसान इसे लगाते हैं। लगभग दो लाख किसान अभी यहां कपास की खेती कर रहे हैं। अच्छे किसान यहां 13 से ऊपर 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर भी कपास उत्पादन कर रहा है। किसान को हर हेक्टेयर में अपनी लागत निकालकर 50 हजार से अधिक की बचत हो रही है।

मध्य प्रदेश में सात लाख हेक्टेयर में लगता है कपास

वहीं, इस संबंध में कृषि वैज्ञानिक डॉ. सतीश परसाई बताते हैं कि मध्य प्रदेश के निमाड़ और मालवा के जिलों में खण्‍डवा, बुरहानपुर, खरगौर, बड़वानी, रतलाम, धार, अलीराजपुर, झाबुआ और छिंदवाड़ा में मुख्य रूप में कपास का उत्पादन होता है। एक आंकड़े के अनुसार पूरे प्रदेश में छह से सात लाख हेक्‍टेयर में कपास लगाया जाता है, जिसमें कि यह निमाड़ में सबसे ज्यादा लगाया जाता है। उसमें खरगौर जिला सर्वाधिक है। उसके बाद बड़वानी, खण्‍डवा, बुरहानपुर जिलों के नाम गिनाए जा सकते हैं। इसी तरह से मध्‍य प्रदेश के मालवा में रतलाम, धार, झाबुआ और अलीराजपुर में इसे बहुतायत में बोया जाता है। फिर छिंदवाड़ा में सीमित सिर्फ दो ब्‍लॉक सौसर और पांढुर्णा में कपास लगता है, जो कि प्रदेश का सबसे कम कपास लगाने वाला क्षेत्र है।

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