प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐतिहासिक पेरिस जलवायु समझौते की पांचवीं वर्षगांठ के अवसर पर आज वैश्विक जलवायु शिखर सम्मेलन को संबोधित करेंगे । ” पेरिस समझौता ” जलवायु परिवर्तन पर महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय संधि है । पहली बार सभी देश कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौते के तहत जलवायु परिवर्तन और उसके दुष्प्रभावों से निपटने के लिए महत्वाकांक्षी तथा सबके हित के प्रयासों के लिए एकजुट हुए । इसे 12 दिसंबर 2015 को पेरिस में आयोजित सीओपी 21 में 196 देशों ने स्वीकार किया था । यह समझौता चार नवंबर 2016 से लागू हुआ ।
पर्यावरण , वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने पेरिस समझौते के पांच साल पूरे होने की पूर्व संध्या पर नयी दिल्ली में मीडिया को बताया कि पेरिस जलवायु समझौते की पांचवीं वर्षगांठ पर ब्रिटेन ने वर्चुअल वैश्विक जलवायु शिखर सम्मेलन का आयोजन किया है । जावडेकर ने कहा है कि जलवायु परिवर्तन अचानक नहीं हुआ बल्कि वर्तमान स्थिति एक सौ वर्ष से पर्यावरण पर पड रहे दुष्प्रभावों का नतीजा है । उन्होंने कहा कि अमरीका ने ग्रीन हाउस गैसों का 25 प्रतिशत , यूरोप ने 22 प्रतिशत जबकि चीन ने 13 प्रतिशत उत्सर्जन किया है । इन गैसों के कुल उत्सर्जन में भारत का हिस्सा केवल 3 प्रतिशत है ।
भारत इस जलवायु परिवर्तन के लिए किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं है , लेकिन विश्व के जिम्मेदार देश के रूप में भारत ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के अभियान में योगदान दिया है । ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में भारत का हिस्सा पहले भी कम था और अब भी बहुत कम है । वर्तमान में भारत कुल वैश्विक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में सिर्फ छह दशमलव आठ प्रतिशत ही उत्सर्जित करता है जो अमरीका और चीन के प्रति व्यक्ति उत्सर्जन की तुलना में केवल एक दशमलव नौ टन है । दुनिया के केवल दो दशमलव चार प्रतिशत भूमि क्षेत्र और सत्रह प्रतिशत आबादी के साथ , भारत ने दुनिया की आठ प्रतिशत जैव विविधता और चौबीस दशमलव पांच छह प्रतिशत वनों को संरक्षित किया है । भारत 2030 तक उत्सर्जन को सकल घरेलू उत्पाद के तैंतीस से पैंतीस प्रतिशत तक कम करने के लिए प्रतिबद्ध है , जिसमें से यह पहले ही इक्कीस प्रतिशत हासिल कर चुका है और शेष अगले दस वर्ष में हासिल किया जाएगा । भारत उन गिने चुने देशों में शामिल है , जो पेरिस समझौते का पालन करते हैं । भारत के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान एनडीसी से धरती के तापमान में बढोतरी को दो डिग्री सेल्सियस से कम करने में मदद मिलेगी । जलवायु पारदर्शिता रिपोर्ट 2020 के अनुसार , भारत अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने वाला जी -20 का एकमात्र देश है । संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम – यू.एन.ई.पी . की हाल की रिपोर्ट यह भी कहती है कि 2019 में भारत का उत्सर्जन एक दशमलव चार प्रतिशत बढ़ा है , जो पिछले एक दशक में प्रतिवर्ष औसतन तीन दशमलव तीन प्रतिशत से बहुत कम है ।
