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रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनेगा भारत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ तौर पर आत्मनिर्भर भारत को लेकर एक बड़े बदलाव की बात कही है। जी हां, रक्षा क्षेत्र में भारत को एक बड़ी प्रक्रिया के तहत आत्मनिर्भर बनाना और देश को आगे बढ़ाना पीएम मोदी का संकल्प है। ऐसे में आत्मनिर्भर रक्षा क्षेत्र के लिए क्या महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं आइए जानते हैं इनके बारे में… 

> रक्षा खरीद प्रक्रिया 2016 में जरूरत के मुताबिक हुए बड़े बदलाव

> ‘मेक इन इंडिया’ ही नहीं अब ‘मेड फॉर वर्ल्ड’ पर फोकस 

> 101 रक्षा उपकरणों के आयात पर पाबंदी, ये उपकरण अब भारत में बनेंगे

> इस फैसले से पांच साल में 1.40 लाख करोड़ की होगी घरेलू खरीद

> डीआरडीओ निजी क्षेत्र को क्षमता निर्माण में करेगा मदद

> ऑटोमैटिक रूट से रक्षा क्षेत्र में 74% तक विदेशी निवेश को मंजूरी

> तय समय में रक्षा खरीद प्रक्रियाओं को पूरा करने पर जोर

> रक्षा बजट में घरेलू खरीद के लिए 52 हजार करोड़ का प्रावधान 

> आयुद्ध फ़ैक्टरी बोर्ड का हुआ निगमीकरण

> 2 जुलाई को करीब 39 हजार करोड़ की रक्षा खरीद को मिली मंजूरी 

>  रक्षा खरीद प्रक्रिया 2016 में जरूरत के मुताबिक हुए बड़े बदलाव

रक्षा विशेषज्ञ आलोक बंसल का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का शुरू से इस क्षेत्र पर फोकस रहा है। जब मेक इन इंडिया प्रोग्राम शुरू हुआ था तब भी रक्षा क्षेत्र प्रमुख हुआ था क्योंकि रक्षा क्षेत्र में भारत इतनी बड़ी मात्रा में आयात करता है कि किसी भी विदेशी फर्म को भारत में लाना हमारे लिए आसान है। इसमें महत्वपूर्ण बात यह है कि एफडीआई 74% कर दिया गया है। इसके बाद किसी भी विदेशी टेक्नोलॉजी आर्म्स मेन्यूफैक्चरिंग फर्म के लिए भारत में निवेश करना और ज्यादा आसान हो गया है। ऐसे में उनके पास एक तरफ 74% विदेशी निवेश की कंट्रोलिंग स्टेक्स हैं तो वहीं दूसरी ओर भारत की सस्ती टैक्निकल मैन पावर। इन चीजों के कारण भारत का एक ऐसे मैन्यूफैक्चरर के रूप में उभरना अपनी जरूरतों के लिए ही नहीं बल्कि वैश्विक जरूरतों को भी पूरा करने का मौका है। इसमें काफी संभावनाएं हैं। दो डिफेंस कॉरिडोर बनाए गए हैं। भारत में कई उद्योग लगाए जा रहे हैं जो रक्षा क्षेत्र में चलेंगे और यह बहुत महत्वपूर्ण बात है क्योंकि रक्षा क्षेत्र में जब एक बड़ा भारी निवेश आता है तो हजारों छोटी-छोटी कंपनियां उनके ऊपर निर्भर होती हैं और काफी लोगों को रोज़गार भी मिलता है। ऐसे में रक्षा क्षेत्र को यदि बढ़ावा मिलता है तो कई अन्य क्षेत्रों को भी साथ ही साथ बढ़ावा मिलेगा और इसका दूरगामी परिणाम भी देखने को मिलेगा। 

रक्षा विशेषज्ञ मेजर जनरल (रिट.) संजय कुलकर्णी कहते हैं कि जब आत्मनिर्भरता की बात करते हैं और सेना का हर एक जवान जब अपना हथियार यानी देश में निर्मित हथियार उठाता है तो उसका आत्मविश्वास स्वत: ही बढ़ जाता है। स्वदेशीकरण या घरेलू उत्पादन बेहद जरूरी है। भारत को मेक इन इंडिया ही नहीं बल्कि मेक फॉर वर्ल्ड के लिए पूरे जोश के साथ काम करना चाहिए।

मोदी सरकार के फैसलों से मानसिकता में आया बदलाव

इसमें कोई शक की बात नहीं है कि भारत के उद्यमी और उद्योग देश में रक्षा क्षेत्र की ज़रूरतें पूरा करने में काफी हद तक सक्षम हैं। लेकिन हमारी लाल,फीताशाही ने इसे कई दशकों तक आगे नहीं बढ़ने दिया। भारत में कई ऐसे वायु यान बने जिन्हें लालफीताशाही खा गई। इस कारण हमें अंत में रक्षा क्षेत्र को मजबूती देने के लिए आयात की तरफ बढ़ना पड़ा। लेकिन अब पीएम मोदी द्वारा रक्षा क्षेत्र में उठाए गए आत्मनिर्भरता के कदम से आने वाले समय में आयात कम होगा और घरेलू उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा। इस दिशा में आगे बढ़ने से भारत ज्यादा आत्मनिर्भर बनेगा। 

आयातित हथियार मंगवाने में आती थी तमाम अटकलें 

भारत में पहले कई बार ऐसा हुआ कि आयातित हथियारों को मंगवाने के लिए तमाम अटकलें आईं। 1990 में ऐसी स्थिति बनी कि देश के अधिकांश हेलीकॉप्टर डाउन थे क्योंकि उस समय परमाणु परीक्षण के चलते भारत पर अमेरिका व अन्य कई कंपनियों ने प्रतिबंध लगा दिए थे। ऐसे में यदि भारत आत्मनिर्भर होगा तो उसे भविष्य में किसी और पर निर्भर होने की जरूरत नहीं पड़ेगी। ऐसे में अपनी रक्षा जरूरतों को पूरा करने में भारत स्वयं सक्षम होगा।

यूपी और तमिलनाडु डिफेंस कॉरिडोर बनेंगे गेम चेंजर

मेजर जनरल (रिट.) संजय कुलकर्णी बताते हैं कि 260 योजनाओं पर 2015 से 2020 तक भारत ने साढ़े तीन लाख करोड़ रुपये खर्च किए हैं। 101 रक्षा उपकरणों के आयात पर पाबंदी लगाई गई है। ये सभी उपकरण अब भारत में ही बनेंगे। इस फैसले से पांच साल में 1.40 लाख करोड़ की घरेलू खरीद होगी। इसके अलावा यूपी और तमिलनाडू में दो डिफेंस कॉरिडोर बनाए जा रहे हैं जो बड़े गेम चेंजर साबित हो सकते हैं।  

सीडीएस की नियुक्ति से रक्षा खरीद प्रक्रियाएं होंगी तेज

सीडीएस की नियुक्ति होने से काफी समस्याएं सुलझ गई हैं। तीनों सेना के अनुभव में समन्वय पहले से बेहतर हो गया है। रक्षा विशेषज्ञ आलोक बंसल का मत है कि इसमें अभी कुछ और परिवर्तन करने की आवश्यकता है। जैसे एफएडीएस को सीडीएस के नीचे लाया जाए या कुछ ब्यूरोक्रेट्स को इसके अंदर लाया जाए, डिफेंस एक्विजीशन प्रोसेस सीडीएस के अंदर लाया जाए। डिफेंस कॉरिडोर को देखते हुए एक बड़ी मात्रा में निवेश आने वाला है। आने वाले समय में हम देखेंगे कि आत्मनिर्भरता की ओर जब हम बढ़ेंगे तो एक्विजीशन का प्रोसेस और ज्यादा स्मूदइन करने की जरूरत होगी। अगर सीडीएस के अंदर सारे फंक्शनरीज़ इसके तहत आ जाएं और एक पूरा कम्पोजिट बोर्ड बन जाए तो आने वाले समय में यह और बेहतर तरीके से काम कर पाएगा। 

रक्षा उत्पादन बढ़ाने पर जोर

यह सत्य है कि जब प्रोत्साहन कोई देता है तो अवश्य ही मनोबल बढ़ता है। भारत में यह काबीलियत है और भारत में किसी चीज की कोई कमी नहीं है। भारत के पास कैपिटल, स्किल, रिसर्च एंड डवलपमेंट और मार्केट जैसी सभी जरूरी चीजें मौजूद हैं। इसलिए भारत को पूरा फोकस कर रक्षा उत्पादन बढ़ाने पर जोर देना होगा। 

रक्षा क्षेत्र मे निजी क्षेत्र को बड़ी भूमिका देने पर जोर

रक्षा क्षेत्र में प्रोत्साहन को बढ़ावा देने के लिए ही सरकार ने निजी क्षेत्र को मौका दिया है। अब जॉयंट वेंचरशिप और स्ट्रेटीजिक पार्टनर शिप के लिए निजी क्षेत्र को भी इसमें आगे बढ़ना चाहिए। इन सबके बीच निजी क्षेत्र की इकाइयों को यह ध्यान रखना होगा कि उनका सामान इंटरनेशनल स्टैंडर्ड का होना चाहिए। ध्यान में रखने वाली दूसरी बात यह होगी कि उनके उत्पाद की कीमत आयातित माल से कम से कम 25 प्रतिशत कम होनी चाहिए। ऐसा करने से आयात भी कम होगा और फॉरन एक्सचेंज में बड़ी बचत भी होगी।

सोर्स – प्रसार भारती

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