देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में अभूतपूर्व योगदान देने वाले पूर्व राष्ट्रपति एवं भारत रत्न प्रणव मुखर्जी का सोमवार शाम करीब साढ़े पांच बजे निधन हो गया। बीते कुछ दिनों से उनकी तबियत खराब चल रही थी। हाल ही में वे कोरोना वायरस से संक्रमित हुए थे, जिसके बाद उन्हें दिल्ली के आर्मी रिसर्च एंड रिफरल हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था। उनके फेफड़ों में संक्रमण होने की वजह से उन्हें वेंटीलेटर पर रख गया था।
प्रणब मुखर्जी के निधन पर 7 दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया गया।
प्रणब मुखर्जी के निधन की जानकारी उनके पुत्र अभिजीत मुखर्जी ने ट्विटर के माध्यम से दी। उन्होंने लिखा कि बहुत दु:ख के साथ आप सभी को सूचित कर रहा हूं कि मेरे पिता श्री प्रणब मुखर्जी का थोड़ी ही देर पहले निधन हो गया।
प्रणब मुखर्जी के निधन पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शोक जाहिर किया है। मोदी ने लिखा- भारत रत्न श्री प्रणब मुखर्जी के निधन पर भारत शोक व्यक्त करता है। उन्होंने हमारे राष्ट्र के विकास पथ पर एक अमिट छाप छोड़ी है। वह एक विद्वान स्कॉलर रहे। उन्हें समाज के हर वर्ग ने पसंद किया। मैं 2014 में दिल्ली में पहुंचा। पहले ही दिन से मुझे श्री प्रणब मुखर्जी का मार्गदर्शन, समर्थन और आशीर्वाद मिला। मैं हमेशा उसके साथ अपनी बातचीत को संजोकर रखूंगा। उनके परिवार, दोस्तों, प्रशंसकों और पूरे भारत में उनके समर्थकों के प्रति मेरी संवेदनाएं हैं। ओम शांति।
प्रणब दा का राजनीतिक सफर
प्रणब मुखर्जी केवल एक नेता मात्र नहीं थे। देश के सर्वश्रेष्ठ बुद्धिजीवियों में उनका नाम लिया जाता रहा है। राष्ट्र की सेवा में अनुकरणीय योगदान देने वाले प्रणब मुखर्जी 25 जुलाई 2012 से 25 जुलाई 2017 तक देश के राष्ट्रपति रहे। 2019 में उन्हें सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाज़ा गया। उन्होंने अपने जीवन के पचास से अधिक वर्ष बतौर राजनेता देश की सेवा में दिए।
प्यार से लोग उन्हें प्रणब दा कहकर पुकारते थे। खास बात यह है कि चाहे कांग्रेस पार्टी हो या फिर संसद के गलियारे, प्रणब दा का हर कोई सम्मान करता था। चाहे पक्ष के हों या विपक्ष के कोई भी नेता उनकी बात को मना नहीं करता था। हर कोई उनके साथ काम करने के लिए लालायित रहता था।
प्रणब मुखर्जी का जन्म वीरभूम जिले में एक छोटे से गांव मिराती में, 11 दिसंबर, 1935 को एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता कामदा किंकर मुखर्जी स्वतंत्रता सेनानी थे और कांग्रेस पार्टी के सदस्य भी। उनकी माता का नाम राजलक्ष्मी था। उनके पिता स्वतंत्रता संग्राम में कई बार जेल गए थे और अंग्रेज शासन के दौरान तमाम यातनाएं सही थीं।
प्रणब दा ने कोलकाता विश्वविद्यालय से इतिहास और राजनीति शास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि तथा विधि में उपाधि प्राप्त की। इसके बाद, उन्होंने कॉलेज शिक्षक और पत्रकार के रूप में अपना व्यावसायिक जीवन शुरू किया। राष्ट्रीय आंदोलन में, अपने पिता के योगदान से प्रेरणा लेकर श्री मुखर्जी संसद के उच्च सदन (राज्य सभा) में चुने जाने के बाद, वर्ष 1969 में पूरी तरह सार्वजनिक जीवन में कूद पड़े। प्रणब मुखर्जी का विवाह रवीन्द्र संगीत की निष्णात गायिका और कलाकार स्व. श्रीमती सुव्रा मुखर्जी से हुआ था। उनके दो पुत्र और एक पुत्री हैं।
राजनीतिक जीवन
प्रणब मुखर्जी के अंदर एक बेहतरीन नेता की पहचान पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने की जब उन्होंने 1969 में मिदनापुर उपचुनाव के दौरान स्वतंत्र उम्मीदवार वीके कृष्ण मेनन के प्रचार की जिम्मेदारी संभाली और उसमें सफल हुए। तब किसी को नहीं पता था कि जो प्रणब दा आज चुनाव प्रचार की कमान संभाल रहे हैं, कल देश की कमान संभालेंगे। पूर्व पीएम इंदिरा गांधी ने उनकी उस काबीलियत को भाप लिया और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल कर लिया। न कोई ब्लॉक चुनाव न ग्राम पंचायत, न महापौर न विधायक, प्रणब दा सीधे राज्यसभा के सदस्य निर्वाचित हुए। 1969 में राज्य सभा सांसद बनने के साथ उनका राजनीतिक सफर अधिकारिक तौर पर शुरू हुआ।
प्रणब मुखर्जी को पांच बार राज्य सभा में और दो बार लोकसभा में बतौर सांसद चुना गया। वे 23 वर्षों तक कांग्रेस पार्टी की सर्वोच्च इकाई कांग्रेस कार्य समिति के सदस्य रहे। केंद्र सरकार में उन्होंने उद्योग, जहाजरानी एवं परिवहन, इस्पात एवं उद्योग उपमंत्री, वित्त राज्य मंत्री, योजना आयोग के उपाध्यक्ष, वाणिज्य मंत्री, विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री, आदि समेत कई महत्वपूर्ण पदों पर अपनी सेवाएं दीं और 2012 में देश के प्रथम नागरिक बने।
उन्होंने अपने कार्यकाल में प्रशासनिक सुधार के कई कार्यों में महत्वपूर्ण योगदान निभाई। उनमें सूचना का अधिकार, रोजगार का अधिकार, खाद्य सुरक्षा, ऊर्जा सुरक्षा, सूचना प्रौद्योगिकी एवं दूरसंचार, भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण, मैट्रो रेल आदि प्रमुख रूप से शामिल हैं। मुखर्जी को व्यापक कूटनीतिक अनुभव प्राप्त है और वे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक तथा अफ्रीकी विकास बैंकों के संचालक मंडलों में रहे हैं।
उन्होंने 7 पुस्तकें लिखीं- बियोंड सर्वाइवल : एमर्जिंग डायमेंशन्सऑफ इन्डियन इकॉनॉमी (1984), ऑफ द ट्रैक (1987), सागा ऑफ स्ट्रगल एंड सैक्रिफाइस (1992), चैलेंजेस बिफोर द नेशन (1992), थॉट्स एंड रिफ्लैक्शन्स (2014), द ड्रामैटिक डेकेड: द इंदिरा गांधी ईयर्स (2014) और द ट्रबुलेंट ईयर्स – 1980-1996 (2016)।
सोर्स – प्रसार भारती
