रक्षा क्षेत्र में देश की आत्मनिर्भरता की दिशा में बड़ा कदम बढ़ाते हुये डीआरडीओ ने हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल का सफल परीक्षण किया है। हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी पूरी तरह से स्वदेशी तकनीक से बनी है। जिससे साफ है कि भारत रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ा रहा है। ऐसे में आने वाले समय में रक्षा क्षेत्र के लिये भारत की क्या है तैयारी और इस क्षेत्र में कैसे हो रहा है डीआरडीओ आत्मनिर्भर, इस बारे में डीआरडीओ के चेयरमैन डॉ. जी सतीश रेड्डी से खास बातचीत की।
हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल, हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल प्रणाली विकसित करने के संबंध में डॉ. रेड्डी ने बताया कि भारत के महत्वाकांक्षी कार्यक्रम का हिस्सा है। यह ध्वनिसे 5 गुना ज्यादा तेज गति से दूरी तय कर सकता है। परीक्षण के दौरान इसकी स्पीड दो किलोमीटर प्रति सेकेंड रही और यह 20 सेकेंड तक हवा में रहा।
इस दौरान उन्होंने कहा कि पिछले कुछ साल में रक्षा के क्षेत्र में भारत की दूसरे देशों पर आत्मनिर्भरता काफी कम हुई है। हमने कई मिसाइल जिनमें अनुज, अग्नि 1, 2, 3, 4, 5, आकाश, अस्त्र, निर्भय, एटी टैंक मिसाइल शामिल हैं, जिन्हें डिजाइन किया, पूरी तरह से भारत में तैयार किया। इसके अलावा रडार क्षेत्र में भी काफी काम हुआ है और लंबी दूरी के साथ ज्यादा दूरी तक में पीपीपी मॉडल के जरिये भी काम कर रहे हैं। 150 आर्टिलरी गन भी भारत में बन रही है। इस के साथ ही जी सतीश रेड्डी ने बताया कि अभी जो भी रक्षा औजार बाहर से मंगाये जा रहे हैं, उनकी टेक्नोलॉजी के साथ ही उन्नत टेक्नोलॉजी पर भी काम चल रहा है, जो भी इस बीच टेक्नोलॉजी गैप आ रहा है, आने वाले 5-10 साल में भारत कई देशों को पीछे छोड़ देगा।
हाल में भारत ने विदेश से आने वाले कई रक्षा उपकरणों पर बैन लगा दिया है, यानी अब वो भारत में ही बनेंगे। इस बारे में उन्होंने बताया कि हम बहुत पहले से उन टेक्नोलॉजी पर काम कर रहे हैं। अब हम खुद के डिजाइन से उन रक्षा हथियारों का उत्पादन कर सकेंगे।
वहीं प्राइवेट इंडस्ट्रीज़ कैसे इसमें फायदा मिलेगा जो डीआरडीओ से जुड़ना चाहते हैं? इस पर डॉ. रेड्डी ने बताया कि अब हम डिजाइन करते हैं, तो इसके उत्पादन के लिये मशीन के साथ ही लेबर की भी जरूरत होगी। ऐसे में प्राइवेट इंडस्ट्रीज़ काफी सहायक होंगी। इसके लिये उन्हें कई सुविधाएं दी जायेंगी। इसके अलावा डीआरडीओ के पास 700 से ज्यादा पेटेंट है, जिसका वो प्रयोग कर सकेंगे। इसके जरिये उन्हें भी डीआरडीओ के साथ मिलकर और टेक्नोलॉजी का लाभ उठाने का मौका मिलेगा और डीआरडीओ को भी उत्पादन में मदद मिलेगी। आने वाले दिनों में प्राइवेट इंडस्ट्रीज़ इस क्षेत्र में योगदान और बढ़ने वाला है।
डीआरडीओ में युवाओं की भूमिका आने वाले दिनों में कैसी रहेगी, इस बारे में डॉ रेड्डी कहते हैं कि पीएम मोदी ने आत्मनिर्भर भारत के तहत युवाओं का आह्वान किया है। ऐसे में डीआरडीओ शिक्षा मंत्रालय के साथ मिलकर काम कर रहे हैं जिसके तहत 500 पीएचडी रिसर्चर डीआरडीओ के साथ कम करेंगे और जो भी डिफेंस से संबंधित समस्या है उनपर रिसर्च करेंगे और उन्हें दूर करेंगे। इसके अलावा 35 साल से कम के युवा जो भी कुछ इनोवेशन करते हैं या नई टेक्नोलॉजी के साथ कुछ बना रहे हैं उन्हें डीआरडीओ के साथ काम करने के लिये लिया जा जाता है। इसी तरह एम टेक-बीटेक के छात्रों को भी अलग-अलग कार्यक्रम के तहत जोड़ा जाता है। इसके अलावा स्टार्ट-अप के लिये भी केंद्र सरकार के साथ मिलकर कई योजनाओं से डीआरडीओ जुड़ा हुआ है।
