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भगत सिंह जंयती, जिसने युवाओं के अंदर इंकलाब भर दिया था

कभी वतन के लिए सोच के देख लेना , कभी मां के चरण चूम के देख लेना , कितना मजा आता है मरने में यारों , कमी मुल्क के लिए मर के देख लेना , मै भारतवर्ष का हरदम सम्मान करता । यहां की चांदनी , मिट्टी का ही गुणगान करता हूं , तिरंगा हो कफन मेरा , बस यही अरमान रखता हूं ।

आज शहीद – ए – आजम भगत सिंह का जन्मदिन है . 28 सितंबर , 1907 को लायलपुर जिले के बंगा में ( अब पाकिस्तान में ) उनका जन्म हुआ था . गुलाम भारत में पैदा हुए भगत सिंह ने बचपन में ही देश को ब्रितानियां हुकूमत से आज़ाद कराने का ख़्वाब देखा . छोटी उम्र से ही उसके लिए संघर्ष किया और फिर देश में स्थापित ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिलाकर हंसते हंसते फांसी का फंदा चूम लिया . वह शहीद हो गए लेकिन अपने पीछे क्रांति और निडरता की वह विचारधारा छोड़ गए जो आज तक युवाओं को प्रभावित करता है . आज भी भगत सिंह की बातें देश के युवाओं के लिए किसी प्रतीक की तरह बने हुए हैं ।

देश के सबसे बड़े क्रांतिकारी और अंग्रेजी हुकूमत की जड़ों को अपने साहस से झकझोर देने वाले भगत सिंह ने नौजवानों के दिलों में आजादी का जुनून भरा था । महात्मा गांधी ने जब 1922 में चौरीचौरा कांड के बाद असहयोग आंदोलन को खत्म करने की घोषणा की तो भगत सिंह का अहिंसावादी विचारधारा से मोहभंग हो गया । उन्होंने 1926 में देश की आजादी के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना की । 23 मार्च 1931 की रात भगत सिंह को सुखदेव और राजगुरु के साथ लाहौर षडयंत्र के आरोप में अंग्रेजी सरकार ने फांसी पर लटका दिया । यह माना जाता है कि मृत्युदंड के लिए 24 मार्च की सुबह ही तय थी , मगर जनाक्रोश से डरी सरकार ने 23-24 मार्च की मध्यरात्रि ही फांसी पर लटका दिया था ।

भगत सिंह के क्रांतिकारी विचार

  1. बम और पिस्तौल से क्रांति नहीं आती , क्रांति की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है
  2. निष्ठुर आलोचना और स्वतंत्र विचार , ये दोनों क्रांतिकारी सोच के दो अहम लक्षण हैं ।
  3. राख का हर एक कण मेरी गर्मी से गतिमान है . मैं एक ऐसा पागल हूं जो जेल में आजाद है ।
  4. प्रेमी पागल और कवि एक ही चीज से बने होते हैं और देशभक्तों को अक्सर लोग पागल कहते हैं । 5. जिंदगी तो सिर्फ अपने कंधों पर जी जाती है , दूसरों के कंधे पर तो सिर्फ जनाजे उठाए जाते हैं 6. व्यक्तियों को कुचलकर भी आप उनके विचार नहीं मार सकते हैं ।

महात्मा गांधी ने 23 मार्च 1928 को एक निजी पत्र लिखा था और भगत सिंह और उनके साथियों की फांसी पर रोक लगाने की अपील की थी . इस बात का जिक्र My Life is My Message नाम की किताब में है . उन्होंने पत्र में वायसराय इरविन को लिखा था , ” शांति के हित में अंतिम अपील करना आवश्यक है . हालांकि आपने मुझे साफ -साफ बता दिया है कि भगत सिंह और अन्य दो लोगों की मौत की सजा में कोई भी रियायत की आशा न रखू लेकिन डा सप्रू कल मुझे मिले और उन्होंने बताया कि आप कोई रास्ता निकालने पर विचार कर रहे हैं ।

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