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प्रधानमंत्री मोदी के मन की बात, खिलौना उद्योग से लेकर कोरोना महामारी से बचाव तक

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात 2.0 के 15वें संस्‍करण में रविवार को देश को संबोधित किया। उन्होंने खिलौना उद्योग को बढ़ावा देने के साथ-साथ देश के कई ऐसे क्षेत्रों की बात की जो देश के लिए आत्मनिर्भर बनने का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।  प्रस्‍तुत हैं पीएम द्वारा राष्ट्र को संबोधन के प्रमुख अंश- 

• आमतौर पर ये समय उत्सव का होता है, जगह-जगह मेले लगते हैं, धार्मिक पूजा-पाठ होते हैं। कोरोना के इस संकट काल में लोगों में उमंग तो है, उत्साह भी है, लेकिन, हम सबको मन को छू जाए, वैसा अनुशासन भी है।

• हम बहुत बारीकी से अगर देखेंगे, तो एक बात अवश्य हमारे सामने आएगी- हमारे पर्व और पर्यावरण। इन दोनों के बीच एक बहुत गहरा नाता है।

• बिहार के पश्चिमी चंपारण में सदियों से थारू आदिवासी समाज के लोग 60 घंटे के लॉकडाउन, उनके शब्दों में ’60 घंटे के बरना’ का पालन करते हैं। प्रकृति की रक्षा के लिए बरना को थारू समाज के लोगों ने अपनी परंपरा का हिस्सा बना लिया है और ये सदियों से है।

• इन दिनों ओणम का पर्व भी धूम-धाम से मनाया जा रहा है। ये पर्व चिंगम महीने में आता है। इस दौरान लोग कुछ नया खरीदते हैं, अपने घरों को सजाते हैं, पूक्क्ल म बनाते हैं, ओनम-सादिया का आनंद लेते हैं, तरह-तरह के खेल और प्रतियोगिताएं भी होती हैं।

• ओणम की धूम तो, आज, दूर-सुदूर विदेशों तक पहुंची हुई है। अमेरिका हो, यूरोप हो, या खाड़ी देश हों, ओणम का उल्लास आपको हर कहीं मिल जाएगा। ओणम एक अंतरराष्ट्रीय त्योहार बनता जा रहा है। किसानों ने कठिन परिस्थितियों में अपनी ताकत को साबित किया 

• ऋगवेद में मन्त्र है -अन्नानां पतये नमः, क्षेत्राणाम पतये नमः। अर्थात, अन्नदाता को नमन है, किसान को नमन है। हमारे किसानों ने कोरोना की कठिन परिस्थितियों में भी अपने काम को रुकने नहीं दिया। 

• साथियो, हमारे चिंतन का विषय था- खिलौने और विशेषकर भारतीय खिलौने। हमने इस बात पर मंथन किया कि भारत के बच्चों को नए-नए खिलौने कैसे मिलें, भारत, खिलौना उत्पादन का बहुत बड़ा हब कैसे बने।

• साथियो, खिलौने जहां गतिविधि को बढ़ाने वाले होते हैं, वहीं खिलौने हमारी आकांक्षाओं को भी उड़ान देते हैं। बच्चों के जीवन के अलग-अलग पहलू पर खिलौनों का जो प्रभाव है, इस पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी बहुत ध्यान दिया गया है। खिलौने ऐसे होने चाहिए, जो बच्चे की क्रिएटिविटी को सामने लाए 

• गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर कहते थे कि खिलौने ऐसे होने चाहिए, जो बच्चे की क्रिएटिविटी को सामने लाए। बच्चों के जीवन के अलग-अलग पहलू पर खिलौनों का जो प्रभाव है, इस पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी बहुत ध्यान दिया गया है।

• खिलौने जहां एक्टिविटी को बढ़ाने वाले होते हैं, तो खिलौने हमारी आकांक्षाओं को भी उड़ान देते हैं। खिलौने केवल मन ही नहीं बहलाते, खिलौने मन बनाते भी हैं और मकसद गढ़ने वाले भी होते हैं।

ग्लोबल टॉय इंडस्‍ट्री, 7 लाख करोड़ से भी अधिक की 

• Global toy industry, 7 लाख करोड़ से भी अधिक की है। 7 लाख करोड़ रुपयों का इतना बड़ा कारोबार, लेकिन भारत का हिस्सा उसमें बहुत कम है। जिस राष्ट्र के पास इतने विरासत हो, परम्परा हो, क्या खिलौनों के बाजार में उसकी हिस्सेदारी इतनी कम होनी चाहिए?

• खिलौनों के साथ हम दो चीजें कर सकते हैं – अपने गौरवशाली अतीत को अपने जीवन में फिर से उतार सकते हैं और अपने स्वर्णिम भविष्य को भी संवार सकते हैं। भारत के कुछ क्षेत्र खिलौनों के केंद्र के रूप में हो रहे हैं विकसित हमारे देश में लोकल खिलौनों की बहत समृद्ध परंपरा रही है। कई प्रतिभाशाली और कुशल कारीगर हैं, जो अच्छे खिलौने बनाने में महारत रखते हैं। भारत के कुछ क्षेत्र टॉय क्लस्टर्स यानी खिलौनों के केंद्र के रूप में भी विकसित हो रहे हैं। जैसे, कर्नाटक के रामनगरम में चन्नापटना, आन्ध्र प्रदेश के कृष्णा में कोंडापल्ली, तमिलनाडु में तंजौर, असम में धुबरी, उत्तर प्रदेश का वाराणसी- कई ऐसे स्थान हैं, कई नाम गिना सकते हैं।

बच्चों के लिये गांधीनगर की चिल्ड्रेन यूनिवर्सिटी, एक अलग तरह का प्रयोग 

• मैंने गांधीनगर की चिल्ड्रेन यूनिवर्सिटी, जो दुनिया में एक अलग तरह का प्रयोग है, भारत सरकार के महिला और बाल विकास मंत्रालय, शिक्षा मंत्रालय, सूक्ष्म-लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय, इन सभी के साथ मिलकर, हम बच्चों के लिये क्या कर सकते हैं, इस पर मंथन, चिंतन किया। एति-कोप्पका टॉयज एक समय में थे बहुत प्रचलित

• जिस राष्ट्र के पास इतनी विरासत हो, परंपरा हो, विविधता हो, युवा आबादी हो, क्या खिलौनों के बाजार में उसकी हिस्सेदारी इतनी कम होनी, हमें अच्छा लगेगा क्या? जी नहीं, ये सुनने के बाद आपको भी अच्छा नहीं लगेगा।

अब जैसे आन्ध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम में श्रीमान सी.वी. राजू हैं। उनके गांव के एतिकोप्पका टॉयज एक समय में बहत प्रचलित थे। इनकी खासियत ये थी कि ये खिलौने लकड़ी से बनते थे, और दूसरी बात ये कि इन खिलौनों में आपको कहीं कोई एंगल या कोण नहीं मिलता था।

सी.वी. राजू ने स्थानीय खिलौनों की खोई हुई गरिमा लाए वापस 

• सी.वी. राजू ने एति-कोप्पका टॉयज के लिए अब अपने गांव के कारीगरों के साथ मिलकर एक तरह से नया मूवमेंट शुरू कर दिया है। बेहतरीन क्वालिटी के एति-कोप्पका टॉयज बनाकर सी.वी. राजू ने स्थानीय खिलौनों की खोई हुई गरिमा को वापस ला दिया है। खिलौना वो हो जिसकी मौजूदगी में बचपन खिले भी, खिलखिलाए भी। हम ऐसे खिलौने बनाएं, जो पर्यावरण के भी अनुकूल हों।

आत्मनिर्भर भारत में वर्चुअल गेम्स और टॉयज में सबको निभानी है अहम भूमिका 

• अब कंप्यूटर और स्मार्टफोन के इस जमाने में कंप्यूटर गेम्स का भी बहुत ट्रंड है। ये गेम्स बच्चे भी खेलते हैं, बड़े भी खेलते हैं। लेकिन, इनमें भी जितने गेम्स होते हैं, उनकी थीम्स भी अधिकतर बाहर की ही होती हैं।

आत्मनिर्भर भारत अभियान में वर्चुअल गेम्स हों, टॉयज का सेक्टर हो, सभी ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है। 100 वर्ष पहले, गांधी जी ने लिखा था कि ‘असहयोग आंदोलन, देशवासियों में आत्मसम्मान और अपनी शक्ति का बोध कराने का एक प्रयास है।’

आज, देश में, हर जगह कुछ न कुछ इनोवेशन हो रहे 

• पढ़ाई में तकनीक का ज्यादा से ज्यादा उपयोग कैसे हो, नए तरीकों को कैसे अपनाएं, छात्रों को मदद कैसे करें, यह हमारे शिक्षकों ने सहजता से अपनाया है और अपने स्टूडेंट्स को भी सिखाया है।आज, देश में, हर जगह कुछ न कुछ इनोवेशन हो रहे हैं।

भारतीयों के इनोवेशन और सॉल्यूशन देने की क्षमता का लोहा हर कोई मानता 

• भारतीयों के इनोवेशन और सॉल्यूशन देने की क्षमता का लोहा हर कोई मानता है और जब समर्पण भाव हो, संवेदना हो तो ये शक्ति असीम बन जाती है।

• इस महीने की शुरुआत में देश के युवाओं के सामने, एक एक इनोवेशन चैलेंज रखा गया। हो सकता है आप भी ऐसा कुछ बनाने के लिए प्रेरित हो जाएं। इनमें एक एप है, कुटुकी किड्स लर्निंग एप्लिकेशन ये बच्चों के लिए ऐसा इंटरेक्टिव एप है जिसमें गानों और कहानियों के जरिए बच्चे गणित, विज्ञान में बहुत कुछ सीख सकते हैं। इसमें एक्टिविटिज भी हैं, खेल भी।

• चिंगारी एप युवाओं के बीच काफी पॉपुलर हो रहा है। एक एप है आस्क सरकार। इसमें चैट बोट के जरिए आप इंटरेक्ट कर सकते हैं और किसी भी सरकारी योजना के बारे में सही जानकारी हासिल कर सकते हैं, वो भी टेक्स्ट, ऑडियो और वीडियो तीनों तरीकों से, ये आपकी मदद कर सकता है।

NEET और JEE परीक्षाओं को रोकने के लिए चलाया जा रहा प्रोपेगंडा 

• NEET और JEE परीक्षाओं को रोकने के लिए प्रोपेगंडा चलाया जा रहा है, सोशल मीडिया पर झूठी तस्वीरों के माध्यम से अफवाहें फैलायी जा रही हैं। कृपया ऐसी झूठी और फर्जी खबरों के झाँसे में न आयें।

डॉग्स की आपदा प्रबंधन और रेस्क्यू मिशन में बहुत बड़ी भूमिका 

• डॉग्स की आपदा प्रबंधन और रेस्क्यू मिशन में भी बहुत बड़ी भूमिका होती हैं। भारत में तो एनडीआरएफ ने ऐसे दर्जनों डॉग्स को स्पेशली ट्रेन किया है।

• कहीं भूकंप आने पर, ईमारत गिरने पर, मलबे में दबे जीवित लोगों को खोज निकालने में ये बहुत एक्सपर्ट होते हैं। साथियो, मुझे यह भी बताया गया कि भारतीय नस्ल के डॉग्स भी बहुत अच्छे होते हैं, बहुत सक्षम होते हैं।

• पिछले कुछ समय में आर्मी, सीआईएसएफ, एनएसजी ने मुधोल हाउंड डॉग्स को ट्रेन्ड करके डॉग स्कवॉड में शामिल किया है, सीआरपीएफ ने कोंबाई डॉग्स को शामिल किया है। इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च भी भारतीय नस्ल के डॉग्स पर रिसर्च कर रही है। हमारे सुरक्षाबलों के दो जांबाज किरदारों सोफी और विदा बीते दिनों, जब हम अपना स्वतंत्रता दिवस मना रहे थे, तब एक दिलचस्प खबर पर मेरा ध्यान गया। ये खबर है हमारे सुरक्षाबलों के दो जांबाज किरदारों की। एक है सोफी और दूसरी विदा। कुछ समय पहले मुझे देश की सुरक्षा में डॉग्स की भूमिका के बारे में बहुत विस्तार से जानने को मिला। कई किस्से भी सुने।

• कुछ दिन पहले ही आपने शायद टीवी पर एक बड़ा भावुक करने वाला दृश्य देखा होगा, जिसमें, बीड पुलिस अपने साथी डॉग रॉकी को पूरे सम्मान के साथ आखिरी विदाई दे रही थी। रॉकी ने 300 से ज्यादा केसों को सुलझाने में पुलिस की मदद की थी।

• अगली बार, जब भी आप, dog पालने की सोचें, आप जरूर इनमें से ही किसी Indian breed के dog को घर लाएं। आत्मनिर्भर भारत, जब जन-मन का मन्त्र बन ही रहा है, तो कोई भी क्षेत्र इससे पीछे कैसे छूट सकता है।

देश और पोषण का बहुत गहरा संबंध 

• हमारे बच्चे, हमारे विद्यार्थी, अपनी पूरी क्षमता दिखा पाएं, अपना सामर्थ्य दिखा पाएं, इसमें बहुत बड़ी भूमिका पोषण की भी होती है, पोषण की भी होती है। पूरे देश में सितंबर महीने को पोषण माह- पोषण माह के रूप में मनाया जाएगा।

• देश और पोषण का बहुत गहरा संबंध होता है। बच्चों के पोषण के लिए भी उतना ही जरूरी है कि मां को भी पूरा पोषण मिले और पोषण या न्यूट्रिशन का मतलब केवल इतना ही नहीं होता कि आप क्या खा रहे हैं, कितना खा रहे हैं, कितनी बार खा रहे हैं।

न्यूट्रिशन के आंदोलन में पीपुल पार्टिसिपेशन बहुत जरूरी 

• पोषण के इस आंदोलन में लोगों की भागीदारी भी बहुत जरुरी है। जन-भागीदारी ही इसको सफल करती है। पिछले कुछ वर्षों में इस दिशा में, देश में काफी प्रयास किए गए

• भारत एक विशाल देश है, खान-पान में ढेर सारी विविधता है। इसीलिए यह बहुत ही महत्वपूर्ण है कि हर क्षेत्र के मौसम, वहां के स्थानीय भोजन और वहां पैदा होने वाले अन्न, फल और सब्जियों के अनुसार एक पोषक, पोषक तत्वों से भरपूर, डाइट प्लान बने।

स्‍टेच्‍यू ऑफ यूनिटी के पास एक अलग प्रकार का पोषण पार्क

• अगर आपको गुजरात में सरदार वल्लभभाई पटेल के Statue of Unity जाने का अवसर मिला होगा, और कोविड के बाद जब वो खुलेगा और आपको जाने का अवसर मिलेगा, तो, वहां एक अलग प्रकार का पोषण पार्क बनाया गया है।

सितंबर को ‘न्यूट्रिशन मंथ’ के रूप में मनाया जाएगा 

• पूरे देश में सितंबर को ‘न्यूट्रिशन मंथ’ के रूप में मनाया जाएगा। देशवासियों से अपील कि वे भी ‘आगे आएं, कुछ इनोवेट करें, कुछ इम्प्लीमेंट करें। आपके प्रयास, आज के छोटे-छोटे स्टार्ट-अप्स, कल बड़ी-बड़ी कंपनियों में बदलेंगे और दुनिया में भारत की पहचान बनेंगे।

कोरोना तभी हारेगा जब आप रहेंगे सुरक्षित 

• कोरोना तभी हारेगा, जब आप सुरक्षित रहेंगे, जब आप “दो गज की दूरी, मास्क जरूरी”, इस संकल्प का पूरी तरह से पालन करेंगे। आप सब स्वस्थ रहिये, सुखी रहिये, इन्हीं शुभकामनाओं के साथ अगली ‘मन की बात’ में फिर मिलेंगे। ‘असहयोग आन्दोलन, आत्मसम्मान और अपनी शक्ति का बोध कराने का प्रयास 

• आज से 100 साल पहले असहयोग आंदोलन शुरू हुआ, तो गांधी जी ने लिखा था कि ‘असहयोग आन्दोलन, देशवासियों में आत्मसम्मान और अपनी शक्ति का बोध कराने का एक प्रयास है’ असहयोग आंदोलन के रूप में जो बीज बोया गया था,उसे अब आत्मनिर्भर भारत के वट वृक्ष में परिवर्तित करना हमसब का दायित्व है।

कुछ दिनों बाद, पांच सितंबर को हम शिक्षक दिवस मनाएंगें। हम सब जब अपने जीवन की सफलताओं को अपनी जीवन यात्रा को देखते है तो हमें अपने किसी न किसी शिक्षक की याद अवश्य आती है। साथियो और विशेषकर मेरे शिक्षक साथियो, वर्ष 2022 में हमारा देश स्वतंत्रता के 75 वर्ष का पर्व मनाएगा।

• देश आज जिस विकास यात्रा पर चल रहा है इसकी सफलता सुखद तभी होगी जब हर एक देशवासी इसमें शामिल होगा, इस यात्रा का यात्री हो, इस पथ का पथिक हो, इसलिए, ये जरूरी है कि हर देशवासी स्वस्थ रहे सुखी रहे और हम मिलकर के कोरोना को पूरी तरह से हराएं।

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