जैसे-जैसे सर्दियां करीब आ रही हैं, वैसे-वैसे दिल्लीवासियों का तनाव बढ़ रहा है। हर साल की तरह इस बार भी राजधानी के आसमान पर स्मॉग की चादर से ढकने के पूरे आसार हैं। जब-जब दिल्ली में धुंध छाता है, तब-तब लोग पड़ोसी राज्यों में जलने वाली पराली को जिम्मेदार बताने लगते हैं। इस पर केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने कहा है कि दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते प्रदूषण का मुख्य कारण पराली नहीं है, बल्कि आंतरिक कारण हैं। उन्होंने कहा कि पंजाब में जलने वाली पराली दिल्ली के प्रदूषण के लिए केवल 4 प्रतिशत जिम्मेदार है।
एक प्रेसवार्ता को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि पंजाब में पराली जलाए जाने से दिल्ली में मात्र चार फीसदी प्रदूषण बढ़ता है, जबकि लोकल कारणों की वजह से दिल्ली में 96 फीसदी प्रदूषण बढ़ रहा है।
जावडेकर ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की 50 टीमें पूरी दिल्ली में निगरानी करेंगी। साथ ही उन्होंने पंजाब सरकार से अनुरोध किया है कि पराली जलाए जाने की घटना पर रोक लगाने की दिशा में ठोस काम करें।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि दिल्ली में प्रदूषण की स्थिति गंभीर रहती है। हिमालय से आने वाली ठंडी हवा की गति कम हो जाती है, इससे प्रदूषण जम जाता है लेकिन पराली का जलना भी अभी 20 दिन चलेगा। उन्होंने बताया कि पराली से निपटने के लिए केंद्र ने पंजाब में अधिक मशीनें दी हैं। उन्होंने कहा कि दिल्ली में कचरा प्रबंधन ठीक से नहीं हो रहा है जिसके कारण लोग कूड़ा जला रहे हैं, केन्द्र सरकार इसे रोकने के लिए 50 टीमें रवाना होंगी।
उल्लेखनीय है कि दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण के लिए केन्द्र सरकार को जिम्मेदार ठहराया था। उन्होंने आरोप लगाया कि केन्द्र सरकार ने पराली की समस्या से निपटने के लिए कुछ नहीं किया।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
भारतीय प्रोद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), कानपुर द्वारा दिल्ली के प्रदूषण पर कई शोध एवं अध्ययन किए जा चुके हैं। हाल ही में आयोजित एक वेबिनार में आईआईटी कानपुर के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के अध्यक्ष प्रो. सचिन त्रिपाठी ने कहा कि बीते दस वर्षों में ये देखा गया है कि लगातार मानसून के बाद वायु प्रदूषण बद से बद्तर होता जा रहा है। अब वक़्त का तकाज़ा है कि किसानों को पराली जलाने या उसके निस्तारण के लिए बेहतर विकल्प देने की ज़रूरत है।
प्रो. त्रिपाठी के अनुसार अध्ययन के वक्त दिल्ली में पीएम कणों में सबसे ज़्यादा मात्रा में क्लोरीन और सिलिकोन पाये गए। ये कण दिल्ली के बाहर से तीन वायु मार्गों से पहुंचे थे। क्लोरीन, ब्रोमीन, और सेलेनियम अगर पंजाब और हरियाणा से आये, तो सल्फ़र, क्रोमियम, निकल, मैंगनीज़ उत्तर प्रदेश से आये। वहीं कॉपर कैडमियम और लेड नेपाल की हवाओं से यहाँ पहुंचे। वहीँ लेड, टिन और सेलेनियम के कण हरयाणा, पंजाब, और पाकिस्तान की हवाओं से भारत में यहाँ तक पहुंचे।
