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कोरोना काल में कृषि क्रांति करने में जुटे किसान, वैज्ञानिक तरीका अपनाकर बन रहे आत्मनिर्भर

देश में रिकॉर्ड उत्पादन करने के लिए किसान बारहों महीने जी जान से जुटे रहते हैं। देश में फसलों का रिकॉर्ड उत्पादन, इस बात की तस्दीक करता है। सही अर्थों में खेती पर जीवन यापन करने वाले हजारों किसान इन दिनों कृषि क्रांति करने में जुटे हुए हैं।

असम के किसान भी कुछ ऐसा ही कर रहे हैं। परंपरागत खेती में वैज्ञानिक तरीकों को अपनाकर धान की नई प्रजाति की खेती कर अपनी आमदनी बढ़ा रहे हैं। ऐसे किसान ही कृषि से जुड़े लोगों के लिए आदर्श स्थिति पैदा करते हुए, वर्तमान के नकारात्मक माहौल को सकारात्मक ऊर्जा से रौशन कर रहे हैं। खास बात ये है कि इस वैज्ञानिक खेती से न सिर्फ फसल पैदावार बढ़ रही है बल्कि नये रोजगार के रास्ते भी खुल रहे हैं।

बोड़ो धान की कर रहे हैं खेती

वर्तमान कोरोना काल में असम के कामरूप (ग्रामीण) जिला अंतर्गत रंगिया सर्किल के नकुल गांव के हजारों किसानों ने कृषि क्रांति शुरू की है। लगभग 1500 बीघे जमीन पर बोड़ो धान (गरमा धान के नाम से प्रसिद्ध) की नई प्रजाति की खेती कर लगभग एक हजार किसान आत्मनिर्भर होने की राह पर आगे बढ़ गये है। यह कदम कृषि क्षेत्र के नए क्षितिज के रूप में देखा जा रहा है। यह पहला मौका है, जब नकुल गांव के किसानों ने अपने खेतों में ‘बीना’ और ‘हिमा’ नामक चावल की उन्नत प्रजाति की रोपाई की है।

ये वे किसान हैं, जो परंपरागत रूप से खेती के काम से जुड़े हैं। चावल की इस नई प्रजाति का वैज्ञानिक तरीकों से खेती करने से काफी फायदा हुआ है। किसानों ने बताया है कि बाढ़ के पानी के बीच 15 दिन रहने पर भी इस धान की खेती को कोई नुकसान नहीं होता है। इसके अलावा बोड़ो धान की इस फसल का उत्पादन भी अन्य प्रजाति के मुकाबले कम समय में होता है। पहले एक बीघा जमीन पर केवल 7-8 मन (40 किग्रा = एक मन) धान का उत्पादन होता था, लेकिन आधुनिक पद्धति व नई प्रजाति के धान से 20 से 25 मन धान का उत्पादन हो रहा है।

बोड़ो धान (गरमा धान) की खासियत

गरमा धान की खेती किसानों के लिए बहुत फायदेमंद मानी जाती है। इसकी बुवाई के लिए मध्य जनवरी से मध्य फरवरी तक का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है। हालांकि फरवरी महीने के आखिरी सप्ताह से मार्च के पहले सप्ताह में भी इसकी बुवाई की जा सकती है। गरमा धान की फसल को पक कर तैयार होने में केवल 2 से 3 महीने ही लगते हैं।

नये रोजगार का रास्ता दिखाने की कोशिश

नकुल गांव निवासी अच्युत कुमार कलिता और अपूर्व दास के नेतृत्व में नयी प्रजाति की खेती किसानों ने की है। दोनों किसानों ने बताया कि वे खेती के जरिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करते हुए बेरोजगार युवाओं के लिए एक नये रोजगार का रास्ता दिखाने की कोशिश कर रहे हैं।

उन्होंने बताया कि खेती की परंपरागत तौर-तरीकों के साथ आधुनिक व वैज्ञानिक पद्धति को शामिल कर खेती को फायदे का रोजगार बनाने की कोशिशों में जुटे हुए हैं। ज्ञात हो कि केंद्र सरकार ने किसानों की आय को दोगुना करने का लक्ष्य निर्धारित किया है, जिसको नकुल गांव के किसानों ने एक तरह से आत्मसात करते हुए खेती को फायदे का सौदा बनाने में जुट गये हैं।

किसानों ने वैज्ञानिक खेती करने का लिया प्रशिक्षण

उधर, नई पद्धति व नये बीज से की गयी खेती से किसानों को अधिक लाभ की उम्मीद है। इस प्रकार की खेती से उत्पादन तीन गुना बढ़ जाता है। इस बीच कृषि विभाग ने क्षेत्र के हजारों किसानों को साल में तीन से चार बार जमीन पर अलग-अलग फसलों की वैज्ञानिक तरीके से खेती करने का प्रशिक्षण दिया है। आम किसानों को इस तरह की खेती से काफी फायदा होने की उम्मीद है। हजारों किसान अपने आपको आत्मनिर्भर होकर अनेक लोगों को उपार्जन के नये रास्ते दिखा रहे हैं। इन किसानों ने सरकारी नौकरी के लिए दौड़ लगाए बिना कृषि से जुड़कर अपनी आर्थिकी को मजबूत बनाने का नया रास्ता खोज लिया है। इसके चलते ग्रामीण अर्थव्यवस्था को काफी बल मिल रहा है।

नकुल क्षेत्र के किसान अपने हाथों अपनी तकदीर लिखते हुए मिसाल कायम कर रहे हैं। ये किसान शिक्षित बेरोजगार युवाओं का आह्वान करते हुए इस तरह की खेती कर आत्मनिर्भर बनने की अपील कर रहे हैं।

ये कहना गलत नहीं होगा कि देश की राजधानी दिल्ली में आंदोलन जीवी किसान नेता तीन नये कृषि कानून को रद्द कराने के लिए जहां आंदोलनरत हैं, वहीं सही अर्थों में खेती पर जीवन यापन करने वाले हजारों किसान इन दिनों कृषि क्रांति करने में जुटे हुए हैं।
(इनपुट-हिन्दुस्थान समाचार)

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