केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के निधन पर मंगलवार को शोक प्रकट किया और कहा कि देश ने एक विशिष्ट नेता एवं उत्कृष्ट सांसद को खो दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने दो मिनट का मौन रखकर मुखर्जी को श्रद्धांजलि अर्पित की।


केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक प्रस्ताव में कहा, ‘मंत्रिमंडल भारत के पूर्व राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी के दुखद निधन पर गहरा शोक प्रकट करता है। उनके निधन से देश ने एक विशिष्ट नेता एवं उत्कृष्ट सांसद को खो दिया।’ मंत्रिमंडल ने कहा कि भारत के 13वें राष्ट्रपति मुखर्जी का प्रशासन में अतुलनीय अनुभव था जिन्होंने विदेश, रक्षा, वाणिज्य और वित्त मंत्री के रूप में देश की सेवा की।’
प्रस्ताव के अनुसार, ‘केंद्रीय मंत्रिमंडल राष्ट्र के प्रति उनकी सेवाओं की गहराई से सराहना करता है तथा सरकार एवं सम्पूर्ण राष्ट्र की ओर से शोक संतप्त परिवार के प्रति संवेदना प्रकट करता है।’ उल्लेखनीय है कि 84 वर्षीय मुखर्जी का सोमवार शाम को दिल्ली छावनी स्थित सेना के रिसर्च ऐंड रेफरल अस्पताल में निधन हो गया था। वह 21 दिनों से अस्पताल में भर्ती थे।
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का मंगलवार दोपहर दिल्ली के लोधी रोड विद्युत शव दाह गृह में पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के मिराती गांव में 11 दिसम्बर 1935 को जन्मे मुखर्जी को जीवन की आरंभिक सीख अपने स्वतंत्रता सेनानी माता-पिता से मिली। उनके पिता कांग्रेस के नेता थे, जिन्होंने बेहद आर्थिक संकटों का सामना किया। स्वाधीनता आंदोलन में अपनी भूमिका के लिए वह कई बार जेल भी गए।
मंत्रिमंडल के प्रस्ताव में कहा गया है कि मुखर्जी ने अपने पेशेवर जीवन की शुरूआत कालेज के शिक्षक और एक पत्रकार के रूप में की । उन्होंने अपना सार्वजनिक जीवन 1969 में राज्यसभा के लिये निर्वाचित होने के साथ शुरू किया । उन्होंने 1973-75 के दौरान उद्योग, परिवहन, वित्त राज्यमंत्री का दायित्व भी संभाला ।
मुखर्जी 1982 में भारत के सबसे युवा वित्त मंत्री बने। तब वह 47 साल के थे। आगे चलकर उन्होंने विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री और वित्त व वाणिज्य मंत्री के रूप में भी अपनी सेवाएं दीं। वह भारत के पहले ऐसे राष्ट्रपति थे जो इतने पदों को सुशोभित करते हुए इस शीर्ष संवैधानिक पद पर पहुंचे थे।
मुखर्जी भारत के एकमात्र ऐसे नेता थे जो देश के प्रधानमंत्री पद पर न रहते हुए भी आठ वर्षों तक लोकसभा के नेता रहे। वह 1980 से 1985 के बीच राज्यसभा में भी कांग्रेस पार्टी के नेता रहे। अपने उल्लेखनीय राजनीतिक सफर में उन्होंने और भी कई उपलब्धियाँ हासिल कीं। उनके राजनीतिक सफर की शुरूआत 1969 में बांग्ला कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में राज्यसभा सदस्य बनने से हुई। बाद में बांग्ला कांग्रेस का कांग्रेस में विलय हो गया।
मुखर्जी जब 2012 में देश के राष्ट्रपति बने तो उस समय वह केंद्र सरकार के मंत्री के तौर पर कुल 39 मंत्री समूहों में से 24 का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। 2004 में शुरू हुए संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के कार्यकाल के उथल-पुथल के वर्षों से लेकर 25 जुलाई 2012 को राष्ट्रपति बनने तक वह सरकार के संकटमोचक बने रहे। राष्ट्रपति के रूप में भी उन्होंने एक अमिट छाप छोड़ी। इस दौरान उन्होंने दया याचिकाओं पर सख्त रुख अपनाया। इस दौरान राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय मामलों में उनकी विद्वता और मानवीय गुणों की छाप देखने को मिली। उन्होंने अर्थव्यवस्था एवं राष्ट्र निर्माण पर कई पुस्तकें लिखी।
सोर्स – भाषा
