नागार्नो – काराबाख में अजरबैजान और आर्मेनिया के बीच छिड़ी जंग के 37 दिन हो गए हैं । हर बीतते दिन के साथ मरने वालों की तादाद बढ़ रही है । आर्मेनिया के एक हजार से अधिक सैनिक अब तक मारे जा चुके हैं । अजरबैजान ने मारे गए अपने सैनिकों की संख्या जारी नहीं की है । सिर्फ नागरिकों की मौत का ही ब्योरा दिया है । वहीं , आर्तसाख से 90 हजार से अधिक लोग जान बचाकर आर्मेनिया पहुंच चुके हैं । बड़ी संख्या में भारतीय भी आर्मेनिया में रहते हैं । इसमें बिजनेस मैन से लेकर स्टूडेंट और डॉक्टर तक शामिल हैं । सभी अपनी तरफ से युद्ध में सहयोग कर रहे हैं ।
नागार्नो – काराबाख अधिकारिक तौर पर अजरबैजान का इलाका है , जिसमें आर्मेनियाई मूल के लोग रहते हैं और इस समय यहां आर्मेनियाई लोगों का ही नियंत्रण है । आर्मेनिया में इस इलाके को आर्तसाख कहा जाता है और वो इसे अपने लिए पवित्र भूमि मानते हैं । पंजाब के मलेरकोटला की रहने वाली अक्शा खान का परिवार येरेवान में इंडियन महक रेस्त्रां चलाता है । अक्शा के मुताबिक , उनका रेस्त्रां युद्ध से प्रभावित लोगों के लिए खाना पैक करके भिजवा रहा है ।
इंडिया – आर्मेनिया फ्रेंडशिप एनजीओ से जुड़े केरेन मैक्रतश्यान भारत के जेएनयू में पढ़े हैं और इन दिनों भारत और आर्मेनियाई लोगों के बीच कल्चरल रिलेशन को मजबूत करने के लिए काम करते हैं । वो कहते हैं , ‘ हमने येरेवान से आए शरणार्थी बच्चों को इंडियन कल्चर के रंग दिखाने के लिए अपने केंद्र बुलाया । युद्ध ग्रस्त इलाके से आए इन बच्चों को अच्छा महसूस कराने के लिए हमने भारतीय नृत्य दिखाए और मेहंदी कार्यक्रम किया ।
‘ तुर्की और अजरबैजान के पास कॉकेशस पहाड़ियों में बसा आर्मेनिया एक छोटा देश है और यहां 18 साल से अधिक उम्र का हर व्यक्ति सेना का हिस्सा है । जरूरत पड़ने पर सरकार किसी को भी लड़ने के लिए बुला सकती है । यही वजह है कि आर्मेनिया का हर परिवार युद्ध से प्रभावित है ।
(सोर्स दैनिक भास्कर)
