कठिनाइयां और मुश्किलें हमेशा साथ-साथ रहती है, लेकिन कई बार कोई उम्मीद की किरण बन कर चला आता है, अंधेरे से प्रकाश की ओर ले जाने को। कुछ ऐसा ही इन दिनों अरुणाचल प्रदेश की राजधानी ईटानगर में देखने को मिला। जहां एक छोटे से इलाके निरजुली में नुरांग मीना स्ट्रीट लाइब्रेरी चला रही हैं।
नुरांग मीना को लगता है कि अरुणाचल में कोविड की चुनौतियों के बीच दूसरी भी ऐसी कई चुनौतियां हैं, जिसपर सभी को ध्यान देना होगा। स्ट्रीट लाइब्रेरी के जरिये मीना चाहती हैं कोविड के बाद भी बच्चों और किशोरों में न सिर्फ पढ़ने की आदत बनी रहे, बल्कि पढ़ाई में के लिये चाहत भी पैदा हो।
किताबों को जिंदगी का हिस्सा बनाएं
नुरांग मीना बताती हैं कि यहां काफी ढूंढने पर कोई किताब मिलती है, सरकारी लाइब्रेरी काफी कम है। अगर किसी को कुछ पढ़ना है तो काफी मुश्किल होती थी। इसलिये जब स्ट्रीट लाइब्रेरी का आइडिया पता चला तो तुरंत इसे कॉपी कर लिया।
स्ट्रीट लाइब्रेरी का मीना का यह प्रयास आते-जाते बच्चों, छात्रों और सबसे जुड़ने की कोशिश है। ताकि वे यहां थोड़ा रूके, सोचे और हो सकता है एक दिन पढ़ने और जानने के तरीके को अपनी जिंदगी का हिस्सा बना लें।
हर साल हम देखते हैं स्कूल स्तर पर बच्चों का प्रोग्रेस कम होता जा रहा है। ऐसे में जो लोग किताबें नहीं खरीद सकते इतनी महंगी वो इसका प्रयोग कर सकते हैं। स्थानीय नागरिकों का भी कहना है कि उनके बच्चों को पहले स्कूल के बाद किताब और पढ़ाई से कोई मतलब नहीं होता था, लेकिन अब लाइब्रेरी से किताब लेकर पढ़ते हैं तो काफी अच्छा लगता है और विश्वास है कि वो आगे बढ़ेंगे। निरजुली में स्ट्रीट लाइब्रेरी जो सिर्फ किताब घर ही नहीं है बल्कि ऐसा नुक्कड़ हैं जिसमें नई उम्मीदों का सूरज उग रहा है।
