भारतीय चावल विदेश में रह रहे लोगों को खूब पंसद आ रहा है। यही वजह है कि दिनों-दिन इसकी मांग भी बढ़ती जा रही है। गौरतलब हो, वर्ष 2020-21 में भारत से विदेशों में 30 हजार करोड़ रुपए मूल्य का 46.30 लाख मीट्रिक टन चावल भेजा गया। इससे किसानों को भी बहुत आर्थिक लाभ पहुंचा है। इसी कारण बासमती धान की बुआई का क्षेत्रफल भी देश में लगातार बढ़ता जा रहा है।
दुनिया के करीब 125 देशों में जा रहा भारतीय बासमती चावल
भारत से चीन, पाकिस्तान, खाड़ी देशों, अमेरिका समेत दुनिया के लगभग 125 देशों में बासमती चावल का निर्यात किया जाता है। मेरठ के मोदीपुरम स्थित बासमती निर्यात विकास प्रतिष्ठान के प्रधान वैज्ञानिक व प्रभारी डॉ. रितेश शर्मा का कहना है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर बासमती चावल की खेती की जा रही है। यहां के किसान निर्यातकों को अपना धान बेचते हैं और निर्यातक विदेशों में उस बासमती चावल को बेचते हैं। इसका सीधा लाभ भी किसानों को आर्थिक लाभ के रूप में हो रहा है।
उन्होंने बताया कि विदेशों में भारतीय चावल की मांग बढ़ती जा रही है। एक अप्रैल 2020 से 31 मार्च 2021 तक भारत से 30 हजार करोड़ रुपए मूल्य का 46.30 लाख मीट्रिक टन बासमती चावल विदेशों को निर्यात किया गया। अच्छा दाम मिलने की वजह से किसान भी बासमती खेती के प्रति उत्साहित है।
यहां विशेष तौर पर की जा रही बासमती की खेती
भारत सरकार ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर जैसे कुछ राज्यों को ही बासमती धान बोने की अनुमति दी है। बासमती निर्यात विकास प्रतिष्ठान के जरिए प्रमाणित होने पर ही बासमती चावल को विदेशों को निर्यात की अनुमति मिलती है। दरअसल, विदेशों में निर्यात होने वाले बासमती चावल की गुणवत्ता को लेकर खासी सतर्कता बरती जाती है। भारत सरकार द्वारा अधिसूचित राज्यों में पैदा हुए बासमती चावल को ही विदेशों में निर्यात किया जाता है। यह निर्णय इसलिए लिया गया, क्योंकि कुछ राज्यों में उत्पादित बीज की गुणवत्ता बहुत खराब थी, जिस कारण किसानों को उचित लाभ नहीं मिल पा रहा था।
धान के क्षेत्रफल में आता रहता है उतार-चढ़ाव
बरसात के महीनों में बोई जाने वाले धान के क्षेत्रफल में प्रत्येक वर्ष उतार-चढ़ाव आता रहता है। मेरठ जनपद में 2009 में 17 हजार 629 हेक्टेयर क्षेत्रफल में धान बोया गया, जबकि 2010 में 17 हजार 605 हेक्टेयर में धान की बुआई हुई। 2011 में क्षेत्रफल घटकर 16 हजार 159 हेक्टेयर रह गया। 2012 में फिर से 17 हजार 211 हेक्टेयर पहुंच गया। 2013 में 16 हजार 643 हेक्टेयर, 2014 में 16 हजार 421, 2015 में घटकर 15 हजार 521 हेक्टेयर रह गया। 2016 में 16 हजार 122 हेक्टेयर, 2017 में 14 हजार 397 हेक्टेयर, 2018 में 14 हजार 556 में धान बोया गया। इसी तरह से वर्ष 2019 में 17 हजार 162 हेक्टेयर क्षेत्रफल में धान की बुआई हुई।
कृषि वैज्ञानिक कर रहे किसानों को जागरूक
बासमती चावल की खेती को लेकर कृषि वैज्ञानिक लगातार किसानों को जागरूक कर रहे हैं। कृषि विज्ञान केंद्र गौतमबुद्ध नगर के प्रभारी वैज्ञानिक डॉ. मयंक राय का कहना है कि अधिक पैदावार देने वाली फसलों में रोग व कीड़ों का खतरा ज्यादा रहता है। इसी कारण बासमती धान की फसल को रोग व कीड़ों का हमला जल्दी होता है। किसानों को फसल को कीड़ों व रोग से बचाने के लिए जागरूक किया जा रहा है।
स्वीकृत प्रजातियों की ही बुआई करें किसान
बासमती विकास निर्यात प्रतिष्ठान किसानों को स्वीकृत प्रजातियों की ही बुआई करने को प्रेरित कर रहा है। प्रतिष्ठान के प्रधान वैज्ञानिक व प्रभारी डॉ. रितेश शर्मा का कहना है कि बेहतर उपज प्राप्त करने के लिए किसानों को खेतों में अनुमोदित बीज का उपयोग करने को जागरूक किया जा रहा है।
बासमती विकास निर्यात प्रतिष्ठान, ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन लगातार पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के विभिन्न गांवों में जाकर किसानों को अनुशासित कीटनाशक की सीमित मात्रा में प्रयोग करने का सुझाव दिया जा रहा है। इससे बासमती की गुणवत्ता प्रभावित नहीं होगी।
ये हैं बासमती चावल की प्रजातियां
इस समय किसानों द्वारा बासमती चावल की लगभग 32 प्रजातियों की बुआई की जा रही है। इनमें बासमती 2017, बासमती 370, टाइप 3, पंजाब बासमती 1, पूसा बासमती 1, कस्तूरी, हरियाणा बासमती 1, माही सुगंधा, तरावड़ी बासमती, रणबीर बासमती, बासमती 386, उन्नत पूसा बासमती 1, पूसा बासमती 1121, वल्लभ बासमती 22, पूसा बासमती 6, पंजाब बासमती 2, बासमती सीएसआर 30, मालवीय बासमती धान 10.9, वल्लभ बासमती 21, पूसा बासमती 1509, पंत बासमती 1, बासमती 564, वल्लभ बासमती 23, वल्लभ बासमती 24, पूसा बासमती 1609, पंजाब बासमती 3, पूसा बासमती 1637, पूसा बासमती 1718, पूसा बासमती 1728, पंजाब बासमती 4, पंजाब बासमती 5, हरियाणा बासमती 2 शामिल है।
(इनपुट-हिन्दुस्थान समाचार)
