जैसा कि यूनेस्को के विश्व धरोहर केंद्र द्वारा कहा गया है, “ सभी धरोहर अतीत से हमारी विरासत है, जिसके साथ हम वर्तमान में जीते हैं और जिसे हम आने वाली पीढ़ियों को सौंपते हैं, हमारे सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहर जीवन और प्रेरणा के अपूरणीय स्रोत हैं।” हर वर्ष 18 अप्रैल को विश्व धरोहर दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष के लिए इसका थीम “जटिल अतीत: विविध भविष्य” है। सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत न केवल राष्ट्र की बल्कि समग्र रूप से मानवता की अमूल्य और अपूरणीय संपत्ति है। विश्व विरासत मानव जाति का साझा धन और जिम्मेदारी है। इसलिए, इस मूल्यवान संपत्ति की रक्षा और संरक्षण पूरी मानव जाति का कर्त्तव्य है।
वैश्विक धरोहरों के महत्व और संरक्षण के लिए जागरूकता फैलाना है उद्देश्य
अंतर्राष्ट्रीय परिषद द्वारा विश्व धरोहरों के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस 18 अप्रैल, 1982 को प्रस्तावित किया गया था और 1983 में यूनेस्को की आम सभा में इसे अनुमोदित किया गया था। इसका उद्देश्य विरासतों की विविधता, उन्हें आधुनिकता के चंगुल से बचाने के लिए तथा उनके महत्व और संरक्षण के लिए आवश्यक प्रयासों के बारे में जागरूकता फैलाना है।
इस संबंध में नेल्सन मंडेला ने कहा था कि हमारी समृद्ध और विविध सांस्कृतिक विरासतों में हमारे राष्ट्र के निर्माण में मदद करने की एक गहन शक्ति छिपी होती है। वहीं मार्कस गार्वे के अनुसार अपने पिछले इतिहास, उत्पत्ति और संस्कृति के ज्ञान के बिना एक व्यक्ति जड़ों के बिना एक पेड़ की तरह है।
भारत के पास है 38 विश्व धरोहर स्थल
स्मारक और स्थलों का अंतर्राष्ट्रीय परिषद यूनेस्को से जुड़ा एक वैश्विक गैर-सरकारी संगठन है। इसका मिशन स्मारकों के निर्माण, संरक्षण, उपयोग और संवर्द्धन, परिसरों और स्थलों के निर्माण को बढ़ावा देना है। यह यूनेस्को के विश्व धरोहर सम्मेलन के कार्यान्वयन के लिए विश्व धरोहर समिति का एक सलाहकार निकाय है। इस प्रकार, यह सांस्कृतिक विश्व विरासत के नामांकन की समीक्षा करता है और संपत्तियों के संरक्षण की स्थिति सुनिश्चित करता है। भारत में 38 विश्व धरोहर स्थल हैं जिनमें 30 सांस्कृतिक, 7 प्राकृतिक और 1 मिश्रित स्थल है।
इनका होता है एक उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य
एक विश्व धरोहर एक ऐसा स्थान होता है, जिसे संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन द्वारा उसके सांस्कृतिक महत्व के लिए सूचीबद्ध किया जाता है। विश्व विरासत दिवस हमें अपनी विरासत एवं संस्कृति जिनका पुरातात्विक महत्व होता है, को संरक्षित करने का अवसर देता है। उनके पास एक उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य है। वे विश्व धरोहर कन्वेंशन द्वारा नामित होते हैं। कन्वेंशन लोगों के प्रकृति के साथ जुड़ाव की कद्र करता है और दोनों के बीच समता को बनाए रखने की मूल आवश्यकता को समझता है। 1972 विश्व धरोहर सम्मेलन की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह एक एकल दस्तावेज में ‘प्रकृति संरक्षण की अवधारणाओं और सांस्कृतिक गुणों के संरक्षण’ को एक साथ समेटे हुए है।