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दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण नियंत्रण के लिए लोकसभा में हुआ बिल पास

पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव ने 4 अगस्त, 2021 को लोकसभा में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और निकटवर्ती इलाकों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन हेतु आयोग बिल 2021 को पेश किया। बिल लोकसभा से पास हो गया। इससे पहले 30 जुलाई को बिल राज्यसभा से भी पास हो चुका है। इस बिल के पारित होने के बाद सदन की कार्यवाही को स्थगित करना पड़ा। वहीं विपक्ष संसद में पेगासस जासूसी कांड, किसान आंदोलन और कोरोना त्रासदी के मुद्दे पर मुखर बना हुआ है।

अध्यादेश की लेगा जगह बिल

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और निकटवर्ती इलाकों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन हेतु आयोग अध्यादेश, 2021 को 13 अप्रैल, 2021 को जारी किया गया। अध्यादेश राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) तथा निकटवर्ती इलाकों में वायु गुणवत्ता से संबंधित समस्याओं के बेहतर समन्वय, अनुसंधान, उन्हें पहचानने और उनका हल करने के लिए आयोग के गठन का प्रावधान करता है। निकटवर्ती इलाकों में हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश राज्यों के क्षेत्र आते हैं, जहां प्रदूषण का कोई स्रोत एनसीआर की वायु गुणवत्ता को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकता है। अध्यादेश 1998 में एनसीआर में स्थापित पर्यावरण प्रदूषण रोकथाम और नियंत्रण अथॉरिटी को भंग करता है। ऐसे ही एक आयोग वाला अध्यादेश अक्टूबर 2020 में जारी किया गया था। 2021 के इस बिल की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

आयोग का कामकाज

बिल के अनुसार आयोग के कामकाज में निम्नलिखित कार्य शामिल होंगे

(i) बिल के अंतर्गत संबंधित राज्य सरकारों (दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश) के कार्यों के बीच समन्वय स्थापित करना
(ii) एनसीआर में वायु प्रदूषण की रोकथाम और उसे नियंत्रित करने की योजनाएं बनाना और उन्हें अमल में लाना
(iii) वायु प्रदूषकों को चिन्हित करने के लिए फ्रेमवर्क प्रदान करना
(iv) तकनीकी संस्थानों के साथ नेटवर्किंग के जरिए अनुसंधान और विकास करना
(v) वायु प्रदूषण से संबंधित समस्याओं को हल करने के लिए स्पेशल टास्क फोर्स बनाना और उसका प्रशिक्षण
(vi) विभिन्न कार्य योजनाएं तैयार करना, जैसे पौधे लगाना और पराली जलाने के मामलों पर ध्यान दिलाना।

आयोग की शक्तियां:

आयोग की शक्तियों में निम्नलिखित प्रमुख बातें शामिल हैं

(i) वायु गुणवत्ता को प्रभावित करने वाली गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाना
(ii) वायु गुणवत्ता को प्रभावित करने वाले पर्यावरणीय प्रदूषण की जांच और उन पर अनुसंधान करना
(iii) वायु प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण हेतु संहिताएं और दिशानिर्देश तैयार करना
(iv) व्यक्तियों और अथॉरिटी के लिए मुद्दों और रेगुलेशंस, जिसमें निरीक्षण भी शामिल है, पर निर्देश जारी करना। इसके अतिरिक्त आयोग पराली जलने से होने वाले प्रदूषण पर किसानों से मुआवजा वसूल सकता है। केंद्र सरकार इस पर्यावरणीय मुआवजे को निर्दिष्ट करेगी।

सिर्फ आयोग का होगा अधिकार

बिल में स्पष्ट मामले केवल आयोग के क्षेत्राधिकार में आएंगे (जैसे वायु गुणवत्ता प्रबंधन)। वह इन मामलों की एकमात्र अथॉरिटी होगा। किसी मतभेद की स्थिति में राज्य सरकारों (दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश), केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), राज्य पीसीबीज़ और राज्य स्तरीय वैधानिक निकायों के आदेशों के स्थान पर आयोग के आदेश या निर्देश लागू होंगे।

कौन-कौन होगा आयोग का सदस्य

आयोग में निम्नलिखित सदस्य शामिल होंगे: (i) चेयरपर्सन, (ii) मेंबर सेक्रेटेरी और चीफ कोऑर्डिनेटिंग ऑफिसर के तौर पर संयुक्त सचिव के पद का अधिकारी, (iii) पूर्णकालिक सदस्य के रूप में केंद्र सरकार का मौजूदा या पूर्व संयुक्त सचिव, (iv) स्वतंत्र तकनीकी सदस्यों के रूप में वायु प्रदूषण से संबंधित ज्ञान और विशेषज्ञता वाले तीन सदस्य, और (iv) गैर सरकारी संगठनों से तीन सदस्य। आयोग के चेयरपर्सन और सदस्यों का कार्यकाल तीन वर्ष या उनके 70 वर्ष की आयु होने तक होगा (इनमें से जो भी पहले होगा)।

आयोग में निम्नलिखित पदेन सदस्य भी शामिल होंगे: (i) केंद्र और संबंधित राज्य सरकारों के सदस्य, और (ii) सीपीसीबी, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन और नीति आयोग के तकनीकी सदस्य। इसके अतिरिक्त आयोग कुछ मंत्रालयों के प्रतिनिधियों को भी नियुक्त कर सकता है।

सिलेक्शन कमिटी चुनेगी आयोग के सदस्य

केंद्र सरकार एक सिलेक्शन कमिटी का गठन करेगी, जिसकी सलाह से आयोग के चेयरपर्सन और सदस्यों की नियुक्ति की जाएगी। इस कमिटी के चेयरपर्सन पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के प्रभारी मंत्री होंगे। कमिटी में निम्नलिखित मंत्रालयों के प्रभारी मंत्री भी शामिल होंगे: (i) वाणिज्य एवं उद्योग, (ii) सड़क परिवहन एवं राजमार्ग, (iii) विज्ञान एवं तकनीक, और (iv) कैबिनेट सचिव।

निर्देशों का पालन न करने पर होगा जुर्माना

बिल के प्रावधानों या आयोग के आदेशों अथवा निर्देशों का उल्लंघन करने पर पांच वर्ष तक की कैद या एक करोड़ रुपए तक का जुर्माना, या दोनों भुगतने पड़ सकते हैं। आयोग के सभी आदेशों के खिलाफ अपील की सुनवाई नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा की जाएगी।

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