पिछले कुछ वर्षों में भारत की विदेश नीति में महत्वपूर्ण परिवर्तन देखने को मिले हैं। भारतीय विदेश मंत्रालय की नीतियों और ‘इंडिया फर्स्ट’ पॉलिसी अपनाकर भारत विश्व गुरु बनने की ओर अग्रसर है। भारत एक आत्मविश्वासी राष्ट्र है, जो हमारी संस्कृति और मूल्यों में निहित है और राष्ट्रीय हित के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में यह आवश्यक है।
भारत की बदलती छवि
भारत की बदली हुई छवि दर्शाती है कि आज भारत को प्रमुख विश्व शक्तियों में से एक के रूप में माना जा रहा है और भारत आज एक ऐसे मोड़ पर है जहां वह आत्मविश्वास के साथ भविष्य की ओर कदम बढ़ा रहा है। विदेश मंत्रालय के प्रयासों से आज भारत की विदेश नीति में क्षमता, विश्वसनीयता और संदर्भ के रूप में काफी परिवर्तन हुआ है। कोविड-19 से निपटने के दौरान, भारत की क्षमताऐं वृद्धि के तौर पर सामने आई हैं। पीपीपी के मामले में विश्व की तीसरी सबसे बड़ी और तेजी से बढ़ती हुई भारत की अर्थव्यवस्था ने वैश्विक एजेंडे को आकार देने में अपने प्रभाव और वैश्विक मानवीय संकटों के लिए ‘प्रथम प्रतिक्रिया’ के रूप में अपनी भूमिका से इस दृष्टिकोण में भी बदलाव किया है कि दुनिया भारत की क्षमताओं को कैसे देखती है।
‘आत्मनिर्भर भारत’ देश की क्षमताओं और शक्तियों के निर्माण का आह्वान
आत्मनिर्भर भारत संरक्षणवाद नहीं है, बल्कि यह भारत की क्षमताओं और शक्तियों के निर्माण का आह्वान है ताकि यह दुनिया के साथ मिलकर कार्य कर सके और उसमें योगदान दे सके। यह ‘मेक इन इंडिया के साथ मेक फॉर द वर्ल्ड’ दृष्टिकोण के अनुरूप है। वर्तमान में इसका प्रमुख उदाहरण वैक्सीन हैं, जहां भारत न केवल स्वदेशी वैक्सीन का उत्पादन कर रहा है, बल्कि इसका घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में अंतरराष्ट्रीय सहयोग के रूप में भी उपयोग कर रहा है। दीर्घकालिक अवधि के सकारात्मक दृष्टिकोण से ही भारत विकसित हो सकता है और अपनी अदम्य क्षमता का लाभ उठा सकता है।
‘भारत-प्रशांत की धुरी’ के संबंध में, हिंद और प्रशांत महासागर के बीच रहे पिछले फासले अब मिट चुके हैं, क्योंकि हमारे हित ऐसे पदचिह्नों के रूप में जिनकी सभ्यतागत विरासत है, हिंद महासागर से काफी आगे तक व्याप्त हैं। व्यापार, संपर्क और सुरक्षा के क्षेत्र में भारत के कुछ प्रमुख साझेदार इस क्षेत्र में हैं और भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ हितों का तालमेल भी साझा करता है। भारत विस्तारित पड़ोस के साथ चाहे वह पूर्व में आसियान हो, फारस की खाड़ी हो या फिर पश्चिम में अफ्रीका सबके साथ अपने ऐतिहासिक संपर्क के पुनर्निर्माण पर भी ध्यान केंद्रित कर रहा है। बताना जरूरी होगा कि इसमें विदेश मंत्रालय महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है।
‘पड़ोसी पहले’ की नीति भारत के लिए रही लाभप्रद
‘पड़ोसी पहले’ की नीति भारत के लिए लाभप्रद रही है। 2014 से 2022 तक विदेश मंत्रालय के प्रयासों से ‘पड़ोसी पहले’ नीति के तहत भारत ने अपने पड़ोसी मुल्कों से अपने संबंध और भी बेहतर किए हैं। जी हां, इस नीति का ही कमाल है जिसने बांग्लादेश के साथ भारत के संबंधों के लोकाचार को बदल दिया है, समुद्री और भूमि सीमा के मुद्दों का समाधान किया है, संपर्क और ऊर्जा जुड़ावों का पुनर्निर्माण भी किया गया है। वहीं भूटान, नेपाल, म्यांमार, श्रीलंका और मालदीव के संदर्भ में भी यही सत्य है कि इन देशों में भी भारत का व्यापार व निवेश, लोगों के बीच संबंध, ऊर्जा और संपर्क के प्रवाह में बढ़ोतरी हुई है।
भारत की विदेश नीति के प्रति गहरी रुचि नजर आ रही है और सार्वजनिक कूटनीति में भी बदलाव आया है। व्यापार, राष्ट्रीय सुरक्षा अथवा आतंकवाद के संदर्भ में देखें तो घरेलू नीति पर भी विदेश नीति का प्रभाव स्पष्ट है। दुनिया महाद्वीपों से महासागरों पर ध्यान केंद्रित कर रही है और भारत अपनी समुद्री क्षमता में लगातार विस्तार करते हुए इसके लिए तैयारी कर रहा है। भारत इसके लिए समय-समय पर नेवल एक्सरसाइज भी करता रहता है। जरूरत पड़ने पर भारतीय सेना मित्र राष्ट्रों के जवानों के साथ समुद्री युद्धाभ्यास भी करती रहती है। युद्धाभ्यास के नतीजे भी सारी दुनिया के सामने है। यह भारतीय नौसेना द्वारा खोज और बचाव कार्यों, सुरक्षित निकासी, समुद्री डकैती के खिलाफ अभियानों में कुशलता से प्रदर्शित हो रही है। बदलती वैश्विक गतिशीलता के बीच, भारत ने अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को भी सफलतापूर्वक बनाए रखा है और एजेंडे को आकार देने में अपनी अनूठी छाप छोड़ी है।
