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पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के नई पार्टी बनाने से किसको होगा फायदा ,किसको होगा नुकसान ,सब कुछ पढ़ें विस्तार से

कल पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने , विधानसभा चुनाव से पहले बड़ा विस्फोट किया है, जिससे फिर एक बार राजनीतिक समीकरण के तेजी से बदलने की उम्मीद बन गई है। नवजोत सिंह सिद्धू के बगावती रुख के कारण अपना इस्तीफा सौंपने वाले अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस से बगावत के बिगुल फूंक दिया है, उन्होंने विधानसभा चुनाव से पहले पंजाब के लोगों की सेवा और सुरक्षा के लिए खुद की पार्टी बनाने का ऐलान कर दिया है, जिसके बाद फिर से एक बार सभी राजनीतिक दलों के अंदर उथल-पुथल मचने शुरू हो गए हैं , इससे जहां पंजाब में अकाली-भाजपा गठबंधन के खत्म होने के बाद नए सिरे से राजनीति में जमीन खोज रही भाजपा नए समीकरण की एक उम्मीद मिली है ,तो दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी को बड़ा झटका लगा है, क्योंकि अमरिंदर सिंह एक लोकप्रिय नेता हैं,और पंजाब में उनकी काफी पकड़ मानी जाती है, ऐसे में आगामी विधानसभा चुनाव में यह पार्टी के लिए बड़ा सरदर्द साबित होने वाला है कि,वह इससे खुद को कैसे बचा कर अपनी नैया पार लगा सकती है।इन सबके साथ नवीन ठुकराल के अनुसार कैप्टन वह समान विचारधारा वाले दलों जैसे ढींढसा और ब्रहापुरा जैसे दलों के साथ भी गठबंधन कर सकते हैं, ऐसे में आगामी विधानसभा चुनावों में कुछ बड़ा उलटफेर देखने को मिल सकता है।जिसकी आशंका पहले से ही जताई जा रही थी कि , ऐसा कुछ हो सकता है।

अब जब अमरिंदर सिंह ने पार्टी बनाने का ऐलान कर दिया है तो समझो है कि किस पार्टी को आगामी विधानसभा चुनाव में इससे कितना फायदा और कितना नुक़सान हो सकता है।

कांग्रेस

70 के दशक के शुरुआत में जब पंजाब की राजनीति में अकाली दल का प्रभाव बढ़ना शुरू हुआ,तो उसके बाद प्रदेश में कांग्रेस के खिलाफ माहौल तैयार होने लगें , जिससे कांग्रेस के अंदर चिंता की लहर उठने लगी कि , अकाली का प्रभाव रोका जाए , ऐसे में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्व श्री राजीव गांधी ने कैप्टन अमरिंदर सिंह को कांग्रेस में शामिल होने के लिए कहा । अमरिंदर सिंह भारतीय सेना के पूर्व कैप्टन और पटियाला राजघराने से आते थे ,तो लोगों के अंदर इनकी काफी लोकप्रियता थी, इससे पहले अमरिंदर सिंह ने 1963 में एनडीए पास करके सेना में अपनी सेवा दिए फिर इस्तीफा दे कर वापस आ गए थे, हालांकि उसके बाद जब फिर से 1965 के दौरान जब जंग के हालात बने तो सेना ने इन्हें वापस बुलाया , लेकिन कुछ समय बाद इन्होंने फिर से नौकरी छोड़ दिया था। अमरिंदर सिंह ने पटियाला सीट लोकसभा चुनाव लडा , लेकिन इन्हें सफलता नहीं मिली इन्हें अकाली नेता गुरचरण सिंह टोहरा से चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। हालांकि इसके बाद इन्होंने दुबारा 1980 में पटियाला की सीट से चुनाव जीतकर पहली बार ये सांसद बने । इसके बाद वो दौर आया जिसका जिक्र इतिहास के पन्नों में साफ साफ मिलता है,ये वो समय था जब पंजाब में जनरैल सिंह भिंडरावाले , जिन्होंने पंजाब में अकाली के सामने कांग्रेस को मजबूत किया था ,अब वो धीरे धीरे वक्त के साथ कांग्रेस पार्टी का सिरदर्द बनने लगे थे, पंजाब समेत देश के कई हिस्सों में स्थिति काफी बिगड़ने लगी थी, जिसके बाद सरकार द्वारा कुछ कदम उठाए गए जिसके बाद जगह जगह पर सिख समुदाय के लोगों ने अपना विरोध दर्ज कराया,उस समय सेना में शामिल सिख समुदाय के बंगावत और सेना छोड़ने की भी खबर निकलकर सामने आयी। जिसके बाद अमरिंदर सिंह ने भी कांग्रेस पार्टी से अपना इस्तीफा सौंपने के बाद अकाली दल में शामिल हो गए। जिसके बाद हुए चुनाव में उन्होंने अकाली दल के टिकट पर तलवंडी साबू से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे , जिसके बाद उन्हें मौजूद सरकार में महत्वपूर्ण पदों की जिम्मेदारी दी गई, हालांकि कुछ समय बाद किसी बात को लेकर उन्होंने अकाली से अलग होकर 1992 के बाद उन्होंने शिरोमणि अकाली दल (पंथिक) नाम की नई पार्टी का गठन किया,उनके कांग्रेस में शामिल होने के बाद इसका विलय 1998 में कांग्रेस में हुआ। अमरिंदर सिंह की काबिलियत को देखते हुए कांग्रेस पार्टी ने इनको 1999 में कांग्रेस ने पहली प्रदेश अध्यक्ष बनाया,2002 में हुए विधानसभा चुनाव में इन्होंने प्रदेश अध्यक्ष की भूमिका निभाते हुए कांग्रेस को 62 सीटों पर जीत दिलाई, जिससे इनके प्रदेश में बढ़ते लोकप्रियता और कद को देखते हुए मुख्यमंत्री का दायित्व सौंपा ,2017 में जहां मोदी की लोकप्रियता के आगे सारे किले ठह गए थे, वहीं अमरिंदर सिंह ने अपनी लोकप्रियता के बदौलत भाजपा के इस आंधी को पंजाब में रोकते हुए,80 सीटें जीती और फिर से कैप्टन को मुख्यमंत्री बने , लेकिन उसके बाद से लगातार राजनीतिक समीकरण बदलने शुरू हुए जो विधायक अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में चुनाव जीतकर आए थे, उन्होंने ही कैप्टन के खिलाफ बगावत करना शुरू कर दिया, अपने ही पार्टी के 40 से ज्यादा कांग्रेस विधायकों की नाराजगी का सामना कर रहे कैप्टन अमरिंदर सिंह ने 18 सितम्बर को पंजाब के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था, जिसके बाद वो लगातार कांग्रेस पार्टी के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद कर रहे थे, पंजाब की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर उन्होंने दो बार मुलाकात भी किया , जिसके बाद यह कयास लगाए जा रहे थे कि वो भाजपा में शामिल हो सकते हैं, जिसको कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सिरे से नकारते हुए कहा था वो भाजपा में शामिल नहीं होंगे। कैप्टन को मनाने के लिए कांग्रेस पार्टी लगातार जुटी हुई थी, प्रदेश प्रभारी से लेकर मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने उनसे मुलाकात भी किया था और विश्वास जताया था कि कैप्टन पार्टी में ही रहेंगे,यह कांग्रेस के लिए बड़ा झटका है, क्योंकि मौजूदा समय की सरकार में भी कई विधायक उनका समर्थन करने वाले हैं,और जो चुनाव में पार्टी की जीत की मंशा पर पानी फेर सकती है।

बीजेपी

अमरिंदर सिंह के इस ऐलान के बाद अगर किसानों के मुद्दों पर अमरिंदर सिंह और भारतीय जनता पार्टी के बाद समन्वय स्थापित हो जाता है तो यह भाजपा के लिए बड़ा कारगर साबित हो सकता है, क्योंकि पंजाब में पांच बार से साथ चुनाव लडने वाली भाजपा और अकाली अब अलग अलग रास्ते पर चल चुके हैं, ऐसे में भाजपा को जिस राजनीतिक जमीन और समीकरण की तलाश थी,वह कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ गठबंधन से पूरा हो सकता है। मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने और कांग्रेस छोड़ने के बाद जिस तरह गृहमंत्री के साथ कैप्टन के मुलाकात हुए , शुरुआत में ऐसा लग रहा था कि वो खुलकर भाजपा में शामिल हो सकते हैं, हालांकि उन्होंने इन तमाम संभावनाओं पर विराम देते हुए,इस बात को सिरे से नकार दिया था, लेकिन भाजपा की तलाश से यह साफ संकेत मिल रहे थे कि अगर कैप्टन अमरिंदर सिंह पार्टी में शामिल होते हैं तो पार्टी उनका तहे दिल से स्वागत करने के लिए तैयार है। भाजपा और अमरिंदर सिंह के बीच क्या समझौता होगा ये आने वाले दिनों में किसानों के मुद्दों को लेकर कैसे हल किया जाता है,यह तय करेगा कि दोनों के बीच संबंध बनेंगे या नहीं क्योंकि अमरिंदर सिंह का किसानों के मुद्दों पर रुख एक दम से साफ है कि ये किसानों के मुद्दों पर हल करना चाहते हैं।

अकाली दल

पंजाब में जब माहौल कांग्रेस के विपक्ष में था तो , कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस के सांसद पद से इस्तीफा देकर अकाली दल में शामिल हो गए। जिसके बाद हुए चुनाव में उन्होंने अकाली दल के टिकट पर तलवंडी साबू से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे , जिसके बाद उन्हें मौजूद सरकार में महत्वपूर्ण पदों की जिम्मेदारी दी गई, हालांकि कुछ समय बाद किसी बात को लेकर उन्होंने अकाली से अलग होकर 1992 के बाद उन्होंने शिरोमणि अकाली दल (पंथिक) नाम की नई पार्टी का गठन किया था। 6 साल तक अमरिंदर सिंह ने अपनी इस नई पार्टी को पंजाब में मजबूत करने की कोशिश की. इस दौरान राज्य में तीन बार चुनाव भी हुए, लेकिन अमरिंदर सिंह छाप छोड़ने में पूरी तरह नाकाम रहे । सिख समुदाय के लोगों पर मजबूत पकड़ बनाने में जुटी शिरोमणि अकाली दल को इससे फायदा होने वाला है क्योंकि अमरिंदर सिंह और कांग्रेस के बीच बंटे वोट को अकाली अपने पाले में लाने के लिए पूरी कोशिश करेगी। वहीं दूसरी तरफ कल अमरिंदर सिंह के मीडिया सलाहकार ने इस बात के साफ संकेत दिए हैं कि वो समान विचारधारा वाले दलों जैसे ढींढसा और ब्रहापुरा जैसे के साथ समझौता कर सकते हैं ,अगर ये समीकरण बनता है तो कांग्रेस के लिए अपने सिख वोट बैंक को बचाने की चुनौती रहेगी।

आप

दिल्ली के बाद पंजाब की सत्ता पर काबिज होने के सपनों को साकार करने में जुटी आम आदमी पार्टी को , इससे बहुत फायदा होने की उम्मीद है, क्योंकि चाहे वो किसानों के मुद्दे हो या फिर फ्री बिजली, पानी और रोजगार जैसे वादे हो ,आम आदमी पार्टी साम दाम दण्ड भेद से पंजाब में सत्ता में आने के लिए तैयारी में जुटी हुई है, जिसके लिए उसके राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल लगातार पंजाब का दौरा कर रहे हैं और मौजूदा सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। अमरिंदर सिंह के मुख्यमंत्री रहते जब कांग्रेस पार्टी के अंदर बगावत हो रहे थे तो कुछ न्यूज चैनलों के सर्वे में आप पंजाब में सरकार बनाते हुए दिख रही थी,इस में आम आदमी पार्टी 35.1 फसदी वोट शेयर (51 से 57 सीटों) के साथ आगे दिख रही थी। पिछले विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के खाते में 20 सीटें गई थी और वह दूसरे नम्बर की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी।इस बार जब पंजाब कांग्रेस में लगातार बगावत हो रहे हैं, सिद्धू लगातार पार्टी के खिलाफ विरोध में रुख अपनाए हुए हैं,और अब जब अमरिंदर सिंह ने नई पार्टी बनाने का ऐलान कर दिया है तो सत्ता में आने के आप के सपनों को नयी उर्जा मिलेगी और दूसरी तरफ पार्टी फ्री और रोजगार जैसे वादे भी कर रही है।

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