पाकिस्तान को एक बार फिर से बड़ा झटका लगा है। दरअसल पाकिस्तान को एक बार फिर से फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की नकारात्मक सूची (ग्रे लिस्ट) में रखने का फैसला किया गया है। एफएटीएफ मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकी फंडिंग पर निगरानी रखने वाली एक वैश्विक संस्था है। बताना चाहेंगे, पाकिस्तान बीते तीन साल से इसकी ग्रे लिस्ट में बना हुआ है, जिसका मतलब यह है कि पाकिस्तान में पैसे का इस्तेमाल आतंकियों की फंडिंग के लिए किया जाता है।
क्या होगा इसका नतीजा ?
किसी देश के ग्रे लिस्ट में शामिल होने से उसके विदेशी निवेश के प्रवाह पर प्रभाव पड़ता है। इससे उस देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचना लाजमी पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में जून 2018 में डाला गया था। पाकिस्तान को उसके बाद फिर से यह बड़ा झटका लगा है। ऐसे में आतंकी संगठनों को धन उपलब्ध कराने और उनसे नजदीकियों के आरोपों का खामियाजा पूरे पाकिस्तान की आवाम को भुगतना पड़ रहा है।
आईएमएफ सहित अंतरराष्ट्रीय निकायों से नहीं मिलेगी मदद
यही कारण है कि पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) सहित अंतरराष्ट्रीय निकायों से निवेश और सहायता के लिए आर्थिक मदद पाने में मुश्किलें भी आएंगी। एफएटीएफ ने जून 2018 में पाकिस्तान को निगरानी सूची में डाला था।
3 साल पहले सूची में डाला गया था पाकिस्तान का नाम
पाकिस्तान को तीन साल पहले को एफएटीएफ की नकारात्मक सूची में डाला गया था, जो अभी भी जारी है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान पाकिस्तान को इस सूची से बाहर निकालने की तमाम कोशिश कर चुके हैं, लेकिन उनके हाथ कुछ भी नहीं लगा। एक रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान में आतंकियों के तगड़े नेटवर्क के चलते इमरान को एफएटीएफ की कार्य योजना को लागू करने में मुश्किलें पेश आ रही हैं।
21 जून से शुरू हुआ था एफएटीएफ का वर्चुअल सत्र
पेरिस में एफएटीएफ का वर्चुअल सत्र 21 जून से शुरू हुआ था, जिसका समापन 25 जून को हुआ। इसमें फैसला लिया गया कि पाकिस्तान नकारात्मक सूची में बना रहेगा। एफएटीएफ की क्षेत्रीय शाखा एशिया प्रशांत समूह (एपीजी) ने पाकिस्तान का ‘इन्हैंस्ड फॉलो-अप’ दर्जा बरकरार रखते हुए उससे मनी लॉन्ड्रिंग रोधी और आतंकवाद के वित्तपोषण उपायों को मजबूत करने के लिए कहा था। इससे तय हो गया था कि पाकिस्तान एफएटीएफ की निगरानी सूची में बना रहेगा। एपीजी ने आतंकी गतिविधियों पर लगाम लगाने और आर्थिक अपराध को रोकने के लिए एक प्रभावी तंत्र विकसित में नाकाम रहने पर उक्त फैसला लिया था।
