आज बुधवार को लोकपर्व छठ का तीसरा दिन है। इसे संध्या अर्घ्य के नाम से भी जाना जाता है। सभी लोग बड़े प्रेम भाव के साथ आपस में मिलजुल कर इस दिन पूजा की तैयारियां करते हैं। ठेकुआ, पुआ, कसेली (सुपारी) का भोग प्रसाद बनाते है। दौरि अर्थात बांस की टोकरी, सूप में पूजा के लिए पांच प्रकार के फल, नारियल, बनाए गए पकवान सजाए जाते हैं और सब मिलकर मंगल गीत, छठी मैया के गीत गाते हैं। सूप का प्रयोग मुख्यतः अनाज को बीनने, फटकने से लेकर अनाज में से कूड़ा-करकट दूर करने के लिए किया जाता है।
छठ पर्व पर तीसरे दिन संध्या अर्घ्य पर कलश दिए जलाकर गन्ने से घेरकर बेदी बनाकर पूजा की जाती है। इस दौरान कामना अनुसार महिलाएं कोशी भी भरती हैं। शाम होने पर घर के पुरुष सूप, दौरि को सजा कर सिर के ऊपर रखकर उसे घाट तक ले जाते हैं।
वहीं छठ व्रती नंगे पांव हाथ में कलश और दीप लेकर घाट तक जाते हैं। स्थान पर पहुंच कर गोबर से बनाई गई बेदी को टिकती और पूजते हैं, घी के दिये जलाते हैं। इसके बाद वह सूर्यास्त से कुछ समय पूर्व ही घुटने भर जल में जाकर खड़े हो जाते हैं।
गौरतलब हो छठ पूजा नहाय-खाय के साथ 8 नवंबर को शुरू हुई थी। उसके पश्चात 09 नवंबर को खरना किया गया। इस दिन पूजा के लिए प्रसाद इत्यादि तैयार किया जाता है। आज यानि 10 नवंबर को शाम को ढलते सूर्य को अर्घ्य और 11 नवंबर की सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देने के पश्चात ही छठ महापर्व सम्पन्न होगा।
