लद्दाख अपनी अनूठी संस्कृति, धार्मिक विरासत और शांतिप्रिय लोगों के साथ अलग पहचान रखता है। अगर कभी लेह, लद्दाख गए हैं तो निश्चित रूप से संरचनाओं की तरह से एक लंबी दीवार देखी होगी। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन दीवारों को ‘माने’ कहा जाता है और इनकी सबसे बड़ी खास बात यह है कि इनमें से कई का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है।
पत्थरों पर मंत्र अंकित कर रहे हैं ग्रामीण
पत्थरों पर नक्काशी की कला लेह की सांस्कृतिक विरासत को दर्शाती है। पट्टाहारों पर कला को संरक्षित करने के लिए ग्राम टिया के लोग पत्थरों पर छेनी, हथौड़ी के साथ आज भी सक्रिय हैं।
टिया गांव लेह के पश्चिम में 100 किमी दूरी पर स्थित है। कला और संस्कृति के संरक्षण के लिए इस गांव में एक ग्रामीण स्तर के एनजीओ त्सोगस्पा के लोग पत्थरों पर बौद्ध मंत्र का वर्णन करने के लिए नक्काशी करने में लगे हैं। एनजीओ के सदस्य माने नामक लंबी दीवारी के लिए लद्दाख के विभिन्न क्षेत्रों से पत्थर इकट्ठा कर रहे हैं और फिर इन पत्थरों पर मंत्र अंकित कर रहे हैं।
मंत्र अंकित पत्थरों की है मान्यता
दरअसल, ऐसी मान्यता है कि इन मंत्रों का जाप करने से न सिर्फ बहुत सारी खूबियां अर्जित होती है, बल्कि इससे मन को अच्छे दिल और करुणा में बदलने का प्रभाव भी पड़ता है।
इस बारे में त्सोगस्पा के अध्यक्ष पुंचोक नामग्याल बताते हैं कि कोविड महामारी के दौरान खाली समय के उपयोग के लिए पत्थरों पर नक्काशी का काम शुरू किया था लेकिन अब युवा और बुजुर्ग इस काम में रुचि लेने लगे हैं। पिछले तीन महीनों से अब 20 से 25 लोग नक्काशी का काम करने आते हैं। त्सोगस्पा के सदस्यों ने इन मनी पत्थरों को अलग-अलग क्षेत्रों में दान करने का निर्णय किया है।
रॉक नक्काशी का क्रेज युवाओं से लेकर बुजुर्गों तक को है। कई लोग नौकरी से सेवानिवृत्त होने के बाद रॉक नक्काशी कर रहे हैं और अपनी कला और संस्कृति धरोहर को सहेजने का प्रयास कर रहे हैं।
