कोरोना और लॉकडाउन ने जहां मानव जीवन को प्रभावित किया वहीं पर्यावरण के लिए ये वरदान साबित हुआ है। दरअसल, लॉकडाउन और कर्फ्यू से जहां प्रदूषण का स्तर कम हुआ है, वहीं कृषि और बागवानी में भी इस साल रिकॉर्ड उत्पादन देखने को मिल रहा है।
मिट्टी, पानी व हवा की गुणवत्ता में सुधार
मौसम विशेषज्ञों की मानें तो यह 2020 में हुए लाॅकडाउन का प्रभाव है। उनका कहना है कि कोरोना संक्रमण से निपटने के लिए पिछले वर्ष हुए देशव्यापी लॉक डाउन से भले ही आम जनजीवन प्रभावित हुआ था, लेकिन पर्यावरण संतुलन के लिए यह वरदान साबित हुआ। वातावरण पर इसका काफी सकारात्मक असर पड़ा। इस बार के आंशिक लाॅक डाउन का भी पर्यावरण पर सकरात्मक असर पड़ना तय है। लाॅकडाउन से मिट्टी, पानी व हवा की गुणवत्ता में सुधार हो रहा है। पारिस्थितिकी तंत्र (इकोसिस्टम) दुरुस्त होने से आम, लीची सहित अन्य फलों का उत्पादन काफी अच्छा होगा। खेतों की उर्वरा शक्ति बढ़ रही है। मित्र कीटों की संख्या बढ़ेगी और शत्रु कीटों की संख्या कम होने से वार्षिक व बहु वार्षिक फसलों को लाभ होगा, जिससे उत्पादकता बढ़ेगी। यह सब लाॅकडाउन के कारण ही हुआ है।
आम, कटहल और तरबूज का बढ़ा उत्पादन
यही वजह है कि फलों के राजा आम की फसल भी इस बार भरपूर होने की उम्मीद है। झारखंड खूंटी, सिमडेगा, गुमला, लोहरदगा सहित आसपास के सभी जिलों में इस बार शायद ही कोई ऐसा पेड़ हो, जो आम से लदा न हो। जिस आम के पेड़ पर नजर डालें, हर डाली आम की फसल से लदी नजर आती है। कमोवेश यही स्थिति कटहल की है। खूंटी के लोगों के ग्रामीण इलाके के लोगों को इस बार कटहल की पैदावार भी खूब हुई है। तरबूज की स्थिति तो यह है कि एक रुपये प्रति किलो की दर से बेचा जा रहा है। यूपी के भी मेरठ, बरेली, सहारनपुर में पेड़ों पर आम से डालियां झुंकने लगी हैं।
मिट्टी व हवा की गुणवत्ता में हो रहा है सुधार
खूंटी जिले के कृषि विशेषज्ञ और जिला कृषि पदाधिकारी कालीपद महतो कहते हैं कि जैविक व गोबर की खाद का इस्तेमाल होने से मिट्टी की सेहत सुधर रही है। डीजल चालित गाड़ियों के बंद रहने से खतरनाक सीसा (लेड) व कार्बन मोनो डाईऑक्साइड की मात्रा मिट्टी और पेड़-पौधों तक नहीं पहुंच रही है। शांत वातावरण में हर ओर पक्षियों के समान रूप से आवाजाही से मिट्टी में मौजूद कीड़े-मकोड़ों की संख्या कम हो रही है।
ज्ञात हो कि ये पक्षी मिट्टी में मौजूद टिड्डे जैसे शत्रु कीटों को अपना आहार बनाते हैं। वाहनों के नहीं चलने से हवा की गुणवत्ता में भी सुधार हो रहा है। उनका कहना है कि हवा में सुपरफाइन व अल्ट्राफाइन कण का फैलाव भी न्यूनतम हुआ है। उन्होंने कहा कि पारिस्थितिकी तंत्र एक प्राकृतिक इकाई है, जिसमें एक क्षेत्र विशेष के सभी जीवधारी पौधे, जानवर पर्यावरण के साथ अंतरक्रिया कर एक जैविक इकाई बनाते हैं। लॉकडाउन से पर्यावरण में निश्चित रूप से सुधार हो रहा है। नदियों का स्वच्छ पानी नहरों में आएगा और किसान उससे सिंचाई करेगा तब फसलों की उत्पादकता भी बढ़ेगी।
(इनपुट-हिन्दुस्थान समाचार)
