तमाम सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की इस्पात कंपनियों ने देश में मेडिकल ऑक्सीजन की जरूरतों को पूरा करने के लिए अपनी कोशिशें तेज कर दी हैं। इस संबंध में पिछले हफ्ते इस्पात और पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने दोनों, सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की इस्पात कंपनियों के प्रमुखों के साथ कई बैठकें की। इस दौरान सभी इस्पात संयंत्रों से मेडिकल ऑक्सीजन का उत्पादन बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास करने को कहा गया। इसके अलावा केंद्रीय मंत्री ने स्वास्थ्य सेवा को बढ़ाने के लिए ऑक्सीजन-युक्त बिस्तरों के साथ बड़े आकार की कोविड-देखभाल सुविधाओं का निर्माण करने के लिए भी कहा।
ऑक्सीजन के उत्पादन के लिए होते हैं विशेष रूप से डिजाइन किए गए ‘कैप्टिव ऑक्सीजन प्लांट्स’
स्टील कंपनियों को स्टील बनाने, ब्लास्ट फर्नेस में ऑक्सीजन के संवर्धन, लांसिंग और गैस कटिंग जैसे उद्देश्यों के लिए के लिए गैसीय ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। इसलिए, स्टील बनाने की प्रक्रिया के दौरान प्रेशर रिडक्शन एंड मैनेजमेंट सिस्टम के माध्यम से वांछित दबाव में ऑक्सीजन, नाइट्रोजन और आर्गन का उत्पादन करने के लिए इंटीग्रेटेड स्टील प्लांट्स में विशेष रूप से डिजाइन किए गए कैप्टिव ऑक्सीजन प्लांट्स होते हैं। ये प्लांट्स अधिकतम 5% से 6% लिक्विड ऑक्सीजन का उत्पादन कर सकते हैं, जिसे ऑक्सीजन का सबसे शुद्ध रूप माना जाता है। गैसीय ऑक्सीजन का फिल्टर करके और प्रक्रिया मानकों के अनुकूलन द्वारा लिक्विड ऑक्सीजन के उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है।
हाल ही में नाइट्रोजन प्लांट्स को ऑक्सीजन प्लांट्स में परिवर्तित करने के लिए पीएम मोदी ने की थी बैठक
इस सप्ताह की शुरुआत में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे देश में मेडिकल ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाने के लिए नाइट्रोजन का उत्पादन करने के वाले मौजूदा नाइट्रोजन प्लांट्स को ऑक्सीजन प्लांट्स में परिवर्तित करने की संभावनाओं के विषय पर चर्चा करने के लिए एक बैठक की अध्यक्षता की। वर्तमान में 14 उद्योगों को चुनकर उनके प्लांट्स के रूपांतरण का कार्य चल रहा है। इसके अलावा, उद्योग सहयोगियों की मदद से ऑक्सीजन के उत्पादन के लिए अन्य 37 नाइट्रोजन संयंत्रों की भी पहचान की गई है। इसके अतिरिक्त, पीएम केयर, पीएसयू और अन्य की सहायता से 1500 प्रेशर स्विंग एडसोर्प्शन (पीएसए) संयंत्र स्थापित किए जा रहे हैं।
नाइट्रोजन प्लांट्स में कुछ परिवर्तनों के साथ किया जा सकता है ऑक्सीजन का उत्पादन
नाइट्रोजन प्लांट्स कार्बन मॉलिक्यूलर सीव्स (सीएमएस) का उपयोग करते हैं, जबकि ऑक्सीजन का उत्पादन करने के लिए जायोलाइट मॉलिक्यूलर सीव्स (जेडएमएस) की आवश्यकता होती है। इसलिए सीएमएस की जगह जेडएमएस के प्रयोग के साथ-साथ कुछ अन्य उपकरण, जैसे ऑक्सीजन विश्लेषक, नियंत्रण कक्ष प्रणाली, प्रवाह वाल्व आदि की सहायता से मौजूदा नाइट्रोजन प्लांट्स को ऑक्सीजन का उत्पादन करने के लिए संशोधित किया जा सकता है।
सेल अब तक 50,000 मीट्रिक टन से अधिक एलएमओ की कर चुका है आपूर्ति
सबसे बड़े घरेलू इस्पात उत्पादकों में से एक स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) देश में लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन (एलएमओ) की आपूर्ति करने के लिए तत्परता से काम कर रही है। अप्रैल, 2021 में सेल ने 15 राज्यों को 17,500 मीट्रिक टन एलएमओ का वितरण किया है और यह अब तक 50,000 मीट्रिक टन से अधिक एलएमओ की आपूर्ति कर चुकी है। भारतीय स्वामित्व वाली राष्ट्रीय इस्पात निगम ने विशाखापत्तनम स्टील प्लांट में बनाए गए एक नए ऑक्सीजन प्लांट में उत्पादन शुरू करने के लिए कल ही ट्रायल रन शुरू कर दिया। 13 अप्रैल से 25 अप्रैल तक, कंपनी द्वारा 1,300 टन से अधिक मेडिकल ऑक्सीजन भेजी गई है तथा एलएमओ का औसत उत्पादन 100 टन से 140 टन तक बढ़ा है।
निजी कम्पनियां भी बढ़ा रही उत्पादन
टाटा स्टील ने भी प्रति दिन 1,000 टन तक ऑक्सीजन का उत्पादन किया है और अप्रैल से लेकर आखिर तक भारत के विभिन्न राज्यों और अस्पतालों में 25,700 टन ऑक्सीजन की आपूर्ति की है। टाटा स्टील ने लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन की प्रतिदिन आपूर्ति को 800 टन तक बढ़ा दिया है। मुंबई की एक स्टील निर्माता कंपनी, जेएसडब्ल्यू स्टील लिमिटेड ने घोषणा की है कि वह प्रतिदिन तरल मेडिकल ऑक्सीजन की आपूर्ति 1,200 टन तक बढ़ाने के लिए अपने उत्पादन को कम कर रही है और अगले महीने 20,000 टन से अधिक उत्पादन करने के लिए प्रतिबद्ध है।
हर जरूरतमंद को ऑक्सीजन उपलब्ध कराने के लिए भारत सरकार कर रही हर संभव प्रयास