जिन खेतों में कभी केवल कटीली झाड़ियां उगा करती थी, वहां अब धान की लहलहाती फसल पैदा होगी। जी हां, यह कमाल होने जा रहा है उत्तर प्रदेश के कौशांबी जिले में, जहां कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने ऊसर जमीन पर पैदावार शुरू करने के लिए ट्रायल शुरू किया है। बंजर खेतों में खास प्रजाति के बीज खेतों में रोपित कराकर उपज के नतीजे देखे जायेगे।
ऊसर जमीन को उपजाऊ बनाने की पहल
दरअसल, कौशाम्बी जनपद भौगोलिक दृष्टि से 90 किलोमीटर की परिधि जीवनदायिनी गंगा और यमुना नदी का द्वाब है। जहां परम्परागत खेती के आलावा नगदी फसल पैदा कर किसान अपनी जीवन नैया पार लगा रहा है। बावजूद इसके कई विकास खंड में जमीन का बड़ा हिस्सा ऊसर और बंजर है। कुछ तो अंधाधुंध रासायनिक उर्वरक के प्रयोग से जमीन बंजर हो गई है।
जिला विज्ञान केंद्र ने किसान की ऊसर जमीन को उपजाऊ बनाए जाने की पहल शुरू की है। जिसके तहत सिराथू तहसील के कादीपुर ग्राम सभा के चार किसानों के बंजर खेत को चुना है, जिसके एक-एक हेक्टेयर खेत में धान की खास प्रजाति सीएसआर-56 का ट्रायल किया जाएगा।
सीएसआर-56 धान का खासियत
जिला विज्ञानं केंद्र से जुड़े मृदा वैज्ञानिक डॉ. मनोज सिंह मिट्टी की पैदावार बढ़ाने पर अरसे से काम कर रहे है। उन्होंने बताया कि धान की खास प्रजाति सीएसआर 56 लवण अवरोधी है जो ऊसर-बंजर जमीन में अच्छे उपज के नतीजे देती है।
बंजर जमीन पर धान की खास प्रजाति की फसल 120 से 125 दिनों में तैयार हो जाती है। अनुमान लगाया जा रहा है कि एक हेक्टेयर में 60 से 65 कुंतल धान पैदा होगा। यह प्रजाति 9.0 पीएच मान तक की भूमि पर अच्छा उत्पादन देने की क्षमता रखती है। प्रजाति के पौधों की लम्बाई करीब 100 सेंटीमीटर तक होती है। फसल में फूल आने का समय 90 से 95 दिन के बीच का समय होता है। डॉ मनोज सिंह बताते है कि किसान मित्रों को पौधरोपण के समय विशेष ध्यान रखना चाहिए। जिसमे एक स्थान पर 2-3 पौधों का रोपण करना होगा।
चार किसान के खेत में शुरू हुआ ट्रायल
सिराथू तहसील के कादीपुर गांव के हीरमपर गांव के चारों किसान अपने खेतों पर केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान में तैयार धान की प्रजाति सीएसआर-56 को रोपित करेंगे। एक-एक हेक्टेयर के खेत में इस प्रजाति के धान का रोपण कार्य वैज्ञानिक ऑब्जर्वेशन में होगा। किसान राम अभिलाष ने उम्मीद जताते हुए बताया कि यह प्रयोग उनके जैसे कई किसान मित्रों के जीवन में नया सवेरा लेकर आएगा।
मिलेंगे नए आयाम
उद्योग विहीन जनपद कौशाम्बी खेती किसानी पर निर्भर है। 20 लाख के करीब आबादी का 80 फीसदी हिस्सा खेत और खेतों में पैदा होने वाली उपज के व्यापार पर ही निर्भर है। ऐसे में प्रयोग सफल रहा तो किसानो की बेकार पड़ी जमीन भी सोना उगलने लगेगी।
(इनपुट-हिन्दुस्थान समाचार)
