विकास के रथ पर सवार भारत ने बीते आठ साल में अपने बढ़ते शहरों को मेट्रो की रफ्तार दी है। यह इन शहरों के विकास के काफी मददगार साबित हुई है। समय के साथ यह बदलाव होना जरूरी भी हो गया था। दरअसल, शहरों में बढ़ती आबादी के बीच यातायात का ऐसा साधन उपलब्ध कराना जरूरी हो गया था जो पर्यावरण की सुरक्षा के साथ लोगों के लिए रोजगारपरक भी हो। वाकयी मेट्रो इन आयामों पर खरी उतरी है। जिन-जिन शहरों में आज मेट्रो का जाल बिछ चुका या बिछ रहा है उस शहर की विकास की रफ्तार अपने आप बढ़ गई है। दिल्ली-मुंबई जैसे बड़े शहरों में तो मेट्रो लाइफ लाइन तक कही जाने लगी है।
यही कारण है कि भारत सरकार ने मेट्रो के विस्तार को तीव्र गति प्रदान की। लेकिन आप 2014 से पहले तक देखेंगे तो पाएंगे कि मेट्रो का उस गति से कार्य नहीं हो सका था जिस क्रम में होना चाहिए था। ऐसे में कहना उचित होगा कि इस कमी को दूर करने में पीएम मोदी के नेतृत्व में बनी केंद्र सरकार ने सार्थक कदम उठाया। आज उसी का नतीजा है कि देश के लगभग सभी बड़े शहरों में, जिन्हें मेट्रोपोलिटन सिटीज में गिना जाता है, मेट्रो सरपट दौड़ती नजर आती है। जिस देश में आज इतना बड़ा मेट्रो नेटवर्क तैयार हो गया है वहां की कार्य क्षमता तो बढ़ना तय ही था और वही हुआ भी है। दरअसल, इससे यात्रा समय में उम्मीद से भी ज्यादा कमी आई है। जो लोग अपना जीवन का अधिकतम समय केवल घर से दफ्तर और दफ्तर से घर जाने में गवां देते थे वे अब इस समय का सही सदुपयोग कर पा रहे हैं और घर और अपने काम को ज्यादा समय दे पा रहे हैं। बताना चाहेंगे कि देश में 8 साल में मेट्रो का तिगुना विस्तार हो चुका है और आज देश के 2 दर्जन से अधिक शहरों में में मेट्रो चल रही है। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह कितनों के लिए वरदान साबित हो रही है।
शहरी क्षेत्रों में जीवन की सुगमता में बढ़ोतरी
इस प्रकार शहरी क्षेत्रों में जीवन की सुगमता में काफी बढ़ोतरी हुई है। इससे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार अवसरों का भी सृजन हुआ है। जिन नगरों में मेट्रो का विस्तार हो चुका है, अब वहां स्थानीय एवं शहरों के बीच की यात्रा सरल हो गई है। केवल इतना ही नहीं, इन इलाकों में अब पहले से कहीं अधिक गतिशीलता एवं संपर्क में भी वृद्धि हो गई है जिससे स्थानीय व्यवसाय को भी बढ़ावा मिलने लगा है।
मेट्रो एक प्रमुख माध्यम
तेज गति से बढ़ते शहरीकरण के साथ, देश के सभी नगरों और शहरों में सार्वजनिक परिवहन प्रणाली पर दबाव बढ़ रहा है। मास रैपिड ट्रांसपोर्ट सिस्टम, एमआरटीएस श्रेणी-I एवं श्रेणी-II शहरों में रहने वाले लोगों के लिए गतिशीलता के सबसे प्रभावी माध्यमों में से एक के रूप में उभरा है और मेट्रो एक प्रमुख माध्यम बन गया है।
मेट्रो की वर्तमान स्थिति
वर्तमान में 791 किलोमीटर मेट्रो लाइन परिचालनगत है। याद हो, साल 2002 में 8 किलोमीटर की मामूली शुरुआत से लेकर आधुनिक मेट्रो रेल ने देश में ऐतिहासिक वृद्धि प्रदर्शित की है। देश के तमाम बड़े शहरों में लोगों के लिए मेट्रो का विस्तार किया जा रहा है।
भारत सरकार की मेट्रो रेल नीति 2017
भारत सरकार ने भारत में मेट्रो रेल के मानकीकरण एवं विकास के लिए कई कदम उठाए हैं। भारत सरकार की मेट्रो रेल नीति 2017 देश में मेट्रो रेल के त्वरित एवं टिकाऊ विकास को सक्षम बनाती है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इस नीति के तहत जिन शहरों की आबादी 20 लाख से अधिक है उन शहरों में सरकार ने मेट्रो संचालन का प्लान तैयार किया। अपर्याप्त उपलब्धता और वर्तमान में लास्ट माइल कनेक्टिविटी की अनुपस्थिति को देखते हुए, नई नीति यह सुनिश्चित करने का प्रयास करती है कि यह अपने आसपास के 5 किलोमीटर के क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करते हुए वहां के लोगों को सुविधा प्रदान करेगी। इसके लिए मेट्रो स्टेशनों के दोनों ओर राज्यों को फीडर बस सेवा के जरिए ‘लास्ट माइल कनेक्टिविटी’ प्रदान की जा रही है। इसी क्रम में मेट्रो स्टेशनों पर यात्रियों को गैर-मोटर चालित वाहन जैसे ई-रिक्शा, साइकिल इत्यादि भी सुविधाएं प्रदान की गई है। नई मेट्रो परियोजनाओं का प्रस्ताव करने वाले राज्यों को परियोजना रिपोर्ट में इन तमाम सेवाओं के लिए किए जाने वाले प्रस्तावों और निवेशों का उल्लेख करना आवश्यक है।
बढ़ते शहरों को मिली मेट्रो की रफ्तार
देश में बढ़ते शहरों को मेट्रो की रफ्तार मिली है। 2014 तक जहां मेट्रो सेवाएं बहुत कम शहरों में उपलब्ध थीं, वहीं आज देश के 2 दर्जन से अधिक शहरों में मेट्रो या तो ऑपरेशनल हो चुकी है या फिर जल्द चालू होने वाली है। बीते मार्च महीने में ही पीएम मोदी ने पुणे मेट्रो रेल परियोजना का उद्घाटन किया था। मुंबई, ठाणे, नागपुर और पिंपरी-चिंचवाड़ पुणे को देखें तो इस विस्तार में महाराष्ट्र का काफी बड़ा हिस्सा है। इस मेट्रो से पुणे में आवाजाही आसान हो गई, लोगों को प्रदूषण और जाम से राहत मिली और वहां के लोगों का जीवन सहज हो गया।
