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अमेरिकी रायफल्स की दिक्कतों का सेना ने ‘जुगाड़’ तकनीक से निकाला हल

भारत और चीन की सीमा पर तैनात सैनिकों को दी गईं अमेरिकी असॉल्ट रायफलों के इस्तेमाल में आ रहीं दिक्कतों को दूर करने में देशी ‘जुगाड़’ की तकनीक काम आई है। लगभग दो दशकों से इंसास रायफलों और एके-47 का इस्तेमाल करने वाले सैनिकों को इन ‘शूट टू किल’ असॉल्ट रायफलों का इस्तेमाल करने की आदत डालने में कुछ समय लगा। अंधेरे में काम करने के लिए ‘आंखों’ के अनुरूप न होने और छोटे बैरल के मुकाबले बड़ी पकड़ होने से भी मुश्किलें आईं, लेकिन अब अमेरिकी रायफल्स को देशी तकनीक से ऐसा बना दिया गया है कि इनका अधिक सटीकता के साथ इस्तेमाल किया जा सकता है।

हर बटालियन को दी गईं 50% सिग सॉयर रायफल

भारतीय सेना ने फरवरी, 2019 में अमेरिकी कम्पनी ‘सिग सॉयर’ से 600 मीटर दूरी तक मार करने की क्षमता वाली 72 हजार सिग-716 असॉल्ट रायफलें खरीदी थीं। फास्ट-ट्रैक प्रोक्योरमेंट (एफटीपी) सौदे के तहत 647 करोड़ रुपये से खरीदी गईं 7.62X51 मिमी. कैलिबर की असॉल्ट रायफल्स की जब दिसम्बर, 2019 में आपूर्ति हुई तो सबसे पहले जम्मू-कश्मीर के उधमपुर स्थित उत्तरी कमान को दी गईं। भारतीय सेना की सभी पैदल टुकड़ियों को कम से कम 50% सिग सॉयर रायफलें मिली हैं। पाकिस्तान और चीन की सीमा पर तैनात पैदल सेना की बटालियनों को सिग सॉयर रायफल अधिक संख्या में मिली हैं, जबकि अन्य बटालियनों को कम से कम 50 प्रतिशत दी गई हैं। इसके अलावा इन रायफल्स का इस्तेमाल भारतीय सेना अपने एंटी-टेरर ऑपरेशन्स में कर रही है।

चीन विवाद को देखते हुए की गई थी खरीददारी

लगभग 13 लाख की क्षमता वाले भारतीय सशस्त्र बलों की आंशिक जरूरतें पूरी न होते देख भारतीय सेना ने इसके बाद पूर्वी लद्दाख में चीन से सैन्य टकराव के बीच 72 हजार और असॉल्ट रायफल्स खरीदने के लिए अमेरिकी सिग सॉयर कंपनी से 780 करोड़ रुपये का सौदा किया। इनमें से करीब 36 हजार असॉल्ट रायफल्स पांच माह पहले मार्च में भारतीय सेना को मिल गईं हैं। हिमाचल प्रदेश से सटी एलएसी और जम्मू सहित पंजाब से सटी पाकिस्तानी सीमा पर तैनात सभी सैनिकों को ‘सिग सॉयर’ रायफल दी जा चुकी है। इन रायफल्स का इस्तेमाल अमेरिका के अलावा दुनियाभर की करीब एक दर्जन देशों की पुलिस और सेनाएं करती हैं।

अधिक दूरी तक है मारक क्षमता

दरअसल इससे पहले भारतीय सैनिकों को 7.62×39 मिमी. की एके-47 और 5.56×45 मिमी. की इंसास रायफल इस्तेमाल करने की आदत थी, जो 1990 के दशक की शुरुआत में शामिल की गई थीं। इसके मुकाबले अमेरिकी रायफल सिग-716 में उच्च क्षमता है और यह 600 मीटर की दूरी तक शूट-टू-किल के लिए बनाई गई है। इसके विपरीत अभी तक इस्तेमाल हो रहीं इंसास रायफल की रेंज कम है और इससे लंबी दूरी तक निशाना नहीं लगाया जा सकता। एके-47 तो इंसास रायफल से भी कम दूरी तक फायर करती है। इसलिए सैनिकों को असॉल्ट रायफलों का इस्तेमाल करने की आदत डालने में कुछ समय लगा।

अंधेरे में हमला करने में नहीं थी सक्षम

अब सिग-716 रायफल्स भारत के सैनिकों के लिए भी ‘अजेय’ हथियार का विकल्प बन गईं, लेकिन यह अंधेरे में काम करने के लिए ‘आंखों’ के अनुकूल न होने से दिक्कतें हुईं। दरअसल, अमेरिका से सौदा करते समय इन रायफल्स की कीमत कम रखने के लिए ऑप्टिकल डिवाइस को नहीं खरीदा गया था। इस तरह अंधेरे में रायफल को प्रभावी रूप से ‘लगभग अंधा’ बना दिया गया। अमेरिकियों ने रायफल को सस्ती कीमत पर बेचा, जबकि गोला-बारूद महंगा था। सैनिकों को दी गईं सिग-716 रायफल्स से अंधेरे में फायरिंग न हो पाने की वजह से मुश्किलें सामने आने लगीं। इसके अलावा रायफल की पकड़ बड़ी होने से भी दिक्कतें थीं क्योंकि भारतीय सैनिकों को एके-47 के छोटे बैरल की आदत थी, जिससे उन्हें बेहतर पकड़ मिलती थी। दो अलग-अलग अनुबंधों के तहत खरीदी गईं 1.4 लाख से अधिक सिग-716 रायफलों के अलावा कोई भी अतिरिक्त उपकरण साथ नहीं आया था।

देशी ‘जुगाड़’ से निकाला हल

सैनिकों के सामने आने वाली दिक्कतों को देखते हुए इन अमेरिकी रायफल्स का उपयोग आसान बनाने के लिए देशी ‘जुगाड़’ का सहारा लिया गया। सैनिकों ने रायफल्स की पकड़ में सुधार करने के लिए बैरल के नीचे लकड़ी के हैंडल लगाए। सेना ने पहले 400 से अधिक इन्फैंट्री बटालियनों में बंटी सिग-716 रायफल्स को इकट्ठा किया, फिर इसके बाद रात के अंधेरे में फायरिंग करने लायक बनाने के लिए सरकारी और निजी भारतीय फर्मों में ऑप्टिकल डिवाइस लगाने के लिए मामूली बदलाव किये गए। हालांकि यह फायरिंग सिस्टम के साथ पूरी तरह से संगत नहीं है, लेकिन थोड़े से प्रशिक्षण के साथ सैनिक अंधेरे में भी सीधे गोली चलाने में सक्षम हैं।

सटीक निशाना है ज्यादा आसान

दरअसल सिग-716 के लिए बने विजन सिस्टम में सैनिक को बताने के लिए एक संकेतक होता है कि गोली वास्तव में कहां लगेगी। अन्य स्थलों के उपयोग के मामले में अलग-अलग लेकिन न्यूनतम अंतर पर सूचक होते हैं। रायफल को हैंडल देने के लिए सेना ने इसमें अतिरिक्त किट भी लगाई है, जिससे रायफल की पकड़ छोटे हाथों वालों के लिए भी बेहतर हो गई है। इसके अलावा सेना ने मूल अमेरिकी मेक को स्थानीय रूप से निर्मित 7.62 लाइट मशीन गन (एलएमजी) के आसानी से उपलब्ध राउंड के साथ बदल दिया। अब एक बिपोड के साथ रायफल को एलएमजी के रूप में अधिक सटीकता के साथ इस्तेमाल किया जा सकता है।

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