प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को भारतीय विश्वविद्यालय संघ के 95 वें वार्षिक सम्मेलन और कुलपतियों की राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित किया। यही नहीं डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की 130वीं जयंती के अवसर पर उन्होंने किशोर मकवाणा द्वारा लिखित चार पुस्तकों का विमोचन भी किया। यह पुस्तकें डॉक्टर अंबेडकर के जीवन, व्यक्ति, राष्ट्र और आयाम दर्शन पर लिखी गई हैं।
पीएम मोदी ने कार्यक्रम के दौरान शिक्षा के महत्व, नई शिक्षा नीति और सरकार द्वारा कौशल विकास व वंचितों के उत्थान के लिए किए जा रहे प्रयासों का जिक्र किया। इस अवसर पर उन्होंने अपने संबोधन में कहा “भारत दुनिया में Mother of democracy रहा है। Democracy हमारी सभ्यता, हमारे तौर तरीकों का एक हिस्सा रहा है। आजादी के बाद का भारत अपनी उसी लोकतान्त्रिक विरासत को मजबूत करके आगे बढ़े, बाबा साहेब ने इसका मजबूत आधार देश को दिया।
पीएम मोदी ने संबोधन के शुरुआत में कहा आज जब देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है तो उसी काल खंड में बाबा साहेब अंबेडकर की जन्म जयंती का अवसर हमें उस महान यज्ञ से भी जोड़ता है व भविष्य की प्रेरणा से भी जोड़ता है। मैं कृतज्ञ राष्ट्र की तरफ से सभी देशवासियों की तरफ से बाबा साहेब को आदर पूर्वक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।
लाखों-करोड़ों स्वाधीनता सेनानियों ने समरस समावेशी भारत का सपना देखा
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, आजादी की लड़ाई में हमारे लाखों-करोड़ों स्वाधीनता सेनानियों ने समरस समावेशी भारत का सपना देखा था। उन सपनों को पूरा करने की शुरुआत बाबासाहेब ने देश को संविधान देकर की थी। आज उसी संविधान पर चलकर भारत एक नया भविष्य गढ़ रहा है और सफलता के नए आयाम हासिल कर रहा है। आज इस पवित्र दिन एसोसिएशन ऑफ यूनियन यूनिवर्सिटीज के वाइस चांसलर्स की 95वीं मीटिंग भी हो रही है। बाबा साहेब अंबेडकर ओपन यूनिवर्सिटी में बाबा साहेब समरसता चेयर की स्थापना की घोषणा भी हुई है।
पीएम मोदी ने कहा, भारत दुनिया में Mother of democracy रहा है। Democracy हमारी सभ्यता, हमारे तौर तरीकों का, एक प्रकार से हमारी जीवन पद्धति का एक महज हिस्सा रहा है। आजादी के बाद का भारत अपनी उसी लोकतान्त्रिक विरासत को मजबूत करके आगे बढ़े, बाबा साहेब ने इसका एक मजबूत आधार देश को दिया।
बाबासाहेब को अब हम पढ़ते हैं, समझते हैं तो हमें अहसास होता है कि वे एक यूनिवर्सल वीजन के व्यक्ति थे। किशोर मकवाणा की किताब में बाबा साहेब के इस वीजन के स्पष्ट दर्शन होते हैं। उनकी एक पुस्तक बाबासाहेब के जीवन दर्शन से परिचित कराती है, दूसरी किताब उनके व्यक्ति दर्शन पर केंद्रित है। इसी तरह तीसरी किताब बाबा साहेब का राष्ट्र दर्शन और चौथी किताब उनके आयाम दर्शन को देशवासियों तक ले जाएगी। ये चारों दर्शन अपने आप में किसी आधुनिक शास्त्र से कम नहीं है।
मैं चाहूंगा कि देश के विश्वविद्यालयों में, कॉलेजों में हमारी नई पीढ़ी ज्यादा से ज्यादा ऐसी पुस्तकों को पढ़ें जिसमें समरस समाज की बात हो, दलित व वंचित समाज की बात हो, महिलाओं के उत्थान और योगदान का प्रश्न हो, शिक्षा विशेषकर उच्च शिक्षा पर बाबा साहेब का वीजन हो इन सभी आयामों से देश के युवाओं को बाबासाहेब को जानने का अवसर मिलेगा।
डॉक्टर अंबेडकर कहते थे-
“मेरे तीन उपास्य देवता हैं। ज्ञान, स्वाभिमान और शील”।
यानी, Knowledge, Self-respect, और politeness.जब Knowledge आती है, तब ही Self-respect भी बढ़ती है। Self-respect से व्यक्ति अपने अधिकार, अपने rights के लिए aware होता है, और Equal rights से ही समाज में समरसता आती है, और देश प्रगति करता है। हम सभी बाबा साहेब के जीवन संघर्ष से परिचित हैं। इतने संघर्षों के बाद भी बाबा साहेब जिस ऊंचाई पर पहुंचे वह हम सभी के लिए बहुत बड़ी प्रेरणा है।
उन्होंने कहा, बाबा साहेब अंबेडकर हमें जो मार्ग दिखाकर गए हैं, उस पर देश निरंतर चले। इसके जिम्मेदारी हमारी शिक्षा व्यवस्था पर, हमारे विश्वविद्यालयों पर हमेशा रही है और जब प्रश्न एक राष्ट्र के रूप में साझा लक्ष्यों का हो, साझा प्रयासों का हो तो सामूहिक प्रयास ही सिद्धी का माध्यम बनते हैं। इसलिए मैं समझता हूं कि इसमें एसोसिएशन ऑफ इंडियन यूनिवर्सिटीज की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। एआईयू के पास तो डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, हंसा मेहता, डॉ. जाकिर हुसैन जैसे विद्वानों की एक बहुत बड़ी लंबी विरासत है।