पीएम मोदी ने सोमवार को भारतीय क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी श्यामजी कृष्ण वर्मा को उनकी जयंती पर नमन किया। पीएम ने श्यामजी की अस्थियों को 2003 में स्विट्जरलैंड से भारत वापस लाने और 2015 में यूके से उनका बहाली प्रमाणपत्र प्राप्त करने का भी स्मरण किया।
आजादी में उनके योगदान को देश हमेशा रखेगा याद
पीएम मोदी ने सिलसिलेवार ट्वीट में कहा, “महान क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी श्यामजी कृष्ण वर्मा को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि। देश को गुलामी से मुक्त कराने के लिए उन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया। कृतज्ञ राष्ट्र आजादी की लड़ाई में उनके योगदान को कभी भुला नहीं पाएगा।”
उन्होंने कहा, “मैं खुद को धन्य मानता हूं कि मुझे 2003 में स्विट्जरलैंड से श्यामजी कृष्ण वर्मा की अस्थियां वापस लाने और 2015 में मेरी यूके यात्रा के दौरान उनका बहाली प्रमाणपत्र प्राप्त करने का अवसर मिला। यह महत्वपूर्ण है कि युवा भारत उनके साहस और महानता के बारे में अधिक जाने।”
मुख्यमंत्री रहते हुए लाये थे अस्थियां वापस
उल्लेखनीय है कि श्यामजी भारत की आजादी के लिए विदेश में संघर्ष करते रहे और 31 मार्च 1930 को जिनेवा में एक अस्पताल में उनका निधन हो गया। अंतरराष्ट्रीय कानूनों के कारण उनका शव भारत नहीं लाया जा सका और उनकी अन्त्येष्टि वहीं कर दी गयी। देश आजाद होने 55 साल बाद गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 22 अगस्त 2003 को स्विस सरकार से अनुरोध करके जिनेवा से श्यामजी कृष्ण वर्मा और उनकी पत्नी भानुमती की अस्थियों को भारत मंगाया।
इसके बाद 2015 में पीएम मोदी ने अपनी लंदन यात्रा के दौरान ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरून की उपस्थिति में ‘बार’ में श्यामजी कृष्ण वर्मा की मरणोपरांत बहाली का प्रमाण पत्र प्राप्त किया। यह बहाली लंदन स्थित ‘सोसाइटी ऑफ द इनर टेंपल’ द्वारा की गई है।
श्यामजी ने लंदन में इंडिया हाउस की स्थापना की
श्यामजी कृष्ण वर्मा का जन्म 4 अक्टूबर 1857 को गुजरात के कच्छ जिले के माण्डवी कस्बे में हुआ था। श्यामजी ने पढ़ाई पूरी करने पर अजमेर में वकालत की। इसी दौरान वह लोकमान्य बालगंगाधर तिलक और स्वामी दयानंद सरस्वती के संपर्क में आये। वह जूनागढ़ और उदयपुर के दीवान भी रहे। बाद में वह ऑक्सफोर्ड में संस्कृत के सहायक प्रोफेसर नियुक्त हो गए। लंदन में उन्होंने इंडिया हाउस की स्थापना की जो इंग्लैंड जाकर पढ़ने वाले छात्रों के परस्पर मिलन एवं क्रांतिकारियों के प्रशिक्षण का एक प्रमुख केन्द्र था। उन्होंने इंडियन होम रूल सोसायटी की भी स्थापना की।
