19 जनवरी 1990 को वो दिन माना जाता है जब कश्मीर के पंडितों को अपना घर छोड़ने का फरमान जारी हुआ था.1986 में गुलाम मोहम्मद शाह ने अपने बहनोई फारुख अब्दुल्ला से सत्ता छीन ली और जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री बन गये. उन्होंने एक खतरनाक निर्णय लिया. ऐलान हुआ कि जम्मू के न्यू सिविल सेक्रेटेरिएट एरिया में एक पुराने मंदिर को गिराकर भव्य शाह मस्जिद बनवाई जाएगी. तो लोगों ने प्रदर्शन किया. कि ये नहीं होगा. जवाब में कट्टरपंथियों ने नारा दे दिया कि इस्लाम खतरे में है. इसके बाद कश्मीरी पंडितों पर धावा बोल दिया गया. साउथ कश्मीर और सोपोर में सबसे ज्यादा हमले हुए.
जम्मू और कश्मीर सरकार द्वारा 1990 में स्थापित राहत कार्यालय की रिपोर्ट के अनुसार, 44,167 कश्मीरी प्रवासी परिवार पंजीकृत हैं, जिन्हें सुरक्षा चिंताओं के कारण 1990 से घाटी से पलायन करना पड़ा था। इनमें पंजीकृत हिंदू प्रवासी परिवारों की संख्या 39,782 है। सरकार उन्हें वापस बसाने के लिए कई कदम उठा रही है।
प्रधानमंत्री राहत पैकेज के तहत कश्मीरी प्रवासी युवाओं के लिए विशेष नौकरियां पुनर्वास के लिए एक महत्वपूर्ण घटक रहा है। पीएम पैकेज की नौकरी लेने के लिए पिछले कुछ वर्षों में कुल लगभग 3800 प्रवासी उम्मीदवार कश्मीर लौट आए हैं। अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद, पुनर्वास पैकेज के तहत उन्हें प्रदान की गई नौकरियों को लेने के लिए 520 प्रवासी उम्मीदवार कश्मीर लौट आए हैं। चयन प्रक्रिया के सफल समापन पर वर्ष 2021 में लगभग 2,000 अन्य प्रवासी उम्मीदवारों के भी इसी नीति के तहत लौटने की संभावना है।
कश्मीर घाटी में अपने पैतृक स्थानों पर कश्मीर प्रवासियों के पुनर्वास को प्रोत्साहित करने के लिए, सरकार ने उन परिवारों की मदद करने के लिए निम्नलिखित प्रोत्साहनों की घोषणा की जो अपने मूल स्थानों या निवास पर वापस बसने के इच्छुक थे।
i) उनके पूर्ण या आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त घर की मरम्मत के लिए 7.5 लाख रुपये की सहायता।
ii ) जीर्ण-शीर्ण/अप्रयुक्त मकानों के लिए 2 लाख रुपये की सहायता।
iii) ग्रुप हाउसिंग सोसायटियों में घर खरीदने/निर्माण के लिए 7.5 लाख रुपये उन लोगों के लिए जिन्होंने 1989 के बाद की अवधि के दौरान और JK Migrant Immovable Property Preservation, Protection and Restraint of Distress Sale 1997 अधिनियमन से पहले अपनी संपत्ति बेची है।
कश्मीरी प्रवासियों को भी नकद राहत प्रदान की जा रही है, जिसे समय-समय पर बढ़ाया गया है यानी 1990 में प्रति परिवार 500 रुपये को बढ़ाकर 13,000 रुपये प्रति परिवार और 3,250 रुपये प्रति व्यक्ति कर दिया गया है।
कश्मीरी पंडितों का दर्द
19 जनवरी 1990 शुक्रवार की सुबह डल झील पर शिकारा का संगीत नहीं, मुस्लिम कट्टरपंथियों का शोर सुनाई पड़ रहा था. हिंदुओं के घरों की दीवारों पर धमकी भरे पोस्टर लगा दिए गए थे. कश्मीर के कोने-कोने में मस्जिदों से फरमान जारी किए जा रहे थे. फरमान कश्मीर में रहने वाले गैर-मुस्लिमों के खिलाफ. फरमान कश्मीरी पंडितों के खिलाफ और फरमान ये था कि या तो कश्मीर छोड़ो या अंजाम भुगतो या फिर इस्लाम अपनाओ.मुस्लिम कट्टरपंथियों ने गैर-मुस्लिमों के लिए ऐसी स्थिति पैदा कर दी थी, जिसमें उनके पास दो ही विकल्प थे- या तो कश्मीर छोड़ो या फिर दुनिया.
